बचपन
बचपन
बचपन जिंदगी की गहराइयों से नफे-नुक्सान से परे होता है। वह नहीं जानता क्या अच्छा है, क्या बुरा है। क्या सच है, क्या झूठ है। वह यह भी नहीं जानता कि जो उसे मिला है। वह जहर है, मौत है। लेकिन वह खुश है उसे जो भी मनचाहा मिलता है।
बाजार से निकलते हुए आज अदिति ने जो दृश्य देखा था वह मन को भीतर तक कचोट रहा था। हमारा समाज किस ओर जा रहा है। सिर्फ अपना ही नफा नुक्सान देखता है। और दूसरे को जहर देने में भी संकोच नहीं करता।
गली में एक दुकान के बाहर आठ -दस बच्चे हाथों में बिस्कुट के पैकेट लिए बहुत खुशी से खा रहे थे। मानो आज उन्हें मनचाही चीज मिल गई हो।
अदिति को लगा दुकानदार ने दिये होंगे। क्योंकि पहनावे से बच्चें झोपड़पट्टी के लग रहे थे। दुकान वाले ने दे दिये होंगे ग़रीब बच्चों को।
बच्चे बहुत खुश थे। एक दूसरे को पैकेट दिखा- दिखा के खा रहे है। तभी अदिति की नज़र दुकान के दूसरी तरफ बिस्कुट सड़े हुए और कुछ खराब थे।
अदिति को समझते हुए देरी न लगी गी बिस्कुट खराब होने की वजह से फेंक दिए थे और बच्चें खुशी से खा रहे थे।
अदिति को सब देख कर बहुत दुःख हुआ।अगली दुकान पर वह कुछ लेने रूकी तो उस दुकान वाले ने बताया कि आज शहर में कई दुकानों पर छापे मार कर खराब माल पकड़ा जा रहा है। लोग अपना खराब माल निकाल कर जला रहे है।
अदिति भारी मन से यह सोचती हुई घर की तरफ चल पड़ी कि मुनाफ़े के लिए कुछ दुकानदार लोगों को मौत और बीमारी देने से भी नहीं हिचकिचाते।