बेटियां
बेटियां
हनुमान ने अपनी बेटी अंसिका की सगाई चेतन करवा चुके थे। चेतन बड़े अच्छे घर से था। इससे हनुमान बहुत खुश था।
चेतन और उस के माता पिता का स्वभाव बड़ा अच्छा था। हनुमान के सिर से बड़ा बोझ उतर गया। एक दिन शादी से पहले चेतन के घर वालों ने अंसिका के पिता हनुमान को खाने पे बुलाया। हनुमान की तबीयत ठीक नहीं थी फिर भी वह ना न कह सके। चेतन के घरवालो ने बड़े ही आदर सत्कार से उनका स्वागत किया फ़िर अंसिका के पिता हनुमान के लिए चाय आई। शुगर कि वजह से हनुमान को चीनी वाली चाय से दुर रहने को कहा गया था लेकिन लड़की के होने वाली ससुराल घर में थे तो चुप रह कर चाय हाथ में ले ली। चाय कि पहली चुस्की लेते ही वो चौक से गये। चाय में चीनी बिल्कुल ही नहीं थी और इलायची भी डली हुई थी। हनुमान सोच मे पड़ गये कि ये लोग भी हमारी जैसी ही चाय पीते हैं। दोपहर में खाना खाया वो भी बिल्कुल उनके घर जैसा दोपहर में आराम करने के लिए दो तकिये पतली चादर। उठते ही सोंफ का पानी पीने को दिया गया। वहाँ से विदा लेते समय हनुमान से रहा नहीं गया तो पुछ बैठे मुझे क्या खाना है। क्या पीना है। मेरी सेहत के लिए क्या अच्छा है।
ये आपको कैसे पता है। तो अंसिका की सास ने धीरे से कहा कि कल रात को ही आपकी बेटी अंसिका का फ़ोन आ गया था और उसने कहा कि मेरे पापा स्वभाव से बड़े सरल हैं। बोलेंगे कुछ नहीं प्लीज अगर हो सके।
तो आप उनका ध्यान रखियेगा। पिता की आंखों मे वहीँ आंसू आ गया था। अंसिका के पिता जब अपने घर पहुँचे तो घर के हाल में लगी अपनी स्वर्गवासी माँ के फोटो से हार निकाल दिया। जब पत्नी ने पूछा कि ये क्या कर रहे हो तो हनुमान बोले-मेरा ध्यान रखने वाली मेरी माँ इस घर से कहीं नहीं गयी है बल्कि वो तो मेरी बेटी के रुप में इस घर में ही रहती है। और फिर हनुमान की आंखों से आंसू झलक गये ओर वो फफक कर रो पड़े। दुनिया में सब कहते हैं ना कि बेटी है। एक दिन इस घर को छोड़कर चली जायेगी। मगर मैं दुनिया के सभी माँ-बाप से ये कहना चाहता हूँ कि बेटी कभी भी अपने माँ-बाप के घर से नहीं जाती बल्कि वो हमेशा उनके दिल में रहती है।
