बिना खंजर के हत्यारे
बिना खंजर के हत्यारे
मेरा घर दिल्ली की एक आलिशान बस्ती में था, जहां की आवास पर शहरीकरण पूरी तरह से हावी था। अड़ोस पड़ोस का हाल जानने के लिए आस पास घरों में ताक-झाँक करना असभ्यता समझी जाती थी।
उत्तर प्रदेश के गाँव से अंकित नाम का लड़का हमारे पड़ोस की बरसाती में रहने लगा था। अंकित के माता पिता गरीब किसान थे। उन्होंने अंकित को किसी तरह शिक्षित किया।अंकित नौकरी की तलाश में दिल्ली आया और रहने लगा। उसका दुर्भाग्य ही समझे, जहां उसने नौकरी करनी प्रारम्भ की उस कंपनी की वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं थी।
हमारी मम्मी शहर के स्वभाव के विपरीत थीं।
अंकित से मम्मी हालचाल पूछ लिया करती थी। उसका हमारे घर आना जाना प्रारंभ हो गया था।
मम्मी उसकी मदद अक्सर करती रहती थीं। अक्सर खाने-पीने की सामग्री उसे भिजवा देती थी। आते जाते चाय के लिए भी पूछ लिया करती थी।
उसकी इतनी मदद करना पापा को थोड़ा खलने लगा। इस मुद्दे को लेकर मम्मी पापा की अक्सर बहस होने लगी। मम्मी कहती,"क्या हर्ज़ है किसी ज़रूरतमं की मदद करने में ?"
एक दिन मामी ने अंकित के लिए बेसन के लड्डू बना कर भिजवाए तो हम भाई बहनों ने एक आपातकालीन बैठक बुला डाली।
धीरे-धीरे हम भाई बहन भी अंकित से ईर्ष्या करने लगे। हमें लगता था कि मम्मी हमसे ज्यादा अंकित का ख्याल रखती हैं ।
एक दिन पापा ऑफिस से घर आए, मम्मी घर पर नहीं मिलीं ,दो घंटे बाद लौटी, तो पता चला अंकित को डॉक्टर के पास ले गईं थीं, उसे तेज़ बुखार था। दो दिन मम्मी पापा के बीच बोलचाल बंद रही।
मम्मी की सहेली श्रीमती गुप्ता को भी बेवजह अंकित की मदद करने पर मम्मी से शिकवे शिकायत होने लगे।
उन्होंने मम्मी से कहा कि, किसी अनजान से दोस्ती बढ़ाना ठीक नहीं। धीरे धीरे मम्मी ने अंकित से दूरी बना ली।
अंकित भी स्वाभिमानी था, कुछ दिन मम्मी के हाल चाल पूछने के बाद उसने भी हमारे घर आना जाना छोड़ दिया।
कुछ दिन तक अंकित दिखाई नहीं दिया। मकान मालिक द्वारा किराया वसूल करने के लिए उसका दरवाजा खटखटाया गया तो अंदर से कुछ आवाज नहीं आई।
दरवाजा तोड़ने पर अंकित फर्श पर गिरा हुआ मिला। सिर से खून बहने के कारण उसकी ना जाने कब मौत हो चुकी थी, पोस्ट मार्टम से पता चला वह कमज़ोरी के कारण गिर गया था।
उसके मोबाइल की जांच की गई तो पता चला उस की वित्तीय स्थिति बहुत खराब चल रही थी। उसको कई महीनों से तनख्वाह नहीं मिली थी। वह केवल एक दो बिस्किट प्रतिदिन खाकर अपना गुजारा कर रहा था।
उसने अपने दोस्तों से सोशल मीडिया पर बातचीत भी की थी और अपनी दुखद स्थिति से परिचित भी कराया था लेकिन किसी भी दोस्त ने उसे गंभीरता से नहीं लिया।
दोस्तों से की गई चैट से पता चला कि कुछ दोस्तों ने इस बात को मजाक में उड़ा दिया। एक दोस्त ने उसे करोड़ रुपए के चैक का फोटो भेज कर लिखा था, ऐश कर ले।
एक दोस्त ने लिखा,' जा गुरुद्वारे या मंदिर के आगे बैठ कर भीख माँग ले।
एक अन्य दोस्त ने लिखा था, 'चलो इस बहाने डाइटिंग हो जाएगी थोड़ा मोटापा कम हो जाएगा।'
हम भाई बहन यह सब सुनकर बहुत दुखी हो रहे थे। मम्मी फ़ूट फूट कर रो रही थी।
गांव में उसके माता पिता को खबर दे दी गई थी। उन्हें केवल उसके बीमार होने की खबर ही दी गई थी।
अगले दिन एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति अपने सिर पर चावल की बोरी और हाथ में तीन चार किलो गुड़ लेकर हमारे घर दाखिल हुआ।
हमने अंदाज़ा लगया शायद अंकित के पिताजी हैं। उन्होंने आंगन में चावल की बोरी और गुड़ रखते हुए खा, "अंकित अक्सर आप लोगों के बारे में फोन पर बताया करता है।
क्ह कह रहा था कि मिसेज शर्मा मेरा माँ की तरह मेरा ध्यान रखती है।" ये सब परिवार जैसे हैं।
जब आप गांव से आओ तो उनके लिए कुछ लेते आना।"
आप सब के होते हुए मुझे अंजित की चिंता नहीं है।
हम भाई बहनों का सिर शर्म से झुक गया। हम नज़रें नहीं मिला पा रहे थे।
ऐसा लग रहा था कोई चिल्ला-चिल्ला कर हमारे कानो में कह रहा है -----बिना खंजर के हत्यारे।