कुंठित स्नेह पाश

कुंठित स्नेह पाश

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" चलो, आज मैं तुम्हें यहाँ के बड़े तालाब में नौका विहार के लिए ले चलूँ।"
अपनी दो दिन पुरानी नववधु रूपल को मेहमानों के रूखसत होने के बाद , कहीं घुमा लाने की गरज़ से उत्साहित दीक्षांत ने कहा।

रूपल तैयार होकर आई तो प्रेम से उसे निहारते दीक्षांत ने अपनी कार बाहर निकाली।

" वो बीएमड़ब्ल्यू कार कहाँ गई जिसमें आप लोग मुझे विदा करके लाए थे??"

रूपल ने मारूति कार देख कुछ अचकचाते हुए पूछा।

" वो तो मेरे मामाजी की कार है। ", सहज भाव से दीक्षांत ने उत्तर दिया, " उनको बड़ा चाव था कि बहू को खुद ही विदा करा के घर लाएँ "।

छोटी मारूति कार में बैठती रूपल के चेहरे पर कुंठा उभर आई। रास्ते भर वह चुप रही।

उस रात दीक्षांत ने अनुभव किया कि रूपल के स्नेहपाश में पहले सी ऊष्मा और मधुरता नहीं ....!!


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