"अनन्य "और "फनन्य"
"अनन्य "और "फनन्य"
कहते है वृंदानंद के मार्ग में एक भक्त जा रहा था
उसने देखा,कुछ लोग पालकी में बैठाये एक संत को जयकारा लगाए चले आ रहे थे।
भक्त ने पूछा, यह महात्मा कोन हैं..?
पालकी उठाए शिष्य ने बताया, यह "अनन्य" हैं।
अपने इष्टदेव के अतिरिक्त किसी अन्य का चिंता नहीं करते है। पर तुम कौन हो भाई..?
भक्त ने बोला,तुम्हारे गुरु "अनन्य" है,पर हम तो "फनन्य" हैं।
पालकी ढोने वाला ने पूछा,"फनन्य" क्या मतलब ..?
भक्त ने उत्तर दिया, तुम्हारे "अनन्य" में अन्य का भाव छुपा हुआ है।पर जहां अन्य की चिंता नहीं होती, जो केवल और केवल अपने कृष्ण को जनता हैं, जो किसी दूसरे की चिंता नहीं करता,वही तो "फनन्य" हो सकता हैं।