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Syeda Noorjahan

Drama Thriller

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Syeda Noorjahan

Drama Thriller

बेनिशान कत्ल

बेनिशान कत्ल

17 mins
501

मैं एसीपी भारत आज अपने अब तक के पुलिस कैरियर में होने वाला सबसे अजीब केस आप सबके साथ बांटने जा रहा हूं यह ऐसा केस था जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया के जिंदगी में ज्यादा जरूरी क्या है रिश्ते या काम…?

मैं हर रोज की तरह काम में उलझा हुआ था, मगर आज अपने काम में ध्यान नहीं लगा पा रहा था, नेहा थोड़ी नाराज थी क्योंकि आज हमारी शादी की सालगिरह थी और मैं नेहा को वक्त नहीं दे पा रहा था, हम पुलिस वालों की जिंदगी कुछ ऐसी ही होती है लोग बुरा समझते हैं और घरवाले कुछ समझते ही नहीं…मगर जैसे भी हो हमें अपना काम करना ही होता है, अजीब बात तो यह है लोग कहते हैं सब होने के बाद पुलिस आती है !! अब अगर सब होने के बाद हमें सूचित किया जाए हम तभी आएंगे जब कोई चीज हो रही हो तब तो कोई हमें सूचना नहीं देता इसमें हमारी तो गलती नहीं !! खैर…

नेहा के फोन नजरअंदाज करके मैं अपने काम जल्दी से जल्दी निपटाना चाहता था, कि अचानक एक कॉल आई

"हेलो मैं नवीन सक्सेना का दोस्त बात कर रहा हूं नवीन साहब का किसी ने खुन कर दिया है आप प्लीज जल्दी आ जाइए" किसी ने कहा, हमारे थाने से पुलिस अधिकारी छान बीन के लिए निकल पड़े,

नवीन सक्सेना इस शहर का जाना माना बिजनेसमैन था उसके कत्ल की बात काफी हैरान करने वाली थी और क्योंकि हाई प्रोफाइल केस था कमिश्नर साहब ने उसे मुझे हैंडल करने के लिए कहा वह चाहते थे कि मैं मीडिया के कोई बखेड़ा खड़ा करने से पहले कातिल का पता लगाओ,

मैं भी मौका ए वारदात पर पहुंच गया शहर से थोड़ी दूर पर बड़ा बंगला बनाया था नवीन ने, हाल ही में अपने परिवार सहित वहां पर रहने के लिए गया था, नवीन एक घमंडी बिजनेसमैन था जितने दोस्त से कहीं ज्यादा दुश्मन बना रखे थे, इसलिए हर वक्त रक्षकों की भीड़ के साथ घूमता था चाहे वह जहां भी जाए, उसके परिवार में 3 लोग और थे मां बहन उसका एक छोटा भाई, छोटे भाई उदय सक्सेना की शादी हो चुकी है उदय की बीवी प्रीति सक्सेना इस समय अपने मायके में है, एक बहन है अहाना जिसकी शादी नहीं हुई है, मां मनोरमा सक्सेना बेवा है, लक्की नाम का एक खास दोस्त है,

सभी लोग मौका ए वारदात पर मौजूद थे, 

"जय हिंद सर!" इंस्पेक्टर गोविंद ने सैल्यूट करते हुए कहा

"जय हिंद! क्या अपडेट है?" मैंने पूछा मैं जानना चाहता था कि छानबीन कहां तक पहुंची है, और साथ ही अंदर जाने लगा जहां लाश पड़ी थी,

"सर देखने से तो यह एक्सिडेंट लगता है, मिस्टर सक्सेना नहाने जा रहे थे जमीन पर पड़ी पेन पर पैर पड़ा और वो स्लिप होकर सिंक से जा टकराए, पैर में पेन के निशान हैं, इस समय तो यही कह सकते हैं कि उनकी मौत सर पर लगी चोट से हुई है" इंस्पेक्टर गोविंद ने बताया,

"सीसीटीवी फुटेज से क्या पता चला?"  मैं ने पूछा

"सारे घर में कैमरे लगे हैं मगर आप सुबह से सभी कैमरा को बंद कर दिया गया था"

"क्यों?"

"सिक्योरिटी गार्ड ने बताया सुबह मिस्टर सक्सेना ने उसे ऐसा करने के लिए कहा था" गोविंद ने कहा

"इस समय जितने लोग मौजूद हैं सब का बयान लिया आपने?"

"जी सर! वही पुराना बयान, किसी को कुछ नहीं पता सब अपने कमरे में थे"

"सबसे पहले किसने देखा और कॉल किसने किया था?"

"लक्की, मिस्टर सक्सेना क्या खास दोस्त है वह आज सुबह बुलाए जाने पर मिलने आए तो देखा मिस्टर सक्सेना की लाश पड़ी थी बाथरूम के पास, कॉल भी उन्होंने ही की थी" गोविंद ने विस्तार से बताया,

"घर के नौकरौं ने कुछ देखा?" मैंने ग्लव्स पहनते हुए पूछा,

"घर के सभी नौकरों को मिस्टर सक्सेना ने ऑफिस जाने के बाद आने को कहा था इसलिए उन्होंने कुछ नहीं देखा"

"ठीक है" मैं कमरे की ओर बढ़ा, कमरे में हर चीज अपनी जगह पर थी बाथरूम और कमरे के बीच नवीन की लाश पड़ी थी संभलने की कोशिश में नवीन सक्सेना ने पर्दे पकड़े थे मगर संतुलन ना बना सका, टूटे हुए सिंह के टुकड़े सारे बाथरूम में फैले थे, शायद यह एक एक्सीडेंट ही हो,

"लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने की तैयारी करो" मैं ने लाश कि ओर ध्यान से देखते हुए कहा,

"ठीक है सर"

"लाश के हाथ में क्या है?" मैंने पूछा, उसके हाथ में कुछ था, मैंने मुठ्ठी ध्यान से खोली तो एक सिक्का था, 

" संतुलन बनाने की कोशिश में इतने हाथ-पैर मारे मगर हाथ से सिक्का नहीं छुटा अजीब बात है" मैं ने कहा," पैरों के निशानों से कुछ पता चला?"

"नहीं सर यह सभी निशान मौत के बाद जब घर वालों को पता चला और सभी लास्ट के करीब आए तब पड़े होंगे"

"ठीक है छानबीन के लिए फॉरेंसिक टीम को बुलाओ और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजो" मैं ने सिक्का सबुत के तौर पर रख दिया,

"यह केस उतना सीधा भी नहीं है जितना नगर आ रहा है" मैं ने कहा

"तो अब क्या करें सर?" गोविंद ने पूछा

"कुछ नहीं, पहले घर वालों से बात करते हैं" मैंने कहा और घर वालों से बात करने चला आया,

यहां का माहौल बिल्कुल वैसा ही था जैसे किसी धर में मौत के बाद होता है माफ करना हम पुलिस वालों को हर दिन इस तरह की चीजें देखने के पास ज्यादा कुछ महसूस नहीं होता, यह हमारे लिए रोज का काम हो जाता है,

"मनोरमा जी! मैं समझता हूं कि यह समय नहीं है पूछताछ करने का मगर जितनी जल्दी आप हमारे सवाल के जवाब देंगे उतना जल्दी हम कातिल को पकड़ सकेंगे, आशा करता हूं आप हमारे साथ देंगे सच का पता लगाने में" मैं ने रोती हुई मनोरमा जी (नवीन सक्सेना की मां) से पूछा,

"अब कुछ पता करके भी क्या कर लेंगे मेरा बेटा तो चला गया" मनोरमा जी ने कहा और बिलक बिलक कर रोने लगी,

"तो क्या आप नहीं चाहती कि हम कातिल को सज़ा दिलाएं!"

"क्या उससे मेरा बेटा वापस आ जाएगा?" मनोरमा जी के सवाल पर मैं कुछ देर चुप हो गया, कभी-कभी मांओं को जवाब देना बहुत मुश्किल हो जाता है,

"मम्मी अपने आप को संभालो, यह हमारी मदद के लिए आए हैं यह जो पूछ रहे हैं उन सवालों का जवाब दीजिए" उदय ने कहा, मैंने उसे गौर से देखा उदय के चेहरे पर कोई ग़म नहीं था, मैंने सोचा तफ्तीश आगे बढ़ाई जानी चाहिए,

"मनोरमा जी मैं जानता हूं यह कठिन समय है मगर फिर भी याद करने की कोशिश कीजिए कोई ऐसा इंसान जिससे मिस्टर सक्सेना की दुश्मनी हो या जो उनका मर्डर कर सकता हो या पिछले दिनों या आज सुबह आपने कुछ अलग महसूस किया याद कीजिए प्लीज हमें कातिल तक पहुंचने में मदद मिलेगी" मैं ने पूछा

"ये बार-बार मर्डर क्यों कह रहे हैं आप!! यह सिर्फ एक हादसा था बेकार में हमें मत डराएं" इससे पहले कि मनोरमा जी कुछ कहतीं उदय बीच में बोल पड़ा,

"आपको कैसे पता है मर्डर नहीं है" मैंने सीधे उसकी आंखों में देखते हुए पूछा

"वह बाथरूम जा रहे थे उनका पैर फिसला और वह गिर पड़े, इसमें कोई शक ही नहीं कि यह एक हादसा है"उदय ने बड़े आराम से कहा,

"मिस्टर उदय हमें मत सिखाओ, हमें कुछ ऐसे सबूत भी मिले हैं लाश के पास से जिसके बल पर हम यह सवाल पूछ रहे हैं" मुझसे पहले गोविंद ने कहा,

"कैसे सबुत?" उदय ने पूछा

"वह भी बता दिया जाएगा पहले हम अपना काम कर लें" मैं ने कहा, जितनी देर हम उदय से बात करते रहे मनोरमा जी ने खुद को संभाल लिया

"मेरा बेटा गुस्से का तेज़ था मगर अच्छा इंसान था मुझे नहीं लगता किसी ने उसे मारा होगा, आज सुबह भी बिल्कुल नॉर्मल था, मुझसे कह रहा था मुझे जाना है कहीं काम से मेरा इंतजार मत करना, मुझे नहीं पता था कि वह इतनी दूर चला जाएगा" इतना कह कर वह फिर से रोने लगीं, 

"मिस्टर उदय आप उस समय कहां थे?" मैंने पूछा

"मैं अपने कमरे में था, और अपनी बीवी से फोन पर बात कर रहा था, आप चाहें तो कॉल रिकॉर्ड देख सकते हैं" उदय ने विस्तार से कहा जब कोई इतने विस्तार से कहें तो मतलब कहीं ना कहीं कुछ गड़बड़ तो जरूर होती है, 

"उसकी जरूरत नहीं है मैं जानता हूं आप सच कह रहे हैं" मैंने कहा और मिस्टर सक्सेना की बहन अहाना से पूछताछ के लिए आगे बढ़ा

"मिस अहाना आप उस समय कहां थीं" 

"म..म... मैं रुम में थी, पढ़ाई कर रही थी, फिर लक्की भईया की आवाज आई और सब कुछ बदल गया" अहाना चेहरा हाथों में छुपा कर रोने लगी

"लक्की जी ! आप क्यों आए थे और क्या देखा आपने"

"जी मैं नवीन के बुलाने पर आया था हम दोस्त ही नहीं बिजनेस पार्टनर भी है और उसे बिजनेस के बारे में कुछ बात करनी थी उसने कहा कि वह आज ऑफिस नहीं आना चाहता और मुझे अपने घर बुला लिया कहने लगा दोस्ती का कर्ज उतारने का वक्त आ गया है मैं समझा वह किसी मुश्किल में है इसलिए मैं आ गया और स्टडी में काफी देर इंतजार किया जब वह नहीं आया और मेरे कॉल का जवाब भी नहीं दे रहा था तो मैं उसके कमरे में चला गया, देखा कि नवीन नीचे पड़ा है खून से लथपथ, उसे उठाने की कोशिश में मेरे ऊपर से खुन लग गया मुझे लगा था कि वह सिर्फ ज़ख्मी है मुझे नहीं पता था कि वह मर चुका है"लक्की ने बताया,

"ठीक है जैसे ही पोस्टमार्टम के रिपोर्ट आती है और हमें कुछ और पता चलता है हम आपको खबर कर देंगे और हां, जब तक कुछ पता नहीं चल जाता आप में से कोई शहर से बाहर नहीं जा सकता" मैंने गोविंद को चलने का इशारा किया और हम बाहर आ गए

"सुनो उदय पर नजर रखो बल्कि लक्की पर भी, यह लोग जितने सीधे दिख रहे हैं उतना हैं नहीं" मैं ने कहा

"और बहन?" 

"शक के दायरे में इस वक्त सभी हैं मगर यह दोनों जरूरत से ज्यादा ही सीधे बनने की कोशिश कर रहे हैं इन पर कड़ी नजर रखो मुझे इनकी कॉल रिकॉर्ड भी चाहिए, यह कब कहां जाते हैं किस से मिलते हैं मुझे सारी डिटेल चाहिए" मैंने गोविंद से कहा और घर जाने के लिए निकल पड़ा, बस इतनी सी देर में नेहा ने करीब 10 कॉल कर लिए थे,

"आ गए तुम!!! भारत! याद भी है आज हमारी शादी की सालगिरह है" घर में घुसते हैं नेहा मुझ पर बरस पड़ी, 

"ओहो जरूरी काम आ गया था इसलिए नहीं आ सका अब आ तो गया हूं बताओ कहां चलना है" मैं नेहा के साथ कुछ देर बिताना चाहता था ताकि उसकी हर शिकायत दूर हो,

अगले दिन थाने पहुंचा तो गोविंद ने मुझे सबकी जन्मपत्री दी,

"भारत सर! लक्की जो कह रहा था वह सच है नवीन ने उसे घर आने के लिए कहा था, नौकरों को भी देर से आने के लिए नवीन ने ही कहा था सीसीटीवी भी नवीन ने ही बंद कराया था" 

"और उदय! उसके बारे में कुछ पता चला?" 

"सर वह भी सही कह रहा था, जिस समय नवीन की मौत हुई वह अपनी बीवी से बात कर रहा था कॉल रिकॉर्ड के हिसाब से तो यही पता चला है" गोविंद ने कहा

"पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई क्या?"

"जी सर ! आपके टेबल पर रखी है, पोस्टमार्टम के हिसाब से उसकी मौत 11:20  के करीब हुई है सिंक से सर टकराने के बाद कुछ देर जरूर जिंदा रहा होगा सर ! उसके बाद मौत हुई है नवीन की" गोविंद की बात सुनते सुनते मैं रिपोर्ट चेक कर रहा था,

"नवीन के कपड़े और उसके हाथ से मिला सिक्का फॉरेंसिक लैब में भेजा था उसका क्या हुआ?"

"सर सिक्के पर उंगलियों के निशान हैं और कपड़ों की छानबीन की रिपोर्ट 2 दिन में आ जाएगी" 

"ठीक है! नवीन के घर वालों को बुलाओ" मैंने कहा, मुझे यकीन था कि हो ना हो उदय कुछ छुपा रहा है, वो कहते हैं ना दाल में कुछ काला है!

"यस सर!" गोविंद सैल्यूट किया और चला गया,

"भारत सर! वह सब आ गए हैं" कुछ देर बाद गोविंद ने आकर बताया, मैं अपने ऑफिस से निकल कर उन सबके पास गया, "मैंने फिंगरप्रिंट लेने के लिए आप सब को बुलाया है" मैं ने कहा

"क्या मतलब है फिंगरप्रिंट और क्यों चाहिए आपको हमारी उंगलियों के निशान?" उदय ने कहा, मैं जानता था उसे ऐतराज जरुर होगा, 

" छानबीन करने के लिए हमें उंगलियों के निशानों की जरूरत है हमारा सहयोग कीजिए ताकि हम कातिल को पकड़ सके और उसे सजा दिला सके" 

"ठीक है ले लीजिए आप हमारे उंगलियों के निशान, हम में से कोई आपके लिए मुश्किल नहीं बनाएगा" अहाना ने सब से पहले कहा, 

"सहयोग के लिए धन्यवाद" गोविंद ने कहा और सबकी उंगलियों के निशान लेने लगा,

मेरे शक के हिसाब से घर वालों की उंगलियों के निशान में से किसी एक के निशान सिक्के पर मिली उंगलियों के निशान से मिल जाने चाहिए थे,

"हमें बस आधा घंटा दीजिए आपको यहीं पर सब कुछ पता चल जाएगा" गोविंद ने कहा,

बाकी सारे घर वाले शांत थे बस उदय परेशान नजर आ रहा था, रिपोर्ट आने पर उसकी परेशानी की वजह भी समझ आ गई सिक्के पर उसी के उंगलियों के निशान थे, 

" मिस्टर उदय आप बताना चाहेंगे आपकी उंगलियों के निशान उस सिक्के पर कैसे आए?" मैंने पूछा

"कौन सा सिक्का ? या क्या कह रहे हैं? आप लोगों से अपना काम ठीक से नहीं हो पा रहा तो किसी पर भी इल्जाम लगा देंगे क्या?" उदय ने बहुत गुस्से में कहा

"वही सिक्का जो मिस्टर नवीन के हाथ में था अब आप सीधी तरह बनाएंगे या हम अपने तरीके से पूछें?"

"आप क्या कह रहे हैं मैं कुछ नहीं जानता!!" उदय चिल्लाया

"चिल्लाने की जरूरत नहीं है, मैं बता देता हूं आपने अपनी वाइफ से 11:10 तक बात की और मिस्टर नवीन की मौत 11:20 पर हुई भले ही यह हादसा था और वह सिंक से टकराया था उसके बाद वो जिंदा था आगे की कहानी आप बताइए आपने कैसे उसे मारा? और क्यों?"

"यह क्या बकवास है!!! देखिए मैं वहां गया जरूर था मगर भाई पहले ही मर चुके थे सही वक्त मुझे याद नहीं, मैंने वह सिक्का उनके हाथ में रखा क्योंकि वह तो उन्होंने ही मुझे दिया था, जब मैंने उनसे जायदाद में हिस्से की बात की तो मुझे सिक्का थमा कर बोले यही तेरा हिस्सा है, मैं नाराज था बहुत मगर मैंने किसी को नहीं मारा" उदय ने कुबूल कर लिया मगर अब भी कहीं कुछ छुट रहा था, भला कोई क्यों घर के नौकरों को देर से बुलायेगा और क्यों घर के सारे सिक्योरिटी कैमरा बंद करवाएगा?

" किसने किसको मारा है यह हम पता लगा लेंगे फिलहाल हम आपको गिरफ्तार कर रहे हैं" 

"अरे मगर मैंने कुछ नहीं किया मेरा यकीन करो मैंने कुछ नहीं किया" वह चिल्लाता रहा, मगर गोविंद उसे ले गया

"ऐसा मत करो मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हुं, एक बेटा जा चुका का है दुसरे को मुझसे दूर मत करो, उदय अपने भाई को मार नहीं सकता" मनोरमा जी गिड़गिड़ाने लगी

" माफ कीजिए इस समय हमें उदय को हिरासत में लेना होगा" मैं ने कहा और बाहर चला आया, ऐसा कहते हुए अच्छा नहीं लग रहा था आखिर को वह मां हैं, मगर क्या कर सकते हैं हमारी ड्यूटी में हमें ऐसे बहुत से काम करने पड़ते हैं जो हमें पसंद नहीं है, अगर जिस किसी ने भी गलती की है, कानून अपने हाथ में लिया है उसे सजा मिलनी चाहिए, अब यह तो पूछताछ के बाद पता चलेगा कि कत्ल कैसे और क्यों हुआ है,

शनिवार होने की वजह से हम चार्जशीट फाइल नहीं कर सके सोमवार तक का हमें इंतजार करना था, हमने कड़ी पूछताछ की इन 2 दिनों में मगर हर बार उदय एक ही बात कहता था

"मैंने कुछ नहीं किया, मुझे अपने भाई की मौत का कोई दुख नहीं है इसका यह मतलब नहीं कि मैंने ही उनकी हत्या की है, वह जब भी चार लोगों में खड़ा रहता मुझे नीचा दिखाने में लगा रहता था, सिर्फ मेरे भाई के कारण मेरी बीवी मेरा आदर नहीं करती, मेरी ज़िन्दगी की हर मुश्किल भाई ने खड़ी की है फिर भी मैं ने उसे नहीं मारा, हां मुझसे यह गलती ज़रुर हुई है कि मैं ने उसका दिया हुआ सिक्का उसकी लाश पर रखा और ऐसे वहां से आ गया जैसे कुछ हुआ ही नहीं…., आप लोग चाहे जितना भी पुछ लो मैं यही कहता रहूंगा कि मैं ने अपने भाई को नहीं मारा" उदय के बयान से यह लगता रहा की यह बाकी कातिलों के तरह अपने बचाव में झूठ बोल रहा है,

मैंने सोचा एक बार केस कोर्ट में पहुंच जाए फिर वकील खुद साबित कर देंगे कि कौन सच बोल रहा है

सोमवार को जब हम चार्जशीट फाइल कर रहे थे फॉरेंसिक रिपोर्ट आ गई जिससे पता चला कि कपड़ों पर उंगलियों के निशान अहाना के हैं, और फिर यहां असली पत्ते खुले,

"भारत सर! हो सकता है जब लाश देखी तो अहाना ने अपने भाई के सीने पर हाथ रखा हो इसलिए यह निशान आए हो" गोविंद ने अंदाजा लगाया

"नहीं अगर ऐसा होता निशान खुन के साथ आते हैं उसके कपड़ों पर निशान खुन के लगने से पहले पड़े हैं मतलब मौत से पहले नवीन अहाना से मिला था, अपने साथ लेडी कांस्टेबल लेकर जाओ और अहाना को इसी वक्त यहां लेकर आओ" मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या चल रहा है

"अहाना जी !! कैसी हैं आप? "

"म.. मैं ठीक हूं" अहाना घबराई हुई थी

"आप घबराइए मत, हम बस आपसे कुछ सवाल पूछना चाह रहे थे"

"ज….जी..!"

"अगर मैं गलत नहीं हुं तो आपने कहा था भाई की मौत के समय आप अपने कमरे में थी, है ना!" अहाना ने सर नीचे कर लिया

"जी!" अहाना ने कहा

"उनकी मौत से पहले आप उनके कमरे में क्या कर रही थी यह तो बताया नहीं आपने" अब वह डर से कांपने लगी और अपनी गर्दन पर हाथ फेरने लगी

"मैं कहीं नहीं गईं थी"  अहाना की आवाज भारी हो गई

"आप शांत हो जाएं, हम बस जानना चाहते हैं कि क्या हुआ था" वह अब भी हम से नज़रें झुका कर बैठी थी कभी अपने नाखूनों से खेलती कभी गर्दन पर हाथ फेरने लगती,

"मैंने बताया तो मुझे जाने दोगे ना!" कुछ देर के लिए लगा हम किसी बच्चे से बात कर रहे हैं,

"हां! हां! बिल्कुल आप जा सकती हैं, बस हमें सब कुछ सच सच बताओ" मैंने भी कहा 

"सिर्फ आपको बताऊंगी" वह बहुत असामान्य हरकतें करने लगी

"ठीक है" मैंने कहा और गोविंद को बाहर जाने का इशारा किया, गोविंद ने चुपके से रिकॉर्डिंग ऑन किया और बाहर चला गया,

"अब बताओ क्या हुआ था" मैंने अहाना से पूछा

"मैं कहीं नहीं गई थी भाई ने बुलाया था मुझे, भाई मुझे मारना चाहता था" उंगलियों से खेलने लगी जैसे छोटी सी बच्ची हो,

"वह तुम्हें क्यों मारेगा" 

"भाई ने कभी मुझे इंसान समझा ही नहीं मुझे किसी गुलाम की तरह हुकुम देता रहता था, यह मत करो वह मत करो यहां मत जाओ वहां मत जाओ यह मत खाओ यहां तक कि कब सांस लेना है वह मुझे बताया करता था मेरी हर सांस पर जैसे उसी का हक था, मुझे कभी अपनी पसंद से कुछ भी करने नहीं दिया मैं बड़े शौक से एक तोता लाई थी भाई ने उसे भी उड़ा दिया, जब मेरे अच्छे मार्क्स आते वह मुझे और ज्यादा परेशान करता था इससे भी और अच्छे मार्क्स लाना ऐसे कहता मुझे अच्छे मार्क्स आते थे ना फिर क्यों कहता था मुझे भिंडी नहीं पसंद वह रोज खाता था और मुझे भी खिलाता, मैं फैशन डिजाइनिंग करना चाहती थी उसने मुझे इंजीनियरिंग में एडमिशन करा  दिया मेरी कोई भी ख्वाहिश उसके लिए मायने नहीं रखती थी मेरी सारी बर्दाश्त भाई की मौत के 1 दिन पहले खत्म हो गई" इतना कह कर वह रोने लगी

"ऐसा क्या हुआ था, बताओ मुझे"

"कॉलेज में कुछ लोग मेरे पीछे पड़े थे मैंने भाई को बताया तो वह मुझे उनके पास ले गया और खड़ा होकर देखता रहा वह लोग अब तक मेरे साथ छेड़छाड़ ही कर रहे थे मगर इस बार जब उन्हें मेरे भाई का समर्थन मिला उन्होंने मेरे साथ वह सब किया जो सिर्फ बोलते थे, मैं रोई चीखती रही, अपने भाई को मदद के लिए बुलाती रही मगर वह नहीं आया वह खड़ा होकर तमाशा देखता रहा" अहाना बहुत ज्यादा रोने लगी, मैंने उसे पानी दिया, उसके हाथ कांप रहे थे, कोशिश के बाद भी पानी गिर रहा था, मैं समझ नहीं पा रहा था कोई भाई अपनी बहन के साथ ऐसा कैसे कर सकता है

"फिर क्या हुआ" कुछ देर बाद मैंने पूछा

"फिर वह मुझे वहीं छोड़कर अकेला ही घर आ गया मैं अपने घर कैसे आई यह तो मैं खुद भी नहीं जानती मैं अपने आपको संभाल नहीं पा रही थी अगले दिन सुबह उसने मुझे अपने कमरे में बुलाया वह अपने बेड पर बैठा था कोई फाइल पढ़ रहा था मैं ने कहा मैं आपकी शक्ल नहीं देखना चाहती, तो मुझे गुस्से से देखने लगा, बुरा उसने मेरे साथ किया था फिर भी मुझे ही डांट रहा था कहने लगा तुम हमारे परिवार पर धब्बा हो तुम्हें जिंदा रहने का कोई हक नहीं यह कहकर मुझे पेन फेंक कर मारा, यहां मेरी सारी बर्दाश्त खत्म हो गई मैंने कहा तुम हमारे जिंदगी से दूर चले जाओ नफरत है मुझे तुमसे इस घर में कोई नहीं है जो तुमसे प्यार करता है तुम बहुत बुरे हो मेरी बात सुनकर उससे बहुत गुस्सा आया वह मेरा गला दबाने के लिए मेरे पास आ रहा था मैंने खुद को बचाने के लिए उसे धक्का दिया वह दो कदम पीछे गया और जमीन पर पड़ी पेन पर उसका पैर पड़ा और वह फिसल कर बाथरूम में गिर पड़ा, और मैं वहां से भाग निकली, अच्छा हुआ वह मर गया" यह कह कर अहाना अजीब तरीके से हंसने लगी,

"भले ही तुम ने अपने बचाव में उसे धक्का दिया हूं उसकी मौत तुम्हारे कारण हुई है इसलिए मुझे तुम्हें गिरफ्तार करना होगा" मैंने कहा

"गिरफ्तार तो मैं पहले थी...., उसने मुझे कैद कर रखा था..., मैं तो अब आजाद हो गई हुं….! अब कोई मुझे कैद नहीं करेगा…! अब कोई मुझे प्यार नहीं करेगा, कोई भी नहीं…..!!" वो कभी हंसने लगती तो कभी जोर जोर से रोने लगती उस पल मैं समझ गया अब अहाना का दिमागी संतुलन ठीक नहीं रहा, हमने उसे कोर्ट में पेश तो किया मगर वही बातें दोहराती रहती, "मैं आजाद हूं..., मुझे कोई कैद नहीं कर सकता....!!"

कोर्ट ने उसे पागल करार दे कर पागलखाने भेज दिया जहां उसका इलाज चल रहा है । 

इस केस ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया हम जो अपने बड़े होने का फायदा उठाते हैं अपने छोटो पर रोक-टोक करते हैं उससे उनके दिमाग पर कितना गहरा प्रभाव पड़ता है हम अपनी मर्जी किसी पर लागू नहीं कर सकते हर इंसान को अपनी मर्जी से जीने का पूरा अधिकार है बस एक सवाल है जो मुझे चुभता है कत्ल किसका हुआ नवीन का या अहाना का किसने किसको कत्ल किया नवीन के कत्ल के सबूत हम सब के सामने हैं, मगर अहाना के कत्ल के कोई निशान नहीं है, उसके कातिल ने बेनिशान कत्ल किया और खुद भी अपने अहंकार की आग में जलकर मर गया।


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