भाई बीज
भाई बीज
सूर्य की संज्ञा से दो संतानें थीं- पुत्र यमराजतथा पुत्री यमुना। संज्ञा सूर्य का तेज सहन न कर पाने केकारण अपनी छायामूर्ति का निर्माण कर उसे ही अपने पुत्र-पुत्री को सौंपकर वहां से चली गई। छाया को यम और यमुना से किसी प्रकार का लगाव न था, किंतु यम औरयमुना में बहुत प्रेम था। यमुना अपने भाई यमराज के यहां प्रायः जाती और उनके सुख-दुख की बातें पूछा करती।यमुना यमराज को अपने घर पर आने के लिए कहती, किंतु व्यस्तता तथा दायित्व बोझ के कारण वे उसके घर न जा पाते थे।
एक बार कार्तिक शुक्ल द्वितीय को यमराज अपनी बहन यमुना के घर अचानक जा पहुंचे। बहन यमुना ने अपने सहोदर भाई को बड़ा आदर-सत्कार किया। विविध व्यंजन बनाकर उन्हें भोजन कराया तथा भाल पर तिलक लगाया। यमराज अपनी बहन से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने यमुना को विधिव भेंट समर्पित की। जब वे वहां से चलने लगे,तब उन्होंने यमुना से कोई भी मनोवांछित वरदान मांगने का अनुरोध किया।
यमुना ने उनके आग्रह को देखकर कहा भैया यदि आप मुझे वरदान देना ही चाहते हैं तो यही वरदान दीजिए कि आज के दिन प्रतिवर्ष आप मेरे यहां आया करेंगे और मेरा आतिथ्य स्वीकार किया करेंगे।
इसी प्रकार जो भाई अपनी बहन के घर जाकर उसका आतिथ्य स्वीकार करे तथा उसे भेंट दें, उसकी सब अभिलाषाएं आप पूर्ण किया करें एवं उसे आपका भय न हो।यमुना की प्रार्थना को यमराज ने स्वीकार कर लिया। तभी से बहन-भाई का यह त्योहार मनाया जाने लगा।