" अस्पृश्य"
" अस्पृश्य"
मालकिन ने रसोई के एक कोने में रखी थोड़ी पिचकी-सी, घिसी थाली, कटोरी, ग्लास और चम्मच उठा, उसमें खाना सजाया और खाना बनाने वाली को रसोई के बाहर एक कोने में ज़मीन पर बिठाकर उसके सामने थाली रख दी।
खाना बनाने वाली का आज उस घर में पहला ही दिन था। जल्दी से खाना खाकर झूठे बर्तन सिंक में रख दिये क्योंकि बर्तन मलने वाली भी आती थी। मालकिन ने देखा तो उसे कड़क शब्दों में निर्देश मिले "खाना खाकर अपने बर्तन धोकर वहाँ उस कोने में रखना। दूसरे बर्तनों से छूना नहीं चाहिए।"
वह हक्की-बक्की-सी रह गई। उसके जी में आया कि पलट कर उत्तर दे "मालकिन आप लोग मेरे हाथ का बना खाना तो खा लेते हैं ना, फिर?
