बर्फी
बर्फी
सिलोनी कॉलेज आते ही निशा से बोली यार कल संडे है ।आज चलो, थिएटर में फिल्म देखने चलते है। निहारिका ,सोनिका सब जा रहे हैं ।तू चलेगी.... सिलोनी ने निशा से पूछा. कौन- सी फिल्म लगी है ।बर्फी ....... निशा हंसने लगी सिलोनी बोली .....क्या हुआ, खाने वाली बर्फी ......
तू भी चल यार ,चलते हैं किसकी मूवी है निशा ने सलोनी से पूछा, यह लो तूने इसका ऐड नहीं देखा। रणबीर कपूर की..... नहीं यार मुझे नहीं देखनी कहकर निशा कॉलेज से घर की तरफ चल दी।
चल तो हर बार तू ऐसे ही करती है कोई भी फिल्म लगी हो हर बात पर मना कर देती है ।मैंने सुना है सुमन कहती थी। बड़ी अच्छी मूवी है ।
निशा बोली ,जिसका नाम ही बर्फी है उसमें क्या होगा ।देखते है चल शाम को।
नहीं .....यार, कहकर वह कॉलेज खत्म होते ही घर के लिए वापस आ रही थी। बर्फी नाम उसके दिमाग में अटक गया था। रास्ते में उसे याद आया बर्फी जब वह स्कूल में थी तो उसे याद है कि उसे बर्फी बहुत पसंद थी। उस समय बर्फी खास मानी जाती थी। कोई किसी के घर आता था तो बर्फी लेकर आए तो बहुत मायने रखता था। मुझे याद है वह हर बार बर्फी लाने की जिद करती थी और एक स्पेशल दुकान जिसकी उसे बर्फी बहुत पसंद थी। एक दिन जब वो बर्फी खा रही थी तो जैसे ही बर्फी की एक बाइट ली तो बीच में से बीड़ी का एक टुकड़ा निकला ।वहीं पर वह रुक गई बर्फी के पीस को खोलकर देखा तो आधा टुकड़ा बीच में था शायद कारीगर ने बर्फी बनाते हुए बीड़ी पी रहा होगा बीच में ही उसका टुकड़ा फेंक दिया उस दिन के बाद उसने कभी बर्फी नहीं खाई आज बर्फी फिल्म का नाम सुना है ।तो उसे बचपन की वह याद ताजा हो आई।