Gulafshan Neyaz

Drama

5.0  

Gulafshan Neyaz

Drama

बसंत ऋतु

बसंत ऋतु

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बसंत ऋतू का आगमन हो गया हैं ठंडी की विदाइ होने वाली हैं मौसम सुहाना हो चुका है, ऐसा लग रहा है जैसे धरती ने छींट की साड़ी पहन ली हो।

अगल बगल के खेतो मैं सरसो और राई के पौध हवा मैं झूम रहे हैं ऐसा लग रहा हैं जैसे वो भी वसंत के आगमन की खुशियाँ मना रहे हैं उनके फूलो की सुगंध हवा मैं फैली हैं जो मानो को तरो ताज़ा कर देती हैं मटर और केलॉव के फूल उसे और मन मोहक बना रहे हैं लती मैं लगे सफ़ेद और बैंगनी फूल ऐसे लग रहे हैं जैसे वो प्रकृति का सिंगार कर रहे हो अब पेड़ों पर लगे बेर भी पकने लगे हैं

मेरे दरवाज़े पर भी एक बेर का पेड़ हैं जिसपर छोटे बच्चे छुप के ढेला मारते हैं जैसे ही बेर गिरता हैं जल्दी से लेकर रफूचककर हो जाते हैं माँ तो बेर के नीचे कुर्सी लगाकर और हाथ मैं डंटा ही लेकर बैठे गई किसान गंहो के फसल मैं पानी पटा रहे हैं ऐसा लग रहा हैं बसंत के आगमन ने किसान के रोम रोम को रोमांचित कर दिया हैं

अब तो खेसारी के बैंगनी फूल भी गायब होने लगे हैं उसकी जगह नन्ही छिमी आ गई हैं जिसमे कुछ दिन बाद मीठे दाने आ जेयांगे ऐसा लग रहा बसंत के आगमन से हर तरफ खुशी का आगमन हो गया हैं पेड़ मैं नए कालोजेर आ गए हैं कितना सुखद हैं या सब ये नज़ारे।


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