अंतर
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रविवार का दिन था, विनय अपने कमरे में बैठा समाचार पत्र पढ़ रहा था, तभी शीतल वहाँ पहुँच गई और बोली, " अजी सुनते हो। ' विनय ने अपने चेहरे के सामने से अखबार हटाया और बोला , " हाँ भई हाँ, घर में तुम्हारी और ऑफिस में बॉस की ही तो सुनता आ रहा हूँ। "
शीतल ने कहा, 'याद है न तुम्हें' विनय बीच में ही बात काटते हुए बोला , ' हाँ मुझे सब याद है , चाय पीने के बाद बाजार चलना है। '
थोड़ी ही देर में शीतल और विनय अपने चार वर्ष के बेटे 'बंटी के साथ डिपार्टमेंटल स्टोर पहुँच गए।
शीतल ने विनय को एक टोकरी थमाते हुए कहा, ' लो पकड़ो इसे। इसमें घर के लिए जरुरी सामान डाल कर, काउंटर पर आ जाओ। दूसरी टोकरी लेकर मैं बंटी के साथ दूसरी ओर जा रही हूँ , इस तरह खरीदारी कम समय में हो जाएगी।
दोनों टोकरी उठा कर अलग-अलग दिशाओं में मुड़ जाते हैं ।
दोनों अपनी अपनी टोकरो में घर का सामान रखते जा रहे थे ।
कुछ ही समय बाद दोनों सामान लेकर कैश काउंटर पर आते हैं।
विनय की टोकरी में कुछ बिस्किट के पैकेट देखकर, एकाएक शीत
ल उस पर भड़क गई . वह माथे पर त्यौरियां चढ़ा कर कहती है, "आपको तो पता है ना, बंटी जल्दी बीमार पड़ जाता है, फिर आपने यह , घटिया कम्पनी के बिस्कुट क्यों ख़रीदे ?''
पास खड़ा बंटी अपने प्रति माँ के इस प्यार को देखकर , फूला नहीं समाता।
शीतल विनय को कहती है , ''वापिस रखकर आइये इन्हे।' ' इस पर विनय, शीतल को समझाने हुए कहता है, ' अरे ये बिस्किट मैंने बंटी के लिए थोड़ी ना खरीदें हैं ,यह तो मैंने पिताजी के लिए खरीदें हैं। "
इस पर शीतल और अधिक भड़क जाती है , वह मुँह बनाकर कहती है , " अरे तुम्हारी अक्ल पर क्या पत्थर पड़ गए हैं? इतने महँगें बिस्किट पिताजी के लिए खरीदने की क्या ज़रूरत थी। वह अपनी टोकरी में से दो बिस्किट के पैकेट निकाल कर दिखती है और कहती है, ' देखो, मैंने ये बिस्किट खरीदें हैं , पिताजी के लिए , बिलकुल आधे दाम में मिले हैं.. बस चूहे ने कोने से इसे थोड़ा सा कुतर लिया है। पास में बंटी मौन खड़ा, इधर -उधर देख रहा है ,वह मन ही मन डर रहा है , कहीं उसके माता -पिता की बातें कोई सुन तो नहीं रहा।