एक अनसुलझी पहेली
एक अनसुलझी पहेली
भौतिक सुखों की भरपुरता के साथ बचपन से ही एक कमिश्नर बनने की ख्वाहिश पाले हुए, अपने लक्ष्य के पीछे भाग दौड़ की जिंदगी के बीच मे, मैं एक जन्मदिन के समारोह में जा पहुंचा।
आज भी याद है वो दिन जब मेरी मुलाकात एक ऐसी लड़की से हुई, जिसे मैं न जानता था और न ही पहचानता था। फिर भी ऐसा लग की मै उससे बहुत दिनों से जनता हूँ। एक अजीब सी हलचल थी मेरे अंदर, हमेशा खामोश रहने वाला मैं ये वाकया अपने दोस्त को फोन पे बता रहा था।
तभी मेरे मन मे उस लड़की से भी ये बात कहने की इच्छा हुई। मगर दुबारा वो कहीं नहीं मिली। उसकी अधूरी जानकारी और एक नया अहसास लेकर मैं अपने घर आ गया।
फिर शुरू हुई थोड़ी पागलपंती कभी मैं उसके विद्यालय से उसकी जानकारी लेने की कोशिश करता तो कभी उसके शहर जाकर। मगर हांथ कुछ नहीं आता।
एक कल्पना या उम्र की कलिमा के पीछे 2 साल यूँही भागता रहा। हाथ कुछ नहीं लगा । धीरे धीरे मै भूलता चला गया वो पल। और भूलें भी क्यों नहीं उम्र की बदमाशी जो थी।
करीब 4 साल बाद फिर वो घड़ी आयी जब मैंने उसका नाम नींद में सुना जब मैं एक समारोह में गया था। सारी अतीत सामने आकर जोर से मुझे नींद से जगा दी।
मैंने उस चेहरे को ढूंढना शुरू किया। देर से ही सही मिल गयी वो झलक, सारी अतीत जैसे मुझे बोल रही हो कि ये जिंदगी है जनाब इतने आसानी से पीछा नहीं छोड़ेगी। मगर मैं बस देख ही सकता था। कुछ कर नहीं सकता था, क्योंकि मैं एक शांत स्वाभव का लड़का जो प्रतीत होता था। वो फिर से चली गयी और मेरे हाथ से फिर एक बार मौका निकल गया उसे सब कुछ बताने का।
मगर ईश्वर और जिंदगी भी मानो बोल रही थी कि इतनी आसानी से इससे पीछा नहीं छूटेगा। फिर मुलाकात हुई मेरी उसके साथ उसी जगह पे कुछ दिन बाद। मगर इस बार मैं तैयार था । उसके साथ हल्की फुल्की बात करने की कोशिश की और वो मुझे एक परिचित व्यक्ति होने के भाव से बात की।
फिर मैंने सोशल नेटवर्किंग साइट के माध्यम से उससे धीरे धीरे बात करने की कोशिश की और फिर वही पुरानी कथा जो सब के साथ अक्सर होती है मेरे साथ भी हुई।
फोन से हमलोग मिलने की जगह निश्चित किये और मैं एक छोटा सा बहाना बना कर उससे मिलने आ गया। सामने से अकेले देखने के बाद मैं सन्न रह गया कुछ बोल न सका। बोलता भी कैसे पहली बार जो मैं खुद के लिए आया था। एक अच्छा और सच्चा लड़का सोच कर उसने हामी भर दी मेरे से दोस्ती करने के लिए।
उस दोस्ती की मानो मेरी ही नजर लग गयी, उसके जीवन मे एक लड़का पहले से था जिसे वो अपना सबकुछ दे चुकी थी। जो उसे परेशान कर रहा था। वो जान देने जा रही थी। ये मैं कैसे होने दे सकता था।
मैंने उसे समझाया, हंसाया और उसके जीवन को सच्चाई का राह दिखाया । वो सामना की उसका और उसे कुछ नहीं हुआ।
हमलोग अब शादी करने वाले थे। लेकिन उस लड़के का साया हमदोनो के बीच मे आ ही जाता था। जिस वजह से अनबन होती रही। मगर मैं एक ईश्वर के द्वारा भेजे गए तोहफे के लिए सब कुछ सहता चला गया।
फिर भी हमलोग शादी करना चाहते थे और इसके लिए समाज होता है, दोस्त और रिश्तेदार होते हैं, परिवार होता है और सबसे बड़ी बात परिवार मे एक पिता होता है, जो अपनी बेटी के लिए अपने से ऊंचे घर का लड़का चाहता है। जो एक मोटी रकम कमाता हो, उसके लिए बेटी, भावना, अहसास आदि कुछ नहीं होते। इसलिए लग गया मैं कुछ अपनी पहचान बनाने में। कमी रहे या न रहे लड़का कमाना चाहिए।
काम के लिए कुछ तो करना था सो लग गया न चाहते हुए भी। लक्ष्य धरा का धरा रह गया मेरा। केवल एक अतीत के अहसास और अपने लिए लग गया धनकोपार्जन में। जिसके लिए काम कर रहा था और जो मै कर रहा था दोनों के बीच सामंजस्य बनाने में असमर्थ रहा, जिसके वजह से हमदोनो के बीच खटास चालू हुई।
और एक दिन मेरे लक्ष्य से सामना हुआ जब मैं एक पुलिस कमिश्नर से मुलाकात की। इस खटास के बीच मैं मेरा लक्ष्य जो में बचपन से लेकर चला था भारी पड़ गया । मैं कुछ भी करने मैं असमर्थ महसूस कर रहा था। एक तरफ सुखद भविष्य और बचपन की ख्वाहिश थी, वही दूसरी तरफ वो थी जिसके लिए मैं सबकुछ भूल गया था। तभी हमारे आपस के एक झगड़े ने मुझे उससे दूर ले गया। मैं उससे कुछ भी बात नहीं करना चाहता था।
उसी पल उसने मुझसे सारी चीजें भूलकर दूरियां बना ली। ऐसी दूरी की मैं कोशिश करते करते थक गया मगर वो वापिस न आई। मेरी एक आवाज मानो उसके कान मैं ज्वालामुखी ला देते थे। वो मेरी आवाज नहीं सुनना चाहती थी। फोन भी अब नहीं लगती थी। मेरी लिखी हर एक बात मानो उसे आग से जलने जैसा लगती थी।
वो चली गयी उसी जगह में जहां वो 5 साल पहले से आई थी। और पीछे छोड़ गई ढेर सारी यादें, अहसास जो मैं चाह कर भी नहीं भूल सकता।
सालों प्रयत्न करना बेकार साबित हुआ। जीवन बदल के वो चली गयी, मगर पीछे छोड़ गई ढेर सारी बाते जो मेरे अंदर जोर जोर से बोल रही कि क्या यही वो कल्पना थी जिसके लिए मैं पागलो की तरह भागा करता था ? क्या यही वो कल्पना थी जिसके लिए मैंने खुद की ख्वाहिश का गला घोंटा था ? क्या यही वो कल्पना थी जिसके लिए मैंने अपनी जिंदगी बदली थी ? मेरे अंदर जोर जोर से चिल्ला कर सुलझना चाह रही है एक कभी नहीं सुलझने वाली पहेली !
