अनकहे रिश्ते
अनकहे रिश्ते
सच ही तो है मेरा और रमेश का क्या रिश्ता है ?? लेकिन हम अब तक रिश्ता निभाए चले जा रहे है, कोई नाम नहीं हमारे रिश्ते का फिर भी इक अपनापन है, अहसास है, बेनाम,पावन, अनजान,अनछुआ,अनकहा रिश्ता है हमारा। ना जाने लोग हर रिश्ते में नाम क्यों तलाशते है?? मुझे आज भी याद है वो दिन जब मैं 2nd ईयर में थी, रमेश ने तब एडमिशन लिया था कॉलेज में , जब मैं अपनी सहेलियों के साथ क्लास रूम में गई तो पहले से ही हमारे बेंच पर बैठा था, हमारा बेंच फिक्स था उस पर कोई नहीं बैठता था, या यूँ कहिए कि हम किसी को बैठने नहीं देते थे। उसे देखते ही मेरी सहेली ने उसे उठने को कहा, कहा कि" यहाँ कोई नहीं बैठ सकता, इस बेंच पर सिर्फ हम ही बैठते है।"
वो चुपचाप खड़ा हो गया, ना जाने मुझे क्या हुआ कि मैंने उसे बैठने को कह कर खुद अपनी सहेली को लेकर दूसरे बेंच पर चली गई। उसके बाद हम दूसरे बेंच पर ही बैठते थे। रमेश और मैंने कभी बात नहीं की, लेकिन वो अक्सर मुझे कनखियों से ताकता रहता था, लेकिन जब कभी भी कोई समस्या होती तो हमेशा मुझे मेरे आसपास ही नज़र आया, मुझे आज भी याद है वो दिन मैं बहुत परेशान थी, क्योंकि पापा के गुज़र जाने से हमारे घर में कुछ परेशानियाँ आ गई थी, क्योंकि भाई छोटा था कमाने लायक नहीं था, और इस वजह से मैं 3rd ईयर की फीस नहीं जमा करा पाई, तो मुझे शायद पेपर में बैठने ना दिया जाए, यही चिन्ता मुझे सता रही थी, लेकिन कोई रास्ता भी नज़र नहीं आ रहा था, मुझे आज तक नहीं पता चला कि तब मेरी फीस किसने जमा करा दी और मैं पेपर दे पाई, लेकिन मैं जानती हूँ कि मेरी फीस रमेश ने ही जमा करवाई होगी, इसी तरह मैं भी अप्रत्यक्ष उसकी मदद करती रहती थी, कॉलेज छूटा दोनो अपनी जि़न्दगी में मसरूफ हो गये, लेकिन वो रिश्ता आज भी कायम है ,मैं जब भी उसकी कोई तस्वीर फेसबुक पर देखती हूँ तो लाइक अवश्य करती हूँ, और मुझे पता है वो मेरी हर रचना पढ़ता है ।। ना जाने क्या है वो रिश्ता जो हम दोनो निभाए चले जा रहे है, एक मूक...अनोखा...अनकहा रिश्ता...