बुद्ध और सत्य
बुद्ध और सत्य
एक दिन एक आदमी बुद्ध से मिलने आया, वह बैठा था उनके सामने और पैर का अंगूठा हिलाता था। उस आदमी ने पूछा कि "मैं पूछने आया हूंः सत्य क्या है?" बुद्ध ने कहाः "इसे बाद में पूछेंगे। क्या मैं यह पूछूं कि तुम्हारा पैर का अंगूठा क्यों हिलता है?" वह बहुत हैरान हो गया होगा। इतने बड़े मनीषी के पास सत्य को पूछने गया है, और वे वह भी कौन सी क्षुद्र बात की बातें कर रहे हैं कि तुम्हारे पैर का अंगूठा क्यों हिल रहा है? उसने कहा, "इसे छोड़िए, इससे क्या मतलब?" बुद्ध ने कहाः "इससे बहुत मतलब है। जिसे अपने अंगूठे हिलने के भी कारण का पता नहीं, वह सत्य की खोज कैसे करेगा? जिसने अभी क्षुद्र को नहीं सम्हाला, वह विराट को कैसे सम्हाल सकेगा?" बुद्ध ने कहाः "मेरे कहते ही, पूछते ही तुम्हारा अंगूठा बंद भी हो गया। यह क्यों हुआ? तो बंद कर लिया उसने।" उस आदमी ने कहाः "मुझे कुछ पता ही नहीं था कि अंगूठा हिल रहा है।" बुद्ध ने कहाः "तुम्हारा शरीर है और तुम्हें पता नहीं कि हिलता है? तुम खतरनाक आदमी हो, तुम किसी की जान भी ले सकते हो और कह सकते हो कि मुझे पता नहीं कि मेरा हाथ उसके सिर पर कैसे पड़ गया। और तुम्हारा जीवन पाप से भरा हो जाएगा, क्योंकि तुम्हें यह भी पता नहीं होगा कि कोई विचार क्यों चलता है, कोई वासना क्यों उठती है, तुम्हारा सारा जीवन यांत्रिक है। इसको मैं कहता हूं--मूर्च्छा।"
