सपनों की दौड़
सपनों की दौड़
एक गधा था। जो दिन-रात एक ही सपना देखता रहता था की वो दौड़ में सबसे तेज दौड़कर पहला नंबर हासिल करे और दुनिया को दिखा दे की उसके जितना तेज और कोई नहीं दौड़ सकता।
वह इस सपने में इस कदर खोया रहता की उसका कोई काम में दिल नही लगता और ना ही वो कोई काम करता। वह बस बैठे - बैठे यही सोचता रहता।
एक दिन उसको शहर में होने वाली दौड़ की प्रतियोगिता का पता चला। वो कैसे भी करके प्रतियोगिता में भाग लेने पहोंच गया। पहुंचते ही उसने अपने आप को प्रतियोगिता का विजेता मान लीया और उसी तरह बर्ताव करने लगा।
दौड़ शुरू हुई। वो पूरी ताकत से जितना तेज हो सके उतना तेज दौड़ा। लेकिन थोड़ी देर के बाद थकने लगा, उसकी सांसें फूलने लगी। वह पूरी ताकत लगा दी। थ
ोड़ी देर बाद उसमें इतनी भी ताकत नही रही की एक कदम भी नही चल सकता। और दूसरा कोई विजेता बन गया।
उसका सपना उसकी आंखों के सामने टूट गया। वो निराश हो गया। जब वह वापस जाने लगा तो जो विजेता था उसके पास आया और बोला, " क्या हुआ बहुत दुःखी लग रहे हो, प्रतियोगिता में हार जीत लगी रहती है। उसे दिल पे नही लगाते।"
गधे ने बड़ी उदास आवाज में पूछा, " आखिर तुम्हारी जीत का राज क्या है? "
उसने कहा, " कड़ी महेनत और क्या।"
" क्या तुमने नही की?" यह सूनकर गधे को याद आया की उसने सपने बुनने के अलावा कुछ नहीं की। उसे अपनी करनी पर बहुत अफसोस हुआ।
सफलता सिर्फ सपने देखने से नहीं मिलती। उसके पीछे महेनत करनी पड़ती है।