और प्यार हो गया
और प्यार हो गया
स्थान: भारत का एक बडा शहर।
बहोत बडे हॉटेल मे वो शादी होने जा रही थी।करण एकदम अजनबियों सा उस प्रशस्त हाल मे खडा था उसकी बेचैन नजरें वहा सिया को ही ढूँढ रही थीऔर अचानक उसकी निगाह उस आलिशान सिडियों से नीचे आती हुई सिया पर पडी।सिया ने अपने मेहंदी लगे हाथों की मुठ्ठिया भीच ली थी और वो खोई-खोई सुन्न आँखों से नीचे उतर रही थी।सिया ने देख लिया की करण उसे दूर से देख रहा है।फिर वो नीचे ना आते हुए उपर के कमरे मे दौडती हुई चली गई।
ये देख करण ने बाजू की दीवार पर जोर से मुक्का मारा.. Sssss
मिट्टी से बनी वो दीवार तो हरकीज नहीं थी, लेकिन लग तो वैसे ही रही थी। उसे सजाया ही ऐैसे गया था की वो दीवार एकदम सचमुच की दीवार लगे।
वही पास मे शादी के लिए सजाया हुआ सामान रखा था। वो सारा सामान करण के एक ही मुक्के से ढेर सा हो गया।और सामान के पास रखे जलते हुए दिये महंगे कपडो पर गिर गए।इस बात की तरफ जल्दी किसी का ध्यान नहीं गया पर जब आग भडकी तो सब चिल्लाने लगे।करण के साथ आशु भी आया था। वो थोडी दूर खडा था।आशु को लगा की सिया करण के साथ बात कर लेंगी बाद मे सबकुछ तो ठीक ही हो जायेगा।इसलिए वो जरा दूर ही खडा था पर उसने ये सारा नजारा देख लिया और सही वक्त पर उसने करण को पीछे खिच लिया।
जल्द ही आग बुझा दी गई साथ धुवाँ उठता रहा।करण देख रहा था की वो शोर शराबा सुनकर सिया भागती हुई नीचे आई है।आशु करण को पीछे खींच कर लेजा रहा था। और थोडी देर बाद आशु के साथ करण चाय की टपरी पर बैठा था।वो टपरी शादी के हाल से बिलकुल नजदीक ही थी।कहीं आग लग चुकी थी और धुवाँ इधर उठ रहा था।
कहीं था शोर मचा आतंक
तो कहीं खामोशी दबी थी।
अपनी बनाई नाव में बैठ
अपने ही बनाए सागर मे
वो शख्स डूब रहा था।
इधर का हाल भी कुछ
ऐैसा था, जैसा उधर का
नजारा दिख रहा था...
एक सड़कपर जाता सूफी फकीर ये गीत गाता हुआ वहा से गुजर रहा था।
करण को लगा की उस फकीर को जाकर कसकर गले से लगा लू।पर करण ने वैसा कुछ नहीं किया।वो सूफी गीत तो उसे अपनी गुजरी मे ले गया। उसे याद आया वो सबकुछ.., हा, वो सबकुछ जिसमें सिया थी।उसके अतीत मे भरी हुई सिया उसे साफ दिख रही थी।