बेटी का पिता
बेटी का पिता
"शानदार पगड़ीवाले" हाँ दुकान तो यही है। माधुरी खिंच लाई है जबरदस्ती यहां मुझे। शादी की बाकी सारी तैयारी हो चुकी है और बारात आने में बस कुछ दिन बचे है। घबराहट बिल्कुल नहीं है और मन भी शांत है। भगवान ने हमे बेटा नहीं दिया पर बेटे से बढ़कर दामाद मिल रहा है। अभी शादी हुई नहीं और पापा जी मम्मी जी कह कर चिपके रहता है फोन पर। माधुरी से बोल दिया है मैंने हमसे खुशनसीब कोई नहीं अब और भला क्या चाहिए? पूरे गाँव में ऐसी बारात किसी के नहीं आएगी देखना तो अब कह रहीं हैं कि बेटी की शादी में पगड़ी ले लो। रेशम वाली.. सुंदर लाल रंग की बांधनी छींटे वाली। मेरा ख्वाब था तब से जब से माधुरी पेट से थी की बेटा हो या बेटी बारात में मैं भी शान से पगड़ी बांधुंगा। अब मौका है ये शौक पूरा कर लूँगा। लड़के वालों ने भी दहेज में ज्यादा कुछ नहीं माँगा है, बोल दिया कि अपने हिसाब से देख लीजिए बस लड़की चार चक्को वाली गाड़ी में बिदा कर देना। अब इतना तो कर ही लूँगा।"कहां खोए है रमन जी?" माधुरी की आवाज़ से तन्द्रा टूटी। दुकान वाला कई डिजाइन निकाल चुका था।
फोन पर भी नजर गई तो वहाँ भी समधी जी के मिस कॉल दिखे।
"हाँ समधी जी! बोलिए कैसे याद किया ?"
"बधाई हो! आपके दामाद का प्रोमोशन हुआ है। जबसे रिश्ता तय हुआ है हमारा सब अच्छा ही हो रहा है "
" जी बस अब यही चाहत है बच्चे खुश रहें"
"अच्छा सुनिए रमन बाबू! अब आपका दामाद ऊंची पोस्ट का है तो ध्यान रखिएगा.. बारात की इज्जत का ख्याल रखिए। गाड़ी जरा सी बड़ी कर दीजिए बस। ठीक है? बाकी आप समझदार है उम्मीद है पगड़ी नीचे नहीं करवाएंगे। "
" अरे बताइए ना कौन सी पगड़ी पसंद आई " माधुरी ने झंकझोरा।
" नहीं पगड़ी नहीं चाहिए अब, चलो चलते है "।
बराबरी के अधिकार के युग में बेटी के पिता को उसके चिंता मुक्त होने का अधिकार कब मिलेगा ? कहते हैं आदत भी दहेज देने वाले खराब करते हैं पर जो सक्षम है वो अपनी खुशी से अपनी संपत्ति का हकदार समझ बेटी को पैसे और चीजे देते हैं। पर क्या ये ठीक ना होगा कि शादी के समय ना देकर ये बाद में उसे उसका अधिकार दे दे। क्यूँकी देखा देखी करके लोगों में प्रतियोगिता चलती है फलाने को इतना सामान मिला तो हमे भी मिलना चाहिए। बेटी का पिता अपनी हैसियत को पार करके लड़के वालों का स्वागत सत्कार करते हैं फिर भी बिदाई तक डरे सहमे रहते हैं कि क्या बुरा लग जाये और क्या और मांग ले। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से दहेज लड़की वालों को डराते रहता है। समानता होनी चाहिए लड़की और लड़के में और उनके परिवारों में भी, शादी के खर्च भी आधा आधा बांटना चाहिए।