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Gaurav kumar Anshu

Others

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Gaurav kumar Anshu

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बचपन की ख़्वाहिश

बचपन की ख़्वाहिश

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"खड़ा हिमालय बता रहा है,

डरो न आंधी, पानी से।

डटे रहो तुम अपने पथ पे,

सब कठिनाई, तुफानों में।।

बचपन में सभी लोग ये कविता पढ़े ही होंगे। मगर कुछ लोग इस कविता के आशय को कुछ ज्यादा ही गहराई से अत्म्यत किया होगा।

मैंने भी जब पहली बार ये कविता पढ़ी तो, मुसीबत में तो बहुत काम दी। मगर उसी के साथ- साथ अनेकों सवाल घेरे रहती थी।

आखिर ये हिमालय है क्या चीज़ ? कौन सी बला का नाम है हिमालय ? हिमालय से रूबरू होने का रोमांचकता अपने अंदर समेटे हुए, अपने जीवन में आगे बढ़ता चला गया। उम्र और तजुर्बे के साथ-साथ हिमालय की जानकारी भी नए- नए प्रकार से मिलती रही। आखिर कार निश्चित कर ही लिया, की हिमालय से रूबरू होना ही है। देखना है कि आखिर एक अविचल, अखण्ड और विशाल पर्वत लोगो के जीवन में अपनी छाप कैसे छोड़ती है। इसी बीच कुछ दोस्तों के साथ कंचनजंगा चोटी को देखने के लिए निकल पड़ा । चूंकि हमारे घर का भौगोलिक स्तिथि पहाड़ों वाली थी तो मैंने सोच रखा था, इन्ही सब पर्वतों के जैसे बड़ी आकृति का कोई पर्वतमाला होगा। मन में रोमांच भी था और सैंकड़ो सवाल भी। ये सब लिए मैं जा पहुंचा जलपाईगुड़ी। जहां से हमलोगों को आगे की रास्ते तय करने थे। रेलगाड़ी काफी देर से पहुंची। इसलिए रात्रि विश्राम हमलोगों ने जलपाईगुड़ी में ही कि। दूसरे दिन हमलोगों ने एक बोलेरो गाड़ी से जा पहुंचा गंगटोक। सुना था यहां मौसम साफ रहने पे हिमालय की तीसरी सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा साफ दिखती है।मेरे अंदर एक अद्भुत चहल थी। रोमांच मेरे रोंगटे खड़े कर रहा था। इसलिए दोस्तों को छोड़ कर चार बजे सुबह जा पहुंचा तासी व्यू पॉइंट।अपने बचपन की भ्रांति साक्षात देखने के लिए मैं एक पल भी अब नहीं रह सकता था। तभी सूरज के पहली किरणों के साथ एक पर्वत थोड़ा धुँधला सा, थोड़ा चमकता सा मेरे आँखों के सामने था। यही कंचनजंगा थी।

मेरी पहली झलक मानो मेरे अंदर एक अजीब सी स्फूर्ति, और कशमकश ला दी। मैं रोमांच के शिखर पे था। तभी मौसम खराब होने लग गया और बादलों ने कंचनजंगा को अपने आगोश में ले लिया। मैं और करीब से देखना चाहता था। जो रोमांच मेरे रोमछिद्र में जा पहुंचा था। उसको करीब से महसूस करना चाहता था। ये सब के बीच में मैं मायूस होकर अपने दोस्तों के पास पहुंच गया। मेरे दोस्तों ने फिर मुझे बताया कि कंचनजंगा के बेस तक जाने का प्लान बन चुका है। बस अब तैयारी कर के हमलोगों को निकलना है। मेरी खुशी सातवें आसमान में थी। मैंने बिना समय गंवाए, अपनी सारी जरूरी के सामान बैग में रख कर मैं तैयार हो गया।

( क्या बचपन से जो सवाल मेरे अंदर गूंज रहा था। उसका जवाब मुझे मिलेगा ?)


क्रमश



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