बस अब मुझे डर नहीं लगता
बस अब मुझे डर नहीं लगता
झोपड़पट्टी में रहने वाली सुनीता आज फिर सुबह सुबह खाली भगौना लेकर कभी अपने नसीब को दोष दे रही थी तो कभी अपने शराबी पति को। घर में सिर्फ इतना ही खाना होता है बनाने के लिए, कि अक्सर उसे रोटी नमक के साथ खानी पड़ती है या फिर नमकीन चावल। इस सप्ताह को कुछ ज्यादा ही हो गया पूरे सप्ताह दाल या सब्जी मुँह में डाल ही ना पायी थी। बेचारी सास उसका सारा दर्द समझती क्योंकि उसने भी तो ऐसे ही दिन काटें हैं। सुनीता का पति रिक्शा चला कर इतनी मजदूरी तो कर ही लेता है कि सबको ठीक सी रोटी नसीब हो सके। लेकिन शराब की लत के आगे तो ढेरों की माया भी काम ना आए।
सोचते सोचते सूरज सर चढ़ने को आया तभी बाहर से किसी ने आवाज लगायी। देखा तो पोलियो ड्रॉप पिलाने वाली आशा, जो हर बार आती थीं आई थी, लेकिन इस बार साथ में डॉ साहिबा भी थी। अपने 3 साल के बेटे और 2 साल की बेटी जो कि पास ही मिट्टी में खेल रहे थे पकड़ कर पोलियो ड्रॉप पिलायी। दोनों बच्चे जैसे हड्डियों का ढाँचा थे। बड़ा बेटा जो लगभग छह साल का था उसकी उम्र भी 4 साल से ज्यादा नहीं लग रही थी। उन्हें देखकर डॉ मैडम बोली - क्या किया हुआ है इन्हें? इतने कमजोर भी नहीं होने चाहिए बच्चे... क्या करता है तुम्हारा पति?? और तुम क्या करती हो??? इतना सुनते ही सुनीता अपनी बेबसी बताने लगी। कहने लगी पति किराए की रिक्शा चलाता है और रोज शराब पीता है। घर में खाने के भी लाले पड़े रहते हैं कई बार बेचारे बच्चे आधे भरे पेट ही सो जाते हैं। बेचारे हड्डी का ढाँचा ना बनेंगे तो क्या होंगें? । डॉ मैडम ने कहा - तो तुम्हें भी कुछ काम करना चाहिए ना। जिससे कम से कम तुम खुद ही अपने बच्चों का पेट भर सको। दोनों मिलकर कमाओगे तो सही होगा। यह सुन कर तो बेचारी सुनीता फफक पड़ी। कहने लगी एक बार कहा था पति से कि पास की कॉलोनी में बाई का काम ढूँढ लेती हूँ मैं भी। बहुत भड़का था उस दिन मुझ पर, कहने लगा बाहर जाएगी काम करने या घूमने?? औरत जात घर पर ही सुहाती है। और भी ना जाने कितने इल्ज़ाम लगा दिए थे खड़े खड़े। अम्मा ने रोक लिया था नहीं तो हाथ भी उठाने वाला था। उस दिन से भगवान के भरोसे हूँ मैडम मैं तो। मैंने तो काम करने का नाम भी नहीं लिया।
डॉ मैडम बात को पूरी तरह समझ चुकी थीं। उन्होंने सुनीता से कहा मेरे पति एक NGO से जुड़े हैं जो तुम्हारी जैसी महिलाओं की अपना काम शुरू करने में मदद करते हैं। चाहे तो तुम घर से ही अपना छोटा सा काम कर सकती हो। जिसमें तुम्हें रोज काम करने बाहर नहीं जाना पड़ेगा सिर्फ सप्ताह में एक बार सामान पहुंचाने और लेने जाने पड़ेगा। अच्छा ये बताओ तुम्हें क्या क्या काम आता है? जैसे आचार, पापड़ बनाना या कोई सिलना, बुनना? सुनीता एक दम चहचहा कर बोली हम कढ़ाई बहुत अच्छे से करते हैं एक दम सुंदर सुंदर। और हमारी अम्मा अचार, बड़ियां बहुत अच्छा बनाती है उनकी मदद से हम वो भी बना लेते हैं। ठीक है तो तुम तैयार रहना मैं तुम्हारा काम शुरू कराने की तैयारी करती हूँ कह कर डॉ मैडम चली गयीं।
सप्ताह भर बाद ही उसे डॉ मैडम के पति की मदद से आचार, बड़ियां और कपड़े काढ़ने का काम मिल गया। लेकिन सुनीता के मन में पति से क्लेश का भी डर बहुत था। इसलिए पति के घर से जाने के बाद दोनों सास बहू काम शुरू करते और उसके आने से पहले घर के कोने में सामान छिपा कर रख देतीं। सप्ताह में एक बार जा कर कढ़ाई के पीस और अचार, बड़ी बनाने का सामान ले आती और उसी दिन पिछला दे आती थी। एक सप्ताह के काम के नगद पैसे उसे मिल जाते थे। इसी छिपा छिपी में घर के हालात कुछ ठीक होने लगे। पति के रोज के लाए राशन में अपना लाया थोड़ा थोड़ा मिला देती जिससे अब सभी को पेट भर खाना मिल जाता था। कभी कभार बच्चों को फलों का स्वाद भी चखने को मिलने लगा । इसी तरह किसी तरह दो महीने निकल गए। एक दिन जब सुनीता कढ़ाई के पीस देने दुकान पर गयी तो वहीं बाज़ार में उसके पति ने उसे देख लिया। आँखों में इस तरह गुस्सा भरा था उसके कि जैसे वही सुनीता को खा जाएगा लेकिन रिक्शा में सवारी होने के कारण सिर्फ दाँत चबाते रह गया।
सुनीता डरती डरती घर पहुंची कि आज उसकी खैर नहीं। घर आकर सारा किस्सा अम्मा को बताया। बोली - अम्मा मुझे बहुत डर लग रहा है पता नहीं शाम को आकर वो क्या करेंगे...?? अम्मा ने साफ तौर पर कह दिया बेटा तू कोई गलत काम नहीं कर रही है जो इतना डर रही है और वैसे भी ओखली में सिर दिया तो मूसलों का क्या डर । फिकर मत कर अब मैं भी चुप नहीं रहूंगी तेरे साथ हूँ मैं। घर में अब हम भी कमाते हैं। उसकी सुन कर चुपचाप रहे तो हम ही फांकें से मरते हैं वो तो दारू पीकर मस्त रहता है। डरना छोड़ अब हक़ और सही के लिए लड़ना सीख। मैं तो जीवन में यह बहुत देर से समझ पायी सुनीता तू अभी ही यह समझ जा।
अम्मा की बात सुनकर सुनीता में ना सिर्फ हिम्मत आई, साथ ही उसका आत्म विश्वास भी जग उठा। जान गयी कि अब वो भी आत्म निर्भर है थोड़ा ही सही पर इतना तो कमा ही लेती है जितना उसका पति घर में भी नहीं देता है। अब पेट में डालने को निवाला है और तन पर ढकने के लिए कपड़ा तो मूसलों की बौछार से क्या डरना। अब तैयार थी वो खुद के लिए लड़ने को। अब उसे शाम से डर नहीं लग रहा था। मन ही मन दुआएं भी दे रही थी डॉ मैडम और उनके पति को जिन्होंने उसे कमाई का यह रास्ता दिखाया। और खुश थी अम्मा जैसी सास पाकर।