अतीत का अहसास -2

अतीत का अहसास -2

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उसके लफ्ज के तलवार से घायल होने की लालसा लिए मैं इतंजार कर रहा था। मगर समय बीतता गया और न उससे सम्पर्क हुई , न ही वो आई।

अपने भीतर उसके स्वर्णिम अहसास को लेकर जो उथल-पुथल हो रही थी। उससे मैं खुद ही हार रहा था। और निश्चय किया कि आखिरकार उससे उसके घर जाकर मुलाकात करूँ। मैं एक उचित समय का इतंजार कर रहा था। और आखिरकार वो समय आ गया। मुझे अपने सम्बन्धी के घर जाना था। जहां हर साल की भांति उसका आना भी तय ही रहता था। मैंने चिंतन की वहीं उससे मुलाकात होगी; और मैं अपनी सारी अहसास, उसके बिना एक अरसे की तरह लग रही एक-एक घड़ी की सारी चीजें विस्तार से बताऊंगा। शायद वो मुझे समझ ले और मेरे भीतर चल रहे उसके अहसास को वो समझ ले।

अब मेरे से तनिक भी इतंजार नहीं हो रहा था। आखिरकार वो दिन भी आ गया। मैं अहले सुबह अपनी दो-पहिये वाली मोटर बाइक से गन्तव्य की और बढ़ चला। मैं लालायित था। एक अजीब से कसमकश चल रही थी मेरे अंदर। मैं सारी रास्ता यही विमर्श करने में लगा था कि क्या-क्या बोलना है! कैसे बोलना है! वो क्या बोलेगी! क्या वो मुझसे खुद से वार्ता करेगी! आदि आदि।

चार घण्टे का समय कैसे गुजरा तनिक भी पता नहीं चला। अन्ततः मैं वहाँ पहुंच चुका था। वहां पहुंचते ही मेरी आँखें बस उसे ही ढूंढ रही थी। क्या वो आ गयी ? नहीं आई तो कब आएगी ..! मगर अफसोस वो वहां नहीं आने वाली थी। जब ये मुझे पता चला तो मानो मेरा दम ही घुटने लगा। मुझे एक पल भी वहां रुकने का मन नहीं कर रहा था। मैं खुद को कोस रहा था। मेरी वजह से उसकी हर साल की परंपरा टूट गयी। मुझे न चाहते हुए भी, एक रात वहां रुकना ही था। वो एक दिन-रात मानो मुझे कई साल के बराबर लग रहे थे। मैं सोच- सोच कर अंदर ही अंदर रो रहा था। मैंने ऐसा क्या कर दिया है। जिससे वो मेरी आने वाली जगह का ही त्याग कर दिया। जैसे-तैसे रात गुजारी मैंने। सुबह मुझे वहां से निकलना था, मगर सम्बन्धी के लाख रोकने के बावजूद मैं नहीं रुका। एक झूठ बोल कर मैं वहां से निकल गया। मैंने निश्चय कर लिया था, उसके घर किसी भी बहाने से जाना ही है। सो मैं निकल पड़ा अपने 2 घण्टे के सफर पे।

मैं सारे रास्ते उसके घर जाने की तरकीब सोच रहा था। सारी तरकीब और किस्मत मानो मुझसे बोल रही हो कि आज मैं तेरा साथ नहीं दूंगी..! ।

तभी मुझे एक तरकीब सूझी। क्यो न किसी दोस्त का नाम लेकर ये बोल दूं, की उसके घर जा रहा था ; तभी आपलोगों को देख लिया। अपने तरकीब को पटल में लाने के लिए भी उसके घर के पास से गुजरना तो था ही। और मैं तो उसके घर का पता जानता था, मगर सही घर नहीं पहचानता था। फिर भी ऊपर वाले का नाम लेकर उसके घर की तलाशी शुरू कर दी। उसके पते के पास पहुंचने के लिए, उसके छोटे से शहर में दो घण्टे घूमा। मगर सही जगह नहीं मिली। मैं किसी दूसरे से उसका पता भी नहीं पूछ सकता था। एक अजीब सा डर और मेरे तरकीब के विरुद्ध था। क्योंकि अगर मैं किसी से पता पूछता और वो उसके घर मे कभी भी बोल देता तो मेरी झूठ पकड़ी जाती। और अपने साथ साथ उसका भी सर झुका देता।

इसलिए मैं खुद ही पते को ढूंढना जारी रखा । मगर मेरे हाथ निराशा लगी। मैं कुछ भी करने में असमर्थ महसूस कर रहा था। अब तो एक अजीब डर भी सता रही थी मुझे। मैं खुद को शांत करने के लिए एक दुकान में रुक कर पानी पी। और अपने मित्र जिसे मैं अपने भाई के जैसा मानता था। उससे सम्पर्क की फोन पे। और अंततः बोला उसे फोन कर के बोले कि मैं उसके पते पर नहीं पहुंच पा रहा हूँ। वो ही कृपया आ जाये। मुझे लगा वो ये सुन कर एक बार मुझसे संपर्क जरूर करेगी। दो सौ किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय कर के उससे मिलने को आया हूँ। वो जरूर आएगी। मगर मेरी किस्मत इतनी खराब थी कि मेरे दोस्त का भी फोन उसने नहीं उठाया। फिर मैंने एक मैसेज उसे भेज दिया। और इतंजार करने लगा उसके जवाब का। मगर हमेशा की भांति, उसका कोई जवाब नहीं आया। लाख कोशिश करने के बावजूद जब मेरे हाथ केवल निराशा लगी। तब मैंने उसकी बहन को फोन कर दिया। मगर उसने भी मेरा फोन नहीं उठाया। मैं निराश हो गया था। या मानो एक बार फिर टूट गया था। तभी उसकी बहन का मैसेज आया। मैंने वही बोला कि दोस्त के यहां आया था, सोचा आपको बता दूं आपके शहर आया हूँ। मुझे लगा वो मुझे अपने घर बुला लेगी और मै उससे मिल सकूंगा।मगर ऐसा हुआ नहीं । मैं निराश होकर अपने घर की तरफ जाने की योजना बनाने लगा। क्योंकि शाम ढल रही थी, और मुझे घर पहुंचने में अब भी पांच घण्टे लगने वाले थे। तभी उसके माँ का फोन आया और वो मेरे से बात कर रही थी। उसने इतने प्यार से बोला कि ' बेटा इतने दूर आये हो, तो घर आ जाओ'। मैं क्या जवाब देता ? मैं असमंजस की स्थिति मे पहुंच चुका था। अगर घर गया तो कहीं वो अपने माँ और बहन पर न गुस्सा जाए! और अगर नहीं गया तो मेरे अहसास का क्या होगा ?

अपने अंदर चल रही तथा कथित सवाल से मैं अचंभित से हो गया था। क्या मैं अपनो सारे अतीत के अहसास का निराकरण कर पाऊंगा या नहीं ...!



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