भाईचारा
भाईचारा
विमुल को छह महीने की सजा सुनाई गई थी। जुर्म उसका बस इतना था कि वो अपने बच्चों का पेट भरने के लिए जहाँ वो लाला आनाज वाले के यहाँ नौकरी करता था, वहाँ उसने कुछ दाने दाल के, कुछ दाने चावल के और थोड़ा आटा चुरा कर छिपा लिया था, जिसे उसका सेठ यानी लाला ने चुराते हुए उसे पकड़ लिया और चोरी के जुर्म में जेल भेज दिया।
और आज वो २६ जनवरी के एक दिन से पहले रिहा होने जा रहा था पर विमुल बिल्कुल भी खुश नहीं था। वो अंदर ही अंदर से खत्म होता जा रहा था ये सोच-सोच कि घर जाकर अपने बच्चों को क्या मुख दिखायेगा। बच्चे तो शायद ये भी कह दें कि उसका पापा चोर है। अब आप ही बताइये कि आपके चोरी करने और जेल जाने की वजह से क्या इज्जत रह जायेगी हमारी ! हो सकता है कि वो ये भी कह दें कि जहाँ से आए हो, वापस चले जाओ, हमें आपकी शक्ल भी नहीं देखनी, चले जाओ पापा चले जाओ यहाँ से... कि तभी विमुल का नाम पुकारा गया। ये सुनकर वो अपने स्वप्न से बाहर आया और जेलर के पास गया और कपड़े लेकर घर की ओर निकल पड़ा पर वो वही बातें सोच-सोचकर मरा जा रहा था। उसका दिल बैठा जा रहा था।
लेकिन घर पहुँचते ही वो वहाँ का माहौल देखते ही हतप्रभ रह गया था। उसके स्वागत की खुशी में घर तीन रंगों से सजा हुआ था। बच्चे विमुल को देखते ही आकर उससे लिपट गये। शाबाना भाभीजान जो कि आतिफ भाईजान की पत्नी थी और उनके पड़ोसी, वो अपने हाथों से बनी हुई गर्म-गर्म जलेबियाँ और कचौड़ी लेकर आई थी। रिद्धी भाभी जो कि सिद्धु पाजी की धर्मपत्नी थी वो अपने साथ में गाजर का हलवा और छोले भटूरे लेकर आई थी। आईशा भाभी जो कि जैक की पत्नी वो उनके लिए राशन का सामान लेकर आई थी और उन तीनों के पति उनके स्वागत में खड़े थे। ऐसा लग रहा था कि तीनों एक ही रंग में रंग गये हो। हमारे तिरंगे के रंग में रंग गये हो। विमुल ये सब देखकर उसकी तो आँखें ही भर आई थी। उसने कभी सोचा नहीं था कि जब अपने ही साथ न हो तो ऐसा भी भाईचारा देखने को मिल जाए।
ये कभी मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। पहले के लोग गलत नहीं कहते थे-
"हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई,
आपस में है भाई भाई"
अंत में बस इतना ही
"जय हिंद जय भारत"।