भिखारी कौन !!
भिखारी कौन !!
भूख से बिलखते बच्चे को जब भिखारिन ने कराया स्तनपान तो अहंकारी युवक को समझ आया जरुरत का मोल।
मैं पत्नी व नवजात बच्चे के साथ कार से लखनऊ जा रहा था। पत्नी गाड़ी में बज रहे म्यूजिक को सुनने में व्यस्त थी और दुधमुंहा बेटा सो रहा था। हम लोगो को जिस समय लखनऊ पहुँचना था, उस हिसाब से हम काफी लेट हो चुके थे।
सब कुछ ठीक चल रहा था कि लखनऊ से पहले जाम के कारण यातायात रुका हुआ मिला। गाड़ी से उतरकर मैंने पता किया तो लोगों ने बताया कि आंधी के कारण रास्ते में पेड़ गिर गए है। इसी वजह से यातायात रुका है और स्तिथि सामान्य होने में समय लगेगा।
मैं सोच रहा था कि लखनऊ जल्दी पहुँच जाऊंगा तो वापस लौटना भी जल्दी हो जाएगा लेकिन जो सोचा था, वह पूरा होता नहीं दिख रहा था। गाड़ी में बैठे – बैठे जाम के बारे में सोच रहा था कि एक महिला जिसकी गोद में दुधमुंहा बच्चा था, कार के पास आकर भीख मांगने लगी। मैंने हमेशा की तरह उसे अनसुना कर दिया और मन ही बड़बड़ाने लगा। कुछ समय रुकने के बाद वह भिखारिन आगे बढ़ गई। मगर पलटकर मुझे देख रही थी। मानो उसने मेरे मनोभावो को समझ लिया था।
तभी पत्नी बोली कि बोतल में दूध ख़त्म हो गया है और बच्चा भूखा है। यह सुनकर मेरे पैरो तले जमीन खिसक गई। बच्चे के जन्म के साथ आई शारीरिक कमी के चलते पत्नी बच्चे को स्तनपान नहीं करा पाती थी।
मैं गुस्से में झुंझलाकर बोला कि यहाँ जंगल में दूध कहां रखा है। काफी समय बीत गया लेतरह किन जाम नहीं खुला। बच्चा भूख से बेहाल था। पत्नी उसे गाड़ी के बाहर टहलाकर शांत कराने की कोशिश कर रही थी। भूख से बेहाल बच्चा इस कदर रो रहा था कि आस – पास के लोगों का ध्यान उसकी ओर केंद्रित हो गया। अब वहां अधिसंख्य लोगों को हमारी परेशानी पता चल चुकी थी।
मैं लाचार सोच रहा था कि ट्रेन से जाता तो शायद अच्छा होता, तभी वह भिखारिन पुनः मेरी तरफ आने लगी। परेशान था, सो उसको देखते ही मेरी पारा हाई हो गया लेकिन वह मेरी तरफ न आकर पत्नी की तरफ चली गई। बच्चे के साथ मेरी पत्नी भी रो रही थी। भिखारिन पत्नी से बोली कि आपका बच्चा बहुत भूखा हैं। मैं आपकी मदद कर सकती हूँ। यह सुनकर मैं चिल्लाने वाला था कि पत्नी ने मुझे शांत रहने का इशारा किया। उसने कहा कि मेरा बच्चा भी दूध पीता हैं। आप कहें तो मैं आपके बच्चे को अपना दूध पिला दूं। अब पुझे और गुस्सा आया कि भला मेरा बच्चा किसी भीख मांगने वाली का दूध पिएगा।
मैं इतना संपन्न और ये हाथ फैलाकर भीख मांगने वाली लेकिन पत्नी ने मुझे आँख दिखाते हुए बच्चे को उसकी गोद में दे दिया। उसने मेरे बच्चे को जैसे ही सीने से लगाया, उसका रोना बंद हो गया। थोड़ी देर बाद बच्चा शांत होकर खेलने लगा। भिखारिन ने बच्चे को गोद में दिया और अपना बच्चा जमीन से उठाकर चल पड़ी।
मेरी रईसी अभी गई नहीं थी। मैंने पर्स से 200 रुपए निकले और पत्नी को देते हुए कहा कि इसे दे दो। तभी भिखारिन बोल पड़ी, नहीं साहब मैं इस बात के पैसे नहीं लुंगी। ममत्व भरे स्वरों से मेरी बात को टालते हुए वह आगे बढ़ गई। आब जाम खुल चूका था।
मैं मन ही मन सोच रहा था कि वह भिखारिन हम दोनों को जीवनभर के लिए भीख दे गई। शायद उसका कर्ज हम पर सारी उम्र रहेगा। आस – पास के लोग भिखारिन के त्याग की दुहाई दे रहे थे। गाड़ी लखनऊ की ओर बढ़ चली। अब मैं उसकी जगह खुद को भिखारी महसूस कर रहा था। उस दिन से मुझे यह सीख मिली कि जरुरत में जो काम आए वही अमीर हैं। वरना इस दुनिया में जब आप किसी दिन जरुरत में फंसते हैं तो आपसे बड़ा भिखारी कोई नहीं होता है।