अतीत का अहसास भाग-1
अतीत का अहसास भाग-1
वो कहते हैं न...! ज़िन्दगीकी पहेली कभी सुलझती नहीं।
अपनी पहेली को सुलझाने का लाख प्रयत्न किया मगर कम्बख्त सुलझी ही नहीं। इसी बीच मैं अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ता गया, आखिरकार समय किसी का इतंजार नहीं करती, वो तो निश्छल है, निरंकारी है। हमेशा अपनी ही धुन में चलती रहती है। ज़िन्दगी में आगे बढ़ने का निश्चय कर के मैं अपने अतीत को भुलाने का प्रयत्न करने लगा। मैंने निश्चय किया कि जिंदगी के उस पहलू को कभी नहीं देखूंगा, जिसने मुझे इतनी दुःख दिया है। मैं लग गया अपनी रोजमर्रा की भागमभाग में। वही पुरानी दोस्ती, वही पुरानी आवारगी भरी दिनचर्या। मगर अपने भीतर की आत्मा कहीं न कहीं उस अतीत के अहसास को भुलाने नहीं देती थी। आँसू बन कर नयन से झलकने वाली हर एक बूंद कहती थी, ये ज़िन्दगी है दोबारा नहीं मिलने वाली। मगर एक आम इंसान कर भी क्या सकता है। ईश्वर का हर्फ समझ कर स्वीकार ही कर सकता है। कभी तो दोस्तों की हरकतों से याद आती अपने अतीत की, तो कभी खुद की हरकतों से। मगर याद कम्बख्त हर दिन ही आती थी। मैंने फिर से उससे बात करने का प्रयत्न किया, उसकी बहन के माध्यम से। मगर वो तो जैसे यमदूत का सगा- सम्बन्धी समझ कर नफरत करने पे तुली हुई थी।
मेरी आवाज़ मानो, काल के घन्ट के समान लगती हो उसे। मैं निश्चय कर चुका था। मुझे अपनी सारी बात बतानी थी। जो उसके जाने के बाद मैंने उसकी याद में बताई थी। मैं हार नहीं माना, लगातार प्रयत्न करते रहा। आखिर कार उसने अनजाने में बात की एक दिन। उसके बहन के द्वारा दिए गए फोन नम्बर से जब मैंने उसके नई नम्बर पे फोन किया तो उसने उठा कर पूछा कौन ? मैं निःशब्द था। ! उसने दोबारा पूछा कौन ? मैंने खुद का नाम बताया। ठीक उसी क्षण उसने फोन रख दिया। मैं समझ गया, अब वो कभी मेरी नहीं हो सकती। सारे अहसास! पल! कल्पना..! मिट्टी में मिलने को आतुर थे।।
मैंने तभी खुद को विश्वास दिलाया और कभी दोबारा उससे या उससे घर वालों से बात करने की कोशिश की। वो शायद मुझे जानती है, तभी तो न रहने के बावजूद हक जमा कर कुछ भी कर जाती है। उसे भरोसा आज भी है, तभी तो वो अपनी हर एक शिकवा,अपनी अदाओं से बता जाती है। गर उसे भरोसा न होता, अपने आशिक पर। तो क्या वो कातिल बदमाशियाँ कर जाती ? आज भी इतंजार है उस पल का जब वो आ कर बोलेगी, आओ तेरे बिना अधूरी सी जिंदगानी लगती है।
क्रमशः.....

