बदनसीब नीम के पेड़ की आत्मकथा
बदनसीब नीम के पेड़ की आत्मकथा
प्रस्तावना पर्यावरण की रक्षा के लिए हमने बहुत ही वृक्षारोपण करे हैं।
उनमे बहुत बार हमको बहुत सारी तकलीफ हो से गुजारना पड़ा है ।लोग पेड़ों के छाया का तो आनंद लेते हैं।
मगर उससे होने वाला कचरा उसको साफ करने में प्रॉब्लम होता है। उस सबसे पेड़ लगाने वाले लोगों को बहुत परेशान करते हैं। और हम इसमें से गुजर चुके हैं। फिर भी हमने हार नहीं मानी ।हमारी पूरी रोड में ,हमारे घर के आस-पास, हमारे हॉस्पिटल के अंदर वृक्षा रोपण कार्यक्रम करके हमने बहुत सारे पेड़ लगाए थे ।
उन्हीं में से एक बदनसीब की कहानी जो मैं आपके सामने रख रही हूं। जब इस पेड़ पर वापस पत्तियां आई थी तो मैंने इसकी एक पोस्ट फेसबुक पर भी करी थी फोटो के साथ अपलोड।
तो प्रस्तुत है आपके लिए एक बदनसीब नीम की कहानी ।
मैं एक बदनसीब नीम का पेड़ ।जिसको 2011 में पर्यावरण के रक्षक और पेड़ों से प्यार करने वाले लोगों ने बड़े प्यार से ,बहुत सारे पेड़ों के साथ में लगाया।
मैं बड़ा खुश था। बहुत फला फूला बहुत बड़ा हुआ। मेरी छाया में बहुत से लोग आते जाते ।विश्राम करते थे।
बच्चे वहां खड़े होकर चाय पीते थे ।और मेरी छाया के अंदर काफी मौज मस्ती करते थे। मैं बहुत ही खुश था।
सब कुछ बहुत ही अच्छे से चल रहा था ।मेरी छाया में लोग गाड़ी भी पार्क करके जाते थे ।ताकि वह आए तो गाड़ी गर्म ना हो। बहुत गर्मी ,सर्दी ,बरसात सब मौसमों में मैं अडिग खड़ा रहा। और मेरे रक्षक मेरी देखभाल भी करते थे।
कभी-कभी मुझे पानी भी पिलाते थे और ध्यान रखते थे ।मगर मुझसे कुछ विघ्न संतोषी लोगों को बड़ी तकलीफ रहती थी ।हमेशा बोलते थे। इस पेड़ के कारण बहुत कचरा होता है। सब तरफ गंदगी हो जाती है। बहुत ही सफाई करनी पड़ती है ।
इसमें हम को परेशानी होती है।1 दिन की बात है कोई दो तीन जने होंगे। एक के हाथ में कुल्हाड़ी थी ।एक के हाथ में कोई बोतल थी। पता नहीं किस चीज की थी शाम का 6:00 7:00 बजे का समय था ।वह लोग मेरे पास आए थोड़ी देर मेरे नीचे बैठकर आपस में बहस करने लगे कि पूरा पेड़ काट दे या दो-तीन डालें काट कर के छोड़ दें ।
आपस में बहुत बहस बाजी हो रही थी उनके। फिर एकमत होकर उन लोगों ने मेरी दो डालो को काटने का सोचा ।और मेरी डालो के हाथ लगाने लगे। थोड़ी देर में एक आदमी उठा जिसके हाथ में कुल्हाड़ी थी ।उसने मेरी तीन डालों में से दो बड़ी-बड़ी डालो को खचाखच काट दिया।
मुझे इतनी तकलीफ हुई कि रोना आ गया ।और जो दूसरा बोतल वाला आदमी था उसने उस बॉटल में से कुछ प्रवाही मेरे अंदर डाल दिया कटे हुए भाग में।
और वह दोनों ,तीनों जने वहां से उठकर के चुपचाप भाग गए ।मैं पीड़ा से रोता रहा सुबह उठकर जब मेरे रक्षकों ने देखा की मुझे काट दिया गया है तो वह बहुत दुखी हुए। मगर किसी को देखा नहीं थाऔर यह तो पब्लिक प्रॉपर्टी है। तो कुछ कर नहीं सकते।
थोड़े दिनों के बाद में मेरीजो तीस री डाल जो नहीं कटी थी। थोड़ा बाकी थी उसमें से हरे हरे कोमल कोमल पत्ते निकलने लगे ।मैं बहुत खुश हुआ ।मुझे वह कहावत सार्थक लगी। जाको राखे साइयां मार सके ना कोई ।फिर मैं थोड़े दिन तक और थोड़ा बढ़ा ।मगर मेरी दो डालें कटने से मोटा तना काफी कमजोर हो गया उसमें दीमक जैसे शत्रुओं ने घर कर लिया।
और मुझे अंदर से खोखला कर दिया। तो 1 दिन मैं पूरा सूख गया ।और मुझे काट दिया गया पूरा जड़ से निकाल दिया गया ।और इस तरह मेरी जीवन लीला समाप्त हो गई।