बहूरानी
बहूरानी
"तुम्हें कोई काम ढंग से करना नही आता, क्या सोच कर मेरी सासुमां ने तेरी शादी मेरे गुणी बेटे से करवा दी। कहां वो, और कहां तुम।" शीलादेवी बड़बड़ाती हुई रसोई में से निकली।
अंदर गौरी बड़ी शांति से रसोई मे गिरी हुई सब्जियों को उठाती हुए सोच रही थी, "उनमें और मेरी माँ मे कोई अंतर नही है। वो भी बिना बात के चिल्लाती थी ये भी।"
गौरी को शादी करके घर मे आये हुए अभी पंद्रह दिन हुए होगे, फिर भी शीलादेवी ने उसका जीना हराम कर रखा था। बात बात पर चिल्लाना, हर काम मे गलतियां ढूंढना बस यही काम शीलादेवी हर रोज किया करती थी। उन्हें गौरी फूटी आख नही भाती थी, इसके पीछे का कारण था की वह अपने लड़के राहुल के लिए एक पढ़ी लिखी, आज के जमाने की लड़की चाहती थी। और इधर गौरी बस दस तक पढ़ी थी। शीलादेवी इस हद तक गुस्सा थी की उनका बस चले तो वह उसे अभी धक्के मार के घर से निकाल दे, और अपने बेटे के लिए अपनी पसंद की बहू लाये।
ऐसा नही था की शीलादेवी ने शादी से पहले इसके लिए कोशिश नही की थी। उन्होंने पूरी कोशिश की थी की राहुल और गौरी की शादी ना हो। अपना एड़ी-चोटी का दम लगा दिया था यह शादी रोकने के लिए। लेकिन उनकी अपने पति और सासु के सामने एक नही चली, और न चाहते हुए भी शादी करवानी पड़ी।
आज का पूरा दिन उसी तरह से गुजरा जैसे गौरी के आने के बाद से गुजरता है। रात को खाना खाने के बाद भी उनका मन शांत नही हुआ अंदर मानो गुस्से के मारे ज्वालामुखी फट रहे हो। गुस्से ही गुस्से में वो छत पर जाने के लिए निकल पड़ी। थोड़ी देर अपनी सासु को कोसा। फिर गौरी को कल और अच्छे से सबक सिखाने की सोच के साथ वह सो ने के लिए वापिस आ रही थी की सीढ़ियों पर से गिर गई।
बहुत भागदौड़ भरा महौल था घर मे। फिर किसी तरह उन्हें हॉस्पिटल ले जाया गया। जहाँ दो दीन तक उनका इलाज चला लेकिन बच नही सकी और चल बसी। थोड़े दिनों तक घर मे शौक का माहौल रहा। धीरे-धीरे सब सामान्य होने लगा।
शीलादेवी को मरे हुए अब छह-सात महीने होने को आये थे, घर पूरी तरह से सामान्य हो चुका था। गौरी ने भी अपनी जिम्मेदारी बखूबी उठा ली थी। और काम करने में कभी कोई आलस नही दिखाया।
अचानक एक शाम को गौरी को बर्तन माजते वक़्त पानी में कुछ महसूस हुआ, उसने ध्यान से देखा लेकिन कुछ नही दिखा। फिर अपने काम को लग गई। पूरा रसोई घर साफ कर के बहार जाने लगी तो उसको उसके पीछे किसीकी आहत महसूस हुई, उसने पीछे मुड़कर देखा तो पूरा रसोई घर बिखरा हुआ था। वह सोचने लगी अभी तो ठीक था अचानक ऐसा कैसे हो गया। अचानक लाईट चली गई, थोड़ी देर में वापिस आ गई। लाईट आने पर गौरी देखती है की रसोई घर जैसा था वैसा ही है। यह देखकर गौरी को लगता है, थकावट के कारण यह सब हो रहा होगा। इसलिए वह सोने को चली जाती है।
सोये हुए एकाद घंटा बिता होगा की उसको अपने उपर भार महसूस होने लगता है। धीरे धीरे वह बढने लगता है। गौरी को लगता है की वह इस भार के नीचे दब जायेगी। डर के मारे चिल्लाने लगी लेकिन इसकी आवाज नही निकल रही थी। पसीने से पानी पानी होने लगती है। और एक आवाज सुनाई देती है।
"तेरे कारण मेरी जिंदगी गई। मैं तुझे छोड़ने वाली नही हूँ।"
लेकिन कैसे भी करके गौरी खड़ी होने में कामयाब हो जाती है। वह पूरी तरह से पसीने से लथपथ थी। वह डरते हुए राहुल को उठाती है और पूरी घटना बताती है। राहुल हंसी मे टालते हुए कहता है की "डरावने सिरियल मत देखा करो, और अब सो जाओ।" गौरी राहुल को विश्वास दिलाने की पूरी कोशिश करती है, लेकिन राहुल को उस पर विश्वास नहीं आता।
गौरी ने सोने की बहुत कोशिश की, लेकिन निंद नही आई। पूरी रात डर के साये में गुजरी। उसे बस वहीं आवाज बारबार याद आती और वो डर जाती। वह इतना डर गई की सुबह होते होते उसे बुखार आ गया।
एक दिन बीता, दूसरा दिन बीता लेकिन बुखार उतरने का नाम ही नही ले रहा था बल्कि बढ़ता ही जा रहा था।
तीसरी शाम को वो आवाज वापस सुनाई देती है। "क्या लगता है तुझे, ऐसे बिस्तर पकड़ लेगी तो बच जायेगी। मैं तुझे छोडने वाली नही हूँ।" यह सुनते ही गौरी कांपने लगी, उसके मुंह से आवाज तक नही निकल रही थी। गौरी बहुत ज्यादा डर गई और बेहोश हो गई।
जब वह उठी तो अपनी माँ को अपने पास पाया। गौरी ने उनको पूरी बात बताई तो उन्होंने बिमारी का कारण बताते हुए बात टाल दी।
गौरी की मुश्किलें कम होने का नाम नही ही ले रही थी। एक तरह कोई उसकी बात पर विश्वास नही कर रहा था वहीं दूसरी तरफ वह सब चीजें उसे और डरा रही थी।
एक शाम जब गौरी यह सब सोच रही थी तो उसे अपनी हालात पर रोना आ गया। फूट फूट कर रोने लगी।
रोते रोते गौरी बोली, "किस की मदद लू, कोई मेरी बात पर विश्वास करने को तैयार ही नहीं है। मुझे तो पता ही नही, आखिकार वो सब है क्या? क्या करु कुछ समझ मे नही आ रहा।"
फिर भी हिम्मत नहीं हारती और काम करने मे लग जाती है।
लेकिन हालात बद से बदतर होते जा रहे थे। कहीं कुछ करने जाती तो उसका उल्टा होता दिखाई देता। पूरे पूरे दिन परेशानियों मे गुजरते थे। फिर भी कैसे भी हालात संभाले हुए थी।
एक शाम इस सब परेशान होकर अपने हालात पर रो रही थी।
तभी एक आवाज सुनाई दी। "बेटा, रो ने से क्या हालात सुधर जाएगे। या तेरी सास तुझे परेशान करना छोड़ देगी।
गौरी आश्चर्यचकित होकर सोचने लगी। कौन बोल रहा है? मेरी सास यह सब कर रही है, उन्हें तो गये हुए महीने बीत गये।
एक परछाई उसके सामने आई। उसे देखकर गौरी बोली," दादी !!! "
" बेटा, तेरी सास ही है जो यह सब कर रही है। "
" लेकिन आप यह सब कैसे जानती है!! और आखिर वह यह सब क्यों करेगी। "
" बेटा, तेरी सास तुझसे पहले से ही नफरत करती थी। और तो और उसकी मौत का कारण भी वो तुझे ही मानती है। और रही मेरे यह सब जानने की बात तो यह सब मे तुम्हें नही बता सकती। "
यह सब सुनकर बोली," कोई रास्ता होगा उनको शांत करने का। कोई पूजा, हवन या कोई विधि तो होगी वो करवा कर उन्हें शांत कर देते है। "
" अगर तुझे इस सबसे छुटकारा चाहिए तो तुझे उसके गुस्से को हराना होगा। " दादी ने जवाब देते हुए कहा।
गौरी ने पूछा," आखिर मैं यह सब करूं कैसे? "
" उसका तो बस एक ही रास्ता है की तुझे इस घर की अच्छी बहु बनना पड़ेगा। और इस घर के लोग तुझे पसंद करने लगगे वैसे वैसे ही तेरी सास और उसका गुस्सा कमजोर होने लगेगा। और मैं तुमसे एक ही बार बात कर सकती हूँ जो मैं कर चुकी हूँ अब मुझे जाना होगा।"यह सब कहते हुए दादी की आत्मा गायब होने लगी।
गौरी मन मजबूत करते हुए इस काम मे लग गई।
अगली सुबह गौरी पूरी तैयारी के साथ काम की शुरुआत कर दी। दोपहर तक दीन अच्छे से बीता। उसके बाद घर का काम करने गई तो जैसे भूंकप आया हो वैसा दृश्य दिखाई देने लगा। कैसे भी करके वो हालात से बहार निकली तो घर जैसा था वैसा ही पाया। और आवाज सुनाई दी, "मेरी जिंदगी उथल-पुथल करके तुम्हें क्या लगता है की तुम इतनी शान से चल पाओगी।"
गौरी इन सब बातों को नजरअंदाज करते हुए अपने काम को जुट गई।
थोड़े दिन शांति से गुजरे।
एक दिन गौरी घर में पौछा मार कर खत्म करने वाली ही थी की उसके पीछे कोई है ऐसा लगता है,तो वो पीछे मुड़कर देखती है तो पूरा फर्श खून से सनाबोर था। यह देखकर वो चिख पडी और उसके हाथ से बाल्टी गिर जाती है। पूरा फर्श वापिस गंदा हो जाता है।
इस तरह से थोड़े थोड़े दिनों में ऐसे वाक्ये होते रहते थे, फिर भी गौरी ने हार नही मानी और पूरी लगन से काम करती रही।
इसी दौरान घर मे एक छोटी सी पार्टी रखी गई।
गौरी पूरी पार्टी की तैयारी बहुत बढ़िया ढंग से करती है। घर के सब लोग उसकी इस लगन से बहुत खुश थे।
पार्टी शुरू होती है। सब लोग आना शुरू हो गये।
जैसे ही गौरी सबसे मिलना शुरू किया शीलादेवी उसे दिखने लगी। गौरी जिससे भी मिलती वह उसके बारे कुछ ऐसा बोलती की उसकी हसी निकले लेकिन गौरी इसमे से बखूबी निकल जाती है।
अचानक माहौल डरावना हो जाता है और पार्टी के सब लोग डरावने लगने लगते है। जिस किसी के पास जाती तो जैसे वो उसे मार कर खा जाऐगा ऐसा लगता था। लेकिन गौरी हिम्मत नहीं हारी।
पार्टी खत्म होती है।
पार्टी के साथ शीलादेवी के गुस्से की हार होती है। सब लोग गौरी की तैयारियों की और महेमान नवाजी की बड़ी तारीफ करते है।
इस तरह गौरी अपनी हिम्मत और लगन से जीवन की कठिन परिस्थिति से बहार निकल जाती है।