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Mukesh Kumar Sonkar

Tragedy Crime Inspirational

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Mukesh Kumar Sonkar

Tragedy Crime Inspirational

अस्मत

अस्मत

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शोएब...... अबे शोएब...... उठ जल्दी से दरवाजा खोल......

अपने दोस्त शोएब को आवाज देकर दरवाजा खुलवाते हुए विराज लगातार दरवाजा पीट रहा था। दरवाजा खुला और अंगड़ाई लेते हुए शोएब बाहर निकल कर बोला, क्या हुआ बे ऐसे क्या तूफान आया है जो लगातार दरवाजा पीट रहा है।

शोएब भाई तूफ़ान ही आया है समझो......विराज ने कहा। अबे साले पहेलियां मत बुझा साफ साफ बता बात क्या है और तेरे हाथ में ये न्यूजपेपर कैसे है न्यूजपेपर बांटने लगा है क्या शोएब हंसते हुए बोला। विराज अब भी गंभीर था और उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी, उसने शोएब के हाथ में न्यूजपेपर थमाकर कहा खुद ही देख ले भाई।

शोएब ने न्यूजपेपर का वह पेज पढ़ा और पढ़ते ही उसके भी रोंगटे खड़े हो गए, उसके मुंह से चार ही शब्द निकले अब ये तो वही...... विराज बोला हां भाई वही लड़की है जिसका हमने पिछले दिनों मेले से लौटते वक्त शिकार किया था और अपनी अस्मत गवाने का उसे इतना गहरा सदमा लगा कि उसने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली।

बात यहीं पर नहीं खत्म हुई भाई उसकी मौत से दुखी होकर उसके बूढ़े मां बाप दोनों ने भी जहर पीकर जान दे दी, सुनने में आया है कि वो लड़की उनकी इकलौती बेटी थी जिसे उन्होंने बड़े प्यार से पाला था और वही उनके बुढ़ापे का सहारा थी, लेकिन हम कमबख्तों की करतूत ने उन तीन मासूमों की जान ले ली, हमने उसकी अस्मत ही नहीं लूटी बल्कि उन तीनों का कत्ल किया है।

शोएब ये सब सुनकर हक्का बक्का रह गया और घबराकर उसने पूछा यार किसी को पता तो नहीं चला होगा ना वैसे भी वहां जंगल में कोई था नहीं जो हमें देखता। विराज अब बोलते हुए रो पड़ा था भाई कोई देखे या न देखे ऊपरवाले ने तो देखा है कि हमारी वजह से एक साथ तीन जानें गई हैं वो ये गुनाह कभी माफ नहीं करेगा। उसकी बात सुनकर अब शोएब का मन भी आत्मग्लानि से भर उठा और अब दोनों ही फूट फूटकर रोते हुए अपने गुनाहों का पश्चाताप कर रहे थे।

दोनों सोच रहे थे कि हम जैसे लोग अपराध करते वक्त ये भूल जाते हैं कि अपराध का शिकार बनने वालों पर इसका क्या असर होगा, कुछ पल के आवेश में आकर वे अपराध को अंजाम तो दे देते हैं लेकिन उससे किसी की पूरी जिन्दगी ही खत्म हो जाती है।


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