औरतें बदल रही है
औरतें बदल रही है
Friday को हमेशा की तरह ऑफिस से रेलवे स्टेशन के लिए निकली।हर हफ्ते week end को मैं गावँ जाती रहती हूँ।रेलवे स्टेशन पर ट्रेन में पढ़ने के लिए कोई किताब लेने के इरादे से बुक स्टाल पर गयी और किताबें देखने लगी।मैंने थोड़ी देर इधर उधर की किताबें और मैगज़ीन्स उलट पलट कर देखने के बाद दुकानदार से 'इंडिया टुडे' और 'आउटलुक' मैगज़ीन मांगी।
दुकानदार मुझे 'गृहशोभा', 'वनिता', 'सरिता' और मैगज़ीन दिखाने लगा।मैंने उसे कहा कि क्या नयी वाली इंडिया टुडे' और 'आउटलुक' नही आयी है?बिना कुछ कहे उसने फिर मुझे Women's era दिखायी।शायद उस की नजरों ने पढ़ लिया कि मैं working woman हुँ और किसी ऑफिस में काम करती हुँ तो मेरी चॉइस कोई अंग्रेजी मैगज़ीन हो सकती है।
मैंने थोड़ा जोर देकर उससे कहा, मैं आपको इंडिया टुडे और आउटलुक मैगज़ीन मांग रही हुँ और आप मुझे बार बार यही किताबे दे रहे है। मैंने फिर कहा,"सारी औरते जरूरी नही की ये गृहशोभा टाइप की किताबें पढ़े,अब टाइम चेंज हो गया है और औरते भी।आप को अब औरतों को देखने वाला नजरिया बदल लेना चाहिए..."
मेरी बात सुनकर दुकानदार के चेहरे पर मंद मुस्कान छा गयी... शायद वह मेरी बातों से agree हो गया था और उस मुस्कान में उसकी सहमति भी दिखायी दी....