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Sunil Goyal

Horror

4  

Sunil Goyal

Horror

भूतिया स्टेशन

भूतिया स्टेशन

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मुंबई की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में विशेष के हाथों में बंधी, घड़ी कभी रुकती नहीं हैं. मुंबई की फास्ट लोकल की तरह घड़ी और उसकी ज़िंदगी दोनों भागती रहती हैं। एक बड़ी मल्टीनेशनल फाइनेंस कंपनी में सीनियर मैनेजर के तौर पर उसकी पहचान उसके काम और व्यवहार से है।

अपने परिवार से इतनी दूर अपनी पहचान बनाने के लिए बसा हुआ था। वह हर एक चीज को तर्क की कसौटी पर परखता और खरा उतरने पर ही स्वीकारता। अंधविश्वास, भूत-प्रेत जैसे शब्द तो उसकी ज़िंदगी की डिक्शनरी में थे ही नहीं।

लेकिन इस बार कुछ ऐसा घटने वाला था जो उसकी परीक्षा लेने को तैयार था। उसे अपने गांव चमकगंज जाना था। वहां उसके माता-पिता, दादा-दादी और छोटी बहन दिव्या रहते थे। गांव जाने का सोचकर ही उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान बिखर गई थी, पर उसे अंदाज़ा नहीं था कि यह यात्रा उसके जीवन का सबसे बड़ा रहस्य बनने वाली है।

उसने हमेशा की तरह सेकंड AC में रिजर्वेशन करवाया और तय समय पर मुंबई के लोकमान्य तिलक टर्मिनस पर पहुंच गया। अपनी गाड़ी देखी और अपने केबिन में सामान रखकर, अपने आप को सेटल किया, अगल-बगल काफी लोग थे, सेकंड AC का वो डिब्बा लगभग भरा हुआ था। पर उसने उस पर ध्यान नहीं दिया और अपना लैपटॉप खोलकर, खुद को ईमेल और लेटर्स का जवाब देने में व्यस्त कर लिया। उसे पता ही नहीं चला कब ट्रेन ने रफ्तार पकड़ ली और उसका सफर शुरू हो गया। 

यह सफर केवल एक जगह से दूसरी जगह जाने का नहीं थाबल्कि अनजाने में वह अपने जीवन के एक अजीब मोड़ पर कदम रख रहा था। विशेष काफी देर तक लैपटॉप पर काम करता रहा और रात के 10 बजे उसने खाना खाया और जल्द ही नींद ने उसे अपनी गिरफ्त में समा लिया। सुबह जब उसकी आंख खुली, तो ट्रेन लगभग खाली हो चुकी थी। आसपास वाले सभी लोग अपने-अपने स्टेशनों पर उतर चुके थे, उस डिब्बे में उसे छोड़कर इक्का-दुक्का लोग ही बचे होंगे। ट्रेन को स्टेशन पर खड़े-खड़े काफी समय हो चुका था। 

तो विशेष ने उत्सुकता पूर्वक बाहर झांककर देखा। उसे स्टेशन बिल्कुल अनजान लगा, वह पहले भी इस गाड़ी से अपने गांव गया था, पर ये स्टेशन उसने कभी नहीं देखा था। प्लेटफॉर्म पर ना कोई बोर्ड था, ना कोई लोग, और ना ही कोई चहल-पहल। विशेष ने ट्रेन शेड्यूल चेक किया, तो ट्रेन 4 घंटे लेट थी, और वहां से चमकगंज की दूरी तकरीबन 30 मिनट दिखाई दे रही थी।

विशेष को अचानक याद आयाबचपन में उसने कुछ पुरानी कहानियां सुनी थीं। गांव के बुजुर्ग अक्सर एक ऐसे 'अजीब से स्टेशनका ज़िक्र करते थे जो पता नहीं कैसे कभी-कभी ट्रेन के रास्ते में आ जाता हैऔर जिसके बारे में कई रहस्यमयी बातें कही जाती थीं।

गांव वालों के मुताबिक स्टेशन भूतिया है, और वहां उतरना खतरे से खाली नहीं। पर विशेष का दिमाग ये मानने को तैयार नहीं था, उसे लगा ये कोई भ्रम है, ये स्टेशन होता होगा, पर लोगों ने बेफिजूल की कहानियां बना रखी हैं। तो उसने उस वीरान स्टेशन पर उतरने का फैसला किया और सोचा बाहर से बस पकड़कर घर पहुंच जाएगा। यही सोचते-सोचते वो अपना सामान उठाकर जैसे ही ट्रेन के डिब्बे से बाहर निकलता है, तो एक पागल आदमी ना जाने कहां से उसके सामने आ जाता था। 

उसे अचानक से अपने सामने देखकर विशेष पहले तो घबरा जाता है, लेकिन फिर अपने को संभालते हुए उससे दूर करता है। 

पागल बड़बड़ा रहा था...

तुम मुझे कितना भी टॉर्चर कर लो, मैं कुछ नहीं बताऊंगा। तुम गोरी चमड़ी, अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना ही होगा। मेरे साथी तुम्हें छोड़ेंगे नहीं। भारत छोड़कर चले जाओ।

उसकी बातें विशेष को अजीब लगीं, लेकिन उसकी आवाज़ का दर्द और उसके चेहरे के भावों ने उसे अंदर तक झकझोर कर रख दिया। उसके दिमाग में उसके कहे शब्द गूंज उठे, तो विशेष थोड़ी देर के लिए वहीं पास में लगी बेंच पर बैठ गया।

फिर खुद को संभालते हुए, उसने अपने आस-पास देखा, तो पूरा स्टेशन खाली था। ना वहां कोई दुकान थी, ना ही कोई इंसान। स्टेशन की दीवारें जर्जर हालत में थी। चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। हवा में एक अजीब सी ठंडक उसे असहज कर रही थी। वह बेंच जिस पर वह बैठा हुआ था, टूटी-फूटी थी। चारों ओर फैली ऐसी वीरानगी को देखकर उसे लगा जैसे समय ठहर सा गया हो। पर वो डरा नहीं, उसे उस पागल के बारे में जानने की उत्सुकता थीतो वो अपना बैग उठाए, बाहर की ओर चल पड़ता है। बाहर जाते समय भी उसे कोई नजर नहीं आता, ना ही टिकट काउंटर पर कोई था, ना चाय-पानी की स्टॉल खुली थी, ना ही कोई अनाउंसमेंट हो रहा था। 

अब विशेष थोड़ा असहज महसूस करने लगा था, और जल्दी से जल्दी वहां से निकलना चाहता था। उसने अपने कदमों की रफ्तार बढ़ाई और फर्स्ट प्लेटफॉर्म पर जा पहुंचा। वहां से गेट की दूरी 100 मीटर ही रही होगी, पर विशेष को जाने क्या सूझा, वह वहीं रुका और कुछ सोचता रहा। उसकी नजर एक चाय की दुकान पर पड़ी, पूरे स्टेशन पर वही एक दुकान थी, जो खुली हुई थी और जहां एक इंसान था।

विशेष ने सोचा क्यों ना उस पागल के बारे में जाना जाए। तो वो उस चाय वाले के पास पहुंचता है, अपने लिए एक चाय लेता है और बातों ही बातों में उस पागल का जिक्र करता है...

अरे भैया, ये पागल कौन है और क्या ये अंग्रेजों चले जाओ भारत छोड़कर बड़-बड़ा रहा था।

यह सुनकर पहले तो चाय वाला थोड़ा चौंक जाता है, पर अपने आप को सहज करते हुए बोलता है...

आपने देखा उसे साहब

विशेष ये सुनकर बोलता है – हां क्यों, जीता-जागता इंसान है तो दिखेगा नहीं क्या। और इस पूरे स्टेशन पर आप अकेले ही हैं?

अरे नहीं साहब, वो बहुत ही कम लोगों को दिखता है। अब ये स्टेशन पर कोई आता नहीं है, ट्रेनें भी नहीं रुकती ना, हमारी तो पुश्तैनी दुकान है, इसलिए आते हैं। आपके जैसे भूले-भटके कोई ना कोई आ ही जाता है तो उसकी मदद कर देते हैं।

तो बताओ ना, वो कौन है, और उसकी कहानी क्या है...

साहब, वो पागल नहीं, बड़ा ही समझदार व्यक्ति था किसी वक्त। विश्वास, नाम है उसका, यहां पास के एक गांव का रहने वाला है।

आप ही की तरह बड़े शहर में, बड़ी कंपनी में नौकरी किया करता था। बहुत ही पढ़ा-लिखा है। यही से कुछ ही दूरी पर इसका घर है। बहुत ही ऊंचे खानदान से हैइसके पुरखे एक ज़माने में यहां के बड़े हीजाने-माने जमींदार हुआ करते थे। बाप-दादा का भी बड़ा ही नाम चलता था।

पर ऐसा क्या हुआ कि उसकी ये हालत हो गई

क्या बताएं भैया जी, वो दिन मुझे आज भी याद है, मैं हर दिन की तरह उस दिन भी तकरीबन सुबह के ५ बजे अपनी दुकान खोलने आया था।

उस दिन स्टेशन पर ज्यादा भीड़ नहीं थी। इसलिए उन सभी लोगों का झुंड मुझे साफ-साफ दिखाई दे रहा थाघबराये हुएसहमे और चिंता की लकीरें सभी के चेहरों पर नज़र आ रही थीं। मुझे थोड़ा संकोच हुआ पर मदद करने के लिहाज से मैं उनके पास गया और पूछा...

अरे साहब क्या हुआकोई छोटा बच्चा खो गया है क्या?”

पहले तो सभी ने मुझे नजरअंदाज किया पर जब मैंने थोड़ा जोर दिया तो तब एक बुजुर्ग ने अपनी कांपती सी आवाज़ में मुझे बताया...

हमारा २६ साल का लड़का जो कल रात को आने वाला था अभी तक घर नहीं पहुंचा हैउसका मोबाइल भी नहीं लग रहा। TC और कुछ लोगों से पूछताछ की तो पता चला की यहां रात में सिर्फ़ दो पैसेंजर उतरे थेउनमें से एक विश्वास था। उसके बाद से उसे किसी ने नहीं देखा।

अजीब सा था सब कुछइतना बड़ा लड़का आखिर लापता कैसे हो सकता हैवो भी स्टेशन जैसी जगह से। 

कुछ बात तो जरूर थी, उन लोगों ने उसे बहुत ढूंढा और तकरीबन 3-4 घंटों की कड़ी मेहनत के बाद विश्वास, यहीं पास में, वो थोड़ी दूर पर जो रेल यार्ड दिख रहा है, उसके एक डिब्बे में बेहोश मिला।

हमें आज भी याद है, हमने ही एम्बुलेंस को फोन किया था। अस्पताल तक उसके साथ गए थे। पूरे 20 घंटे बाद उसे होश आया था, और उसके बाद जो उसने बताया, उसे सुनकर सभी के होश उड़ गए थे।

विशेष जो सब कुछ अब तक बड़े ध्यान से सब कुछ सुन रहा था, ये सुनकर उसकी उत्सुकता और बढ़ गई। उसने झट से पूछा...

भैया, ऐसा क्या बताया था विश्वास ने

अब आप जानना चाह ही रहें हैं तो आपको शुरू से बताते हैं।

विश्वास यही कोई 10 साल का रहा होगा जब वो यहां से आगरा गया। वहीं पर अपने नाना-नानी के साथ रहा, वहीं स्कूल किया, वहीं से कॉलेज किया और फिर वहीं पर नौकरी लगी। उसके माता-पिता भी वहीं बस गए थेऔर गर्मियों की छुट्टियों में या किसी त्योहार पर भी वो आगरा में ही ज़्यादातर समय बिताते थे। यहां तक कि उसके दादा-दादी भी समय-समय पर आगरा जाकर उससे मिल आते थे। बस कुछ खास दोस्तों और रिश्तेदारों से ही फोन और इंटरनेट के माध्यम से जुड़ा हुआ था वो।

लेकिन उसके दादाजी की तबीयत बहुत खराब हुई तो उसे तत्काल गांव आना पड़ा था।

उस दिन भी आज की तरह ही ट्रेन टाइम से 4-5 घंटे देरी से चल रही थी। विश्वास को गांव पहुंचने की जल्दी थी, क्योंकि दादाजी की तबीयत ज्यादा ही खराब थी, और वो उनसे जल्दी से जल्दी मिलना चाहता था।

उस दिन भी आप की तरह ही उसके डिब्बे में कोई भी नहीं था, लगभग सभी यात्री उतर चुके थे, और एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था। रात के 2 बज रहे थे, विश्वास ने भी आपकी तरह ही बाहर झांककर देखा, प्लेटफॉर्म पर ना कोई बोर्ड था, ना कोई स्टेशन का नाम, और ना ही कोई चहल-पहल।

उसने सोचा, यह स्टेशन बड़ा अजीब है। प्लेटफॉर्म पर कुछ पुरानेजंग लगे हुए डिब्बे पड़े हुए हैं। स्टेशन के ठीक पास एक रेलयार्ड भी बना हुआ है, जहां कभी डिब्बे बनते होंगे या ट्रेनों का रखरखाव होता होगा। दूर से देखने पर उस यहां कुछ टूटी-फूटी ऑफिस की इमारतें भी दिखीं। 

पूरा स्टेशन वीरान था, जैसे सालों से वहां कोई आया ही ना हो। रात के उस सन्नाटे में उस स्टेशन का खामोश और भयावह रूप और भी डरावना लग रहा था। विश्वास समझ नहीं पा रहा था कि वह ऐसी जगह है, और ट्रेन यहां कैसे रुकी।

यही सोचते-सोचते उसने अपनी जेब से फोन निकाला और उस पर ट्रेन शेड्यूल चेक किया, तो वहां पाया कि, ट्रेन का लास्ट स्टेशन यही है। उसे लगा शायद आगे कुछ काम चल रहा होगा, इसलिए यहां पर ट्रेन को रोक दिया गया है, तो वो भी उतर गया। उसने सोचा 30 मिनट ही तो है यहां से कोई ना कोई ऑटो या बस तो मिल ही जाएगी।

एक बार को उसके दिमाग में ये ख्याल आया कि, कहीं ये वही स्टेशन तो नहीं, जिसके बारे में अक्सर गांव वाले बातें करते रहते हैं। बचपन में उसने ऐसी कई कहानियां सुनी थी, जहां एक भूतिया स्टेशन पर ट्रेन रुकती है, पर वो तो कहानियां ही थी, यही सोचकर उसने सब बातों को इग्नोर किया, और ट्रेन से अपना सामान उठाकर बाहर निकल आया। अपने चारों और देखा, उस स्टेशन पर उतरने वाला सिर्फ़ वही था।

जैसे ही उसने स्टेशन पर पहला कदम रखा, उसे अजीब सी घबराहट और बेचैनी महसूस हुई। दिल-दहला देने वाली खामोशी, हवा में घुली अजीब सी ठंडक ने उसे असहज कर दिया। ऐसी वीरानगी उसने पहले कहीं नहीं देखी थी, उसे एक लग रहा था मानो एक अनदेखी शक्ति उसे अपनी ओर खींच रही है। उसने गांव वालों की कहानियों पर कभी यकीन नहीं किया था, लेकिन आज वो बातें उसे थोड़ी-थोड़ी सही लग रही थीं।

खैर उसने अपने दिमाग को शांत करते हुए, आगे बढ़ने का फैसला किया। वो कुछ ही कदम चला होगा कि उसे अपनी सीने में एक अजीब सा भारीपन महसूस हुआ, लगा जैसे किसी ने 100 किलो का पत्थर उसके सीने पर रख दिया हो। उसने झट से अपने बैग से पानी की बोतल निकाली और कुछ घूंट पानी के गटक लिए। इससे उसे थोड़ी राहत तो मिली, पर यहां का माहौल अभी भी उसे बेचैन कर रहा था।

तभी अचानक से उसे कुत्तों और सियारों के दूर कहीं रोने की आवाजें सुनाई दी। फिर अचानक से उसके पीछे कुछ झींगुरों ने आलाप शुरू कर दिया। फिर रेल की पटरियों पर इधर-उधर दौड़ते चूहे और उनके दांतों से कुतरने की आवाजें उसे परेशान करने लगी। 

विश्वास को थोड़ा डर तो महसूस हो रहा था लेकिन उसे यहां से जल्दी निकलना था, तो वह तेज़ कदमों से गेट की तरफ बढ़ता है। लेकिन उसने कुछ ही कदम बढ़ाए थे कि तभी अचानक उस सन्नाटे को चीरती हुई एक चीख निकली और फिर शांत हो गई। विश्वास को अपना नाम भी सुनाई दिया, उसने तुरंत पीछे मुड़कर देखा, लेकिन कोई नहीं था। उनसे जल्दी से कदम बढ़ाए, पर दोबारा से उसे अपना नाम सुनाई दिया। इस बार पीछे मुड़कर देखा तो उसे स्टेशन के एक कोने में उसे अपनी दादाजी की आकृति दिखाई दी। 

जिसे देखकर वो किसी अनजानी नींद में चला गया और उस तरफ बढ़ने लगा। उसका दिमाग उसे मना कर रहा था, लेकिन उसके कदम रुक नहीं रहे थे। वो चलते-चलते उस जगह पहुंच गया, जहां उसे दादाजी नज़र आए थे। वहां पर जंग खाए हुए रेल के डिब्बे, टूटी-फूटी लोहे की पटरियां, कुछ पुराने खिलौने और फटे-पुराने कपड़े पड़े हुए थे। 

वो सभी चीजों को ध्यान से देखता रहा, और फिर उनसे अपने कंधे पर किसी का हाथ महसूस किया। पसीने की कुछ लकीरें विश्वास के सर से चेहरे पर तैरती हुई उसके गले तक पहुंच गईवो धीरे से पलटकर देखता हैउसके पीछे कोई नहीं था। उसे लगा, उसे वहम हुआ है। वो आगे बढ़ता है, तभी अचानक कहीं से उसके ऊपर एक काली बिल्ली कूदती है।

बिल्ली के ऐसे अचानक कहीं से आ जाने से विश्वास बेहद डर जाता है और अपना संतुलन खोकर गिर जाता है। गिरने के कारण उसके सर के पिछले हिस्से में चोट लग जाती है, और खून का रिसाव भी होने लगता है।

विश्वास संभलकर उठता है, अपनी जेब से रूमाल निकालकर चोट साफ करता है, पानी के कुछ घूंट पीता है। वो अभी थोड़ा संभला ही था कि उसे वापस से दादाजी दिखाई देते हैं, जो कि वहां खड़ी रेल के एक डब्बे में जाकर, उसकी आंखों से ओझल हो जाते हैं।

विश्वास छोटे-छोटे कदमों से उस डिब्बे की ओर बढ़ता है, और झांककर देखने की कोशिश करता है कि सही में उसने दादाजी को देखा या उसका कोई भ्रम था। इतने में ही अचानक से कोई उसे डिब्बे में अंदर खींचकर, पूरी ताकत से जमीन पर पटक देता है। इस तरह के अचानक हमले और जमीन पर पटके जाने से विश्वास की पीठ में गहरी चोट लगती है। उठकर भागना तो दूर, उससे हिला भी नहीं जा रहा था। उसकी जान पर बन आई थी। उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था, जहां से विश्वास डिब्बे में झांक रहा था, अब वो कोना भी अब बंद हो चुका था।

अंदर गहरा अंधेरा था, हाथ को हाथ नहीं सूझता था और ना बाहर जाने का कोई रास्ता उसे नज़र आ रहा था। उसे सिगरेट पीने की आदत थी, तो अधिकतर लाइटर या माचिस उसकी जेब में हुआ करती थी। अपनी जेबें टटोलने पर उसे माचिस मिली, पर जैसे ही उसने तीली जलाई, उसके उजाले में एक भयानक चेहरा उसकी आंखों के सामने था। बड़ी-बड़ी खून सी लाल आंखें, चेहरे पर कई निशान, और बिखरे हुए बाल। उस चेहरे को देखकर विश्वास भयंकर रूप से घबराकर तीली बुझा देता है। विश्वास इतना डर गया था कि वापस तीली जलाने की उसकी हिम्मत ही नहीं हुई, वो वहीं पड़ा-पड़ा सोचता रहा, आखिर कैसे वहां से निकला जाए।

वो किसी तरह घिसटता हुआ डिब्बे के कोने में पहुंचता है, वहां एक दरवाजा था, जो कि बगल के डिब्बे में खुलता था। विश्वास जैसे-तैसे खड़ा होता है और उस दरवाजे को खोलने की कोशिश करता है। पर जैसे ही दरवाजा हल्का सा खुलता है, वहां से अजीब-अजीब तरह की आवाजें विश्वास को सुनाई देने लगती हैं। आवाजें इतनी खौफनाक थीं कि किसी के भी दिल में डर पैदा कर दें। विश्वास वहां खड़े-खड़े कांप रहा था। उसने हिम्मत कर दरवाजे से झांका, तो वहां वो देखता है, कई लोग बेड़ियों से बंधे हुए हैं, कुछ को बर्फ की सिल्लियों पर लिटाकर कोड़े मारे जा रहे हैं। कुछ लोगों के अंगों को गर्म लोहे की सलाखों से जलाया जा रहा है। कुछ लोगों को गर्म तेल में डाल दिया जा रहा है। किसी को कीड़ों से भरे ड्रम में पटका हुआ है।

कुछ लोग जमीन पर पड़े तड़प रहे थे। कुछ को उल्टा लटकाकर उनके सर को कपड़े से बांधकर चूहों को छोड़ दिया गया था। और ये सब हो रहा था, कुछ 6-7 लोगों की निगरानी में, सभी का डील-डौल लंबा चौड़ा था, 6 फीट हाइट रही होगी। सभी ने काले रंग के कपड़े पहने हुए थे, चेहरों को भी काले रंग के कपड़े सी ढका हुआ था, और सभी के हाथों पर एक बाज का निशान गुदा हुआ थाउन्हें देख कर लग रहा था मानों सभी एक ही परिवार या किसी कबीले का हिस्सा हैं।

विश्वास इस भयावह दृश्य को देखकर वहीं बर्फ सा जम गया, और उसी दौरान ना जाने कैसे उससे दरवाजा बहुत तीखी आवाज के साथ थोड़ा सा खसक गया। इस आवाज से उन लोगों की ध्यान इस तरफ खींच गया, और उन्होंने विश्वास को देख लिया।

विश्वास ने तुरंत दरवाजा बंद करने की कोशिश की, लेकिन एक 6 फुट लंबे आदमी ने अपने हाथ से दरवाजा पकड़ लिया। 

विश्वास का दिल जोरों से धड़क रहा थामानो अभी बाहर आ जाएगा। उसने आंखें बंद कर लीं, इसी उम्मीद में कि शायद यह सब कुछ बस एक बुरा सपना हो, और जब वो आंखें खोले सब कुछ नॉर्मल हो जाए। लेकिन जब उसने आंखें खोलींतो उसने देखा कि उस लंबे आदमी का हाथ अभी भी दरवाज़े पर जमा हुआ था। उसकी पकड़ इतनी मज़बूत थी कि विश्वास को लगा जैसे 10 हाथियों की ताकत उसके एक हाथ में हो। 

विश्वास ने अपनी पूरी जान लगाकर दरवाज़े को धकेला, उसकी सांसे तेज़ हो गई थीं और माथे पर पसीने की बूंदें छलक रही थीं। मगर वो नाकामयाब रहा, और उस आदमी के हाथों पकड़ा गया।

विश्वास ने छूटने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी, चिल्लाने की कोशिश की, लेकिन एक मुक्का उसके पेट में पड़ता है और उसकी तेज आवाज हवा में गूंज जाती है। इतने में ही दूसरा मुक्का उसके चेहरे पर पड़ता है और उसकी आंखों के सामने अंधेरा जा जाता है।

जब विश्वास को होश आयातो उसे लगा जैसे उसका पूरा शरीर आग से जल रहा हो. उसकी आंखें धुंधली थींलेकिन उसने खुद को उसी डिब्बे में पाया, जहां उसने बाकी लोगों पर यातनाएं होते देखा था। उसके हाथ और पैर जंजीरों से कसकर बंधे हुए थे।

उसने आस-पास देखने की कोशिश की पर सर के पीछे लगी चोट और मुक्के की मार से उसका सर घायल था। उसका शरीर दर्द से कराह रहा था। अपनी आंखों के किनारों से वह देखता है कि एक आदमी बर्फ की सिल्ली पर लेटा था और दो लोग उसे कोड़े मार रहे थे। हर एक कोड़े के साथ उसकी चीख हवा में गूंज रही थी। उससे कुछ ही दूरी पर एक और आदमी को गर्म लोहे की सलाखों से दागा जा रहा था। जलते हुए मांस की गंध हवा में फैल रही थी, जिसके कारण विश्वास को मितली आ रही थी।

"तो जाग गए तुमचूहे?" 

वही कर्कश आवाज़ विश्वास के कानों में पड़ी, उसने ऊपर देखा, वही 6 फीट लंबा आदमी उसके ऊपर झुका हुआ था। उसके हाथ में एक चमड़े का चाबुक था, जिस पर लोहे के कांटे लगे हुए थे।

चाबुक देखकर विश्वास के पूरे शरीर में सिहरन दौड़ गई। उस पता था कि अब उसकी बारी है, उसने आंखें जोर से बंद कर ली, मानो वह दर्द सहने के लिए खुद को तैयार कर रहा हो। उसे पहला कोड़ा पड़ता है, फिर दूसरा, तीसरा और फिर कोड़ों की बारिश होने लगती है। विश्वास पूरी तरह से लहूलुहान हो चुका था, उसकी सांसें उखड़ रही थीं। लेकिन वह आदमी बेरहमी से विश्वास को मारे जा रहा था और तब तक मारता रहा जब तक विश्वास बेहोश नहीं हो गया।

लगभग 1 घंटे बाद विश्वास को होश आता है, तो वो देखता है कि वो लोग अभी भी बाकी लोगों को यातनाएं दिए जा रहे हैं। उसने अपनी बेड़ियों को खींचने की कोशिश कीलेकिन वे टस से मस नहीं हुईं। उसका शरीर पहले से ही कमज़ोर पड़ रहा था।

"हमें पता था तुम भागने की कोशिश करोगे," एक ठंडीसपाट आवाज़ आई। 

यह उस आदमी की आवाज़ नहीं थी जिसने उसे पकड़ा थाबल्कि एक पतलीलेकिन बेहद कर्कश आवाज़ थी. 

"यहां से भागने की कोशिश कर रहे हो, वो चैन नहीं टूटने वाली। एक बात और बता दूं, इस स्टेशन से आज तक कोई नहीं भागा सकाऔर न कभी भाग सकेगा।"

विश्वास ने दर्द से कराहते हुए उस आवाज़ की तरफ़ देखा एक और आदमीजो दूसरों से कुछ इंच थोड़ी छोटी थीउसके पास आ रहा था। उसके हाथ में एक धातु का एक नुकीला औज़ार थाजो कि चमक रहा था। विश्वास की सांसें तेज़ हो गईं।

"तुम... तुम लोग कौन हो?" विश्वास ने बमुश्किल आवाज़ निकाली।

छोटी आदमी हंसाउसकी कर्कश हंसी,  हड्डियों तक सिहरन पैदा कर रही थी। 

"हम कौन हैं?

हम वही हैं जो भूले-भटके लोगों को उनका सही रास्ता दिखाते हैं। वह रास्ता जहां से किसी की वापसी नहीं होती।"

हम हैं, पापसी कबीला, और ये है हमारा शुद्धिकरण स्टेशन’, जिसे लोग आजकल भूतिया स्टेशन भी कहते हो। और जिस ट्रेन से तुम यहां आए वो है, हमारी कर्म एक्सप्रेस। वो हर रात अदृश्य रास्तों पर ये चलती है, वास्तविकता और अवास्तविकता के बीच।

जो लोग, अपने जीवन में अत्यधिक पाप करते हैं या अपने किए गए कर्मों का प्रायश्चित नहीं करते, उन्हें हम यहां शुद्धिकरण के लिए खींच लाती है। 

यह सब सुनकर विश्वास की आंखें फटी की फटी रह गई। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वो यहां कैसे पहुंचा। उसने उस आदमी को बीच में रोकते हुए पूछा...

पर मैंने तो आज तक कोई पाप नहीं किया, फिर मुझे यहां क्यों लाए?”

विश्वास की यह बात सुनकर छोटी आकृति जोर से हंसी, उसकी हंसी में एक अजीब सी क्रूरता था।

पाप नहीं किया’, तुम्हें ऐसा लगता है।

हर इंसान जाने-अनजाने में ऐसे काम करता है, जिसका परिणाम दूसरों को भुगतना पड़ता है। तुम्हारा यहां आना ही इस बात का सबूत है कि तुम्हारी आत्मा का शुद्धिकरण जरूरी है।

इतना बोलकर वो विश्वास के करीब पहुंचा, और अपने हाथों में लिया चमकता नुकीला औजार विश्वास के कंधे में घुसा दिया और बोला...

"तुम्हारी याददाश्त धुंधली हो सकती हैलेकिन हमें सब पता है। 

विश्वास की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा। उसे कुछ धुंधली यादें कोंचने लगीं। उसने बहुत कोशिश कीलेकिन उसे अपना कोई पाप याद नहीं आ रहा था।

विश्वास ने अपनी बेड़िया एक बार फिर खींचीं, उसकी आखों में गुस्सा और निराशा थी। 

"मैं... मैं समझ नहीं पा रहा हूं तुम क्या कह रहे हो! मैंने ऐसा कुछ नहीं किया!"

"यही तो तुम्हारी समस्या है, विश्वास," एक कुटील मुस्कान के साथ छोटी आकृति ने कहा, उसकी आवाज़ अब फुसफुसाहट में बदल गई थी, लेकिन वह हड्डियों तक ठंडक पहुचा रही थी। 

"तुम अपने कर्मों का सामना करने से डरते हो। लेकिन यहां, इस शुद्धिकरण स्टेशन पर, तुम्हें सब कुछ याद आ जाएगा। हर एक पाप, हर एक गलती, तुम्हें अनुभव करनी होगी।"

इतना कहकर फिर से उसने नुकीला औज़ार विश्वास के कंधे में धंसा दिया। विश्वास दर्द से चीख उठा, उसकी आंखें बाहर निकलने को हो गईं। उस आदमी ने औज़ार को धीरे-धीरे घुमाया, जैसे कोई कलाकार अपनी मूर्ति को तराश रहा हो।

"यह सिर्फ़ शुरुआत है," उसने कहा।

"तुम्हें हर उस दर्द से गुज़रना होगा, जो तुमने अनजाने में भी किसी को दिया है। यह तुम्हारी आत्मा को शुद्ध करने का एकमात्र तरीका है।"

विश्वास की आंखों में आंसू भर आए, लेकिन वह जानता था कि ये आंसू उसे बचा नहीं सकते। उसने देखा कि बाकी लोग भी अब उसकी तरफ़ देख रहे थे, उनकी आंखों में एक अजीब-सी चमक थी – दर्द की, स्वीकार्यता की, और शायद, मुक्ति की।

विश्वास सोच में डूबा हुआ था, अब एक-एक करके उसकी आंखों के सामने ज़िंदगीभर की गलतियां आ रही थीं। बचपन में घर से चुराए हुए कुछ पैसे, स्कूल में बच्चों को तंग करना, कॉलेज में रैगिंग और ना जाने क्या-क्या। लेकिन विश्वास को लग रहा था, यह कोई बड़ी लगती नहीं थीं, जिसके लिए यह सजा दी जाए।

विश्वास का शरीर दर्द से टूट रहा था, लेकिन बाहरी दर्द से कहीं ज्यादा भीषण और भयावह था अंदरूनी पीड़ा। हर घाव, जो आदमी उससे शरीर पर दे रहा था, उसके दिमाग में दबे हुए दृश्यों को खोल रहे थे। अब उसका दिमाग, यादों का हर एक कोना खंगाल रहा था, उन यादों को बाहर निकाल रहा था, जो कहीं गहराई में कहीं दफ़न हो गए थे।

उसे याद आई, कई साल पहले की बात। उस समय वह एक बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम कर रहा था। वहां उसे एक बड़ा प्रोजेक्ट दिया गया। प्रोजेक्ट था एक झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाके को खाली करवाकर वहां एक बड़ी कमर्शियल कॉम्पलेक्स बनवाने का। विश्वास को याद आया किस तरह से उसने अवैध तरीकों से सरकारी कर्मचारियों और स्थानीय नेताओं के साथ मिलकर, उस जगह को जबरन खाली करवाया था। जिसके चलते कई परिवार बेघर हो गए, कई लोगों की तो जानें तक चली गईं थी।

विश्वास ने उस समय इसे सही माना था, तब वह मानता था कि काम के बीच में बाधा बनने वालों को हटा ही देना चाहिए। इसलिए उसे कुछ गलत नहीं लगा।

दर्द की एक और लहर ने विश्वास को जकड़ लिया। अपनी छोटी-मोटी गलतियों के अलावा झुग्गी में रहने वाले लोगों के मायूस चेहरे उसकी आंखों के सामने नाच रहे थे। वह चीख़ना चाहता था, इन भयानक यादों से मुक्ति पाना चाहता था, लेकिन उसकी आवाज़ गले में ही घुट गई थी।

उस आदमी ने गहरी सांस ली, जैसे वह उसके दर्द का स्वाद ले रही हो।

"देखते जाओ, विश्वास। तुमने अपने काम के लिए कितने लोगों को कुचला है। वह लोग जिनका जीवन तुमने बर्बाद कर दिया, वह लोग जो अपनी ज़िंदगी से हाथ धो बैठे, उनकी आत्माएं, आज इस 'शुद्धिकरण स्टेशन' में तुम्हारे आने पर बेहद खुश होंगी।

इतना कहकर उसने विश्वास के दूसरे कंधे में भी नुकीला औजार घुसा दिया और कहा...

"यह तो बस शुरूआत है "

इसके साथ ही विश्वास की एक चीख हवा में गूंज उठी। और इसी के साथ चाय वाले की आवाज़ भी थम गई।

विशेषजो अब तक सांस रोके सब कुछ सुन रहा थाउसकी धड़कनें तेज़ हो गईं। उसे लगा जैसे उसके कान बज रहे होंया शायद यह स्टेशन की ही खामोशी थी जो गूंज रही थी।

विशेष ने देखाचाय वाले की आंखें कहीं दूर शून्य में ताक रही थीं। उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति थीजैसे वह किसी गहरी नींद में हो। विशेष को अचानक ठंड का अहसास हुआ। यह वही ठंड थीजो विश्वास ने स्टेशन पर कदम रखते ही महसूस की थी।

वह डरते हुए तुरंत अपनी बेंच से उठा। उसके पैर लड़खड़ा गए। उसने चारों ओर देखा स्टेशन अभी भी वीरान था, कोई नहीं था, सिर्फ़ हवा की सरसराहट और कहीं दूर से आती कुत्तों के रोने की आवाज़ें, जो अब उसे और भी डरावनी लग रही थीं। चाय वाले की दुकान पर भी कोई हलचल नहीं थी, चाय वाला भी अचानक से गायब हो गया और चाय का पतीला ठंडा पड़ा हुआ था।

यह सब देखकर विशेष की आत्मा सिहर उठी। वह तेज़ी से स्टेशन के गेट की और भागा, वो कैसे भी इस जगह से निकलना चाहता था। लेकिन एक अदृश्य शक्ति उसे रोक रही थी, वह घूमकर वहीं चाय की दुकान पर पहुंच जाता।

करीबन 5 से 6 बार वह उसकी दुकान पर पहुंच चुका था। उसकी सांसे हांफने लगी थी, वह थोड़ी देर रुका और सोचने की कोशिश की, कैसे यहां से निकला जा सकता है। वह अपने विचारों में ही था कि अचानक से, उसे अपने पीछे किसी के कदमों की आवाज़ सुनाई दी। वह झट से मुड़ा, तो देखा कि एक काली बिल्ली फुर्ती से उसके पैरों के बीच से गुज़र गई और फिर हवा में गायब हो गई।

इस बात ने उसे अंदर तक हिला दिया। उसके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया। तभी उसे अपने भीतर एक आवाज़ सुनाई दी। आवाज धीमी, लेकिन स्पष्ट थी और उसके भीतर गूंज रही थी...

“अब तुम्हारी बारी है विशेष, तुम्हारा शुद्धिकरण ज़रूरी है

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