बेबस प्यार
बेबस प्यार
मैं उसे खोने से डरता था
इसलिए बात करता था।
कही बन्जर ना हो जायें मेरा प्यार
इसलिए प्यार की बरसात करता था।
याद आती थी बहुत उसकी
तब दिल से बहुत रोता था।
और ये वाकया तब होता
जब मैं गहरी नींद में सोता था।
क्या करूँ मिल भी नहीं सकता
मैं बहुत मजबूर था।
जिम्मेदारी का बोझ इतना था
तब मैं समझा कि मैं
मंजिल से बहुत दूर था।
हाँ मैं उससे मिल नही पाया
बस यही मेरा कसूर था।
बस यही मेरा कसूर था।