चंगु की होशियारी
चंगु की होशियारी
चंगु- मंगु दो दोस्त थे , मंगु हमेशा चंगु को चुना लगाता रहता था. एक मंगु ने चंगु से कहा कि आज खाना खाने होटल में चलते हैं. तुम बाहर खाना खिलाने ही नहीं ले जाते हो ,आज रात का खाना बाहर करेगें..
चंगु– "ठीक है पास के होटल में चलते हैं", कह तो दिया पर जेब में मात्र 100 रुपये ही थे.
मंगु – "नहीं..किसी फाइव स्टार होटल में चलते हैं...."
चंगु – (एक मिनट के लिए मौन) "ठीक है... शाम 7 बजे चलते हैं."
ठीक सात बजे दोनों अपनी कार में घर से निकले...रास्ते में – चंगु बोला "जानते हो... एक बार मैंने अपनी पत्नी के साथ पानी पूरी प्रतिस्पर्धा की थी. मैंने 30 पानी पूरी खाई और उसे हरा दिया...."
मंगु– "क्या यह इतना मुश्किल है.??"
चंगु– "मुझे पानी-पूरी प्रतियोगिता में "हराना" बहुत "मुश्किल" है।"
मंगु -" मैं आसानी से आपको हरा सकता हूँ।"
चंगु –" रहने दो ये तुम्हारे बस का नहीं ….!!"
मंगु –" हमसे प्रतियोगिता करने चलिये…."
चंगु – "तो "तुम" अपने-आप को हारा हुआ देखना चाहते हो.!!?"
मंगु – "चलिये देखते हैं…"
वे दोनों एक पानी-पूरी स्टॉल पर रुके और खाना शुरू कर दिया ….25 पानी पूरी के बाद चंगु ने खाना छोड़ दिया.मंगु का भी पेट भर गया था, लेकिन उसने चंगु को हराने के लिए एक और खा लिया और चिल्लाया , “तुम हार गये।”
बिल 100 रुपये आया...
चंगु - "अब होटल चलें खाना खाने …"
मंगु- "नहीं अब पेट में जगह नहीं बची...वापस घर चलो।"
(दोनों घर लौट गये)
और मंगु वापस घर आते हुए... शर्त जीतने की बात पर बेहद खुश था....
कहानी से नैतिक शिक्षा....
एक अच्छे मित्र का मुख्य उद्देश्य "न्यूनतम खर्च" के साथ "शिकायतकर्ता" को संतुष्ट करना भी होता है….।।