अंधविश्वास
अंधविश्वास


इस बार जब मुझे अपने गाँव मेरे मायके में जाने को मिला, तो तकरीबन एक महीना मैंने हंसी खुशी के साथ अपने गाँव में गुजारा। एक दिन शाम के समय जब हम घूम कर लौट रहे थे, तो एक आवाज़ सुनाई पड़ी, गुड्डी गुड्डी मैंने ऊपर की ओर देखा तो चाची मुझे ही आवाज़ दे रही थी। ए चल आजा थोड़ा बैठकर जाना, काफी दिनों के बाद आई हो, आजा! मेरे बढ़ते कदम रुक गए और हम उनके घर की ओर मुड़ गए। काफी देर इधर-उधर की बातें होती रही उनकी बहू ने चाय नाश्ता हमारे सामने रख दिया। चाय पीते-पीते अचानक से मेरी नजर सामने वाले घर की ओर चली गई। जहाँ इस समय अंधेरे ने अपना साम्राज्य फैलाया हुआ था। जिसे देखकर अच्छा नहीं लगा। एक पल के लिए मैं पीछे अपने बचपन की ओर चली गई भरा पूरा परिवार था उनका। उस घर में बुजुर्ग, बच्चे , बड़े हमेशा चहल-पहल रहती थी। मगर ना जाने क्यों बड़ी चाची को लोग डायन कहते थे। गाँव में कोई बीमार हो जाता तो उनकी और उंगली उठती उसने देखा तो नहीं ? झाड़-फूंक करवाई जाती क्योंकि मेरे गाँव में कोई डॉक्टर नहीं है । सामने तो कोई नहीं कहता था, मगर पीछे से सभी खुसर पुसर करते थे। यहां तक कि जब कोई लड़की शादी के बाद गाँव में आती, तो लोग कहते थे कि बेटी दामाद को उनके घर पर मत भेज देना, वह डायन है खा जाती है।
गाँव में यदि कोई बीमार हो जाता भले ही उसने कुछ गलत भोजन कर लिया होगा, मगर पहले उससे पूछा जाता कि क्या उसने तो नहीं देखा तुम्हें, मैं तो इन बातों में कभी विश्वास नहीं करती थी। मेरा बचपन बहुत ही अलग था। मैं पूरे गाँव को ही अपना घर समझती थी। खासकर गर्मियों की छुट्टियों में, दिन भर गाँव में खेलना शाम को या फिर यूं कहूं कि रात को ही अपनी देहरी में प्रवेश होता था। या फिर दीदी जब लट्ठी हाथ में लेकर आती तो उसके आगे आगे मैं घर पहुंचती थी। मुझे याद ही नहीं कि मैंने कितनी बार बड़ी चाची के घर में खाना खाया था । क्योंकि उनकी बेटियां भी मुझसे एक 2 साल छोटी बड़ी होंगी। हम सब साथ साथ खेलते खाना खाते कभी कोई भेदभाव नहीं जाना। मगर धीरे-धीरे बड़े होते गए तो उनके नाम के आगे डायन का संबोधन अच्छा नहीं लगता था। गाँव भर में चर्चा थी कि वह डायन है। मगर उसके सामने कोई नहीं कहता था। यहां तक कि शादी में लड़कियों को उनकी नज़रों से दूर रहने की हिदायत दी जाती थी। दो साल पहले की बात ह
ै मैं गाँव गई थी। वहाँ कई शादियाँ थी मैं कई साल के बाद गांव गई थी। मुझे गाँव की शादी में सम्मिलित होने को नहीं मिलता है। मैं बहुत दूर रहती हूं। इसलिए बार-बार गांव की शादियों में शामिल नहीं हो पाती तो मैंने बरसों की अपनी कसर को पूरा किया। हमारे गांव में शादी में आज भी पल्लर बनाया जाता है। शादी में शगुन माना जाता है और भात और बुरा और घी इन तीनों का मिश्रण बहुत जरूरी होता है। मैंने भी जी भर के इन सब को खाया और ऊपर से पल्लर भी पी लिया, एक गिलास नहीं बल्कि कई गिलास पी लिए । रात को नाच गाना था। सब के कहने पर या यूं कहूँ कि मेरा भी मन था तो खूब नाच गाना हुआ। और उसके बाद जो मेरी तबियत खराब हुई बता नहीं सकती। इस बात का अफसोस हुआ कि दो-तीन शादियां और थी लगातार जिनमें मैं शामिल ना हो पाई। क्योंकि मेरी तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गई थी। कमजोरी ज्यादा होने से बिस्तर से भी नहीं उठ पाई थी । अब सब ने एक ही बात पूछी क्या तुमने उसे देखा था? मैंने कहा देखा ही नहीं वह तो मेरे बिल्कुल सामने बैठी थी, मुझे प्यार से देख रही थी। फिर क्या था मेरी नजर उतारी गई ।वैसे मेरे गाँव में कोई डॉक्टर नहीं है इसलिए मैं भी जब भी गाँव जाती हूं, हर बार सभी बीमारियों की दवाई लेकर जाती हूं। उल्टी दस्त बुखार की दवाई मेरे पास रहती थी जिन्हें खाकर मैं ठीक हो गई थी। अरे गुड्डी तुमने तो कुछ खाया ही नहीं, छोटी चाची ने आवाज़ दी तो मैं यादों से बाहर निकल आई । मैंने कहा यहाँ बड़ी चाची के घर में अंधेरा ! कोई नहीं है क्या? वो कहने लगी इनके दोनों बेटियों की शादी हो गई , दोनों बेटे अपने परिवार के साथ शहर में जा बसे। और पिछले ही वर्ष पहले चाचा गुजरे और कुछ ही दिनों बाद चाची भी 6 महीने के अंदर ही भगवान के पास चली गई। यहाँ अब कोई नहीं रहता। मैंने कहा अच्छा नहीं लग रहा है अंधेरा देख कर, आप रोज रात में एक बल्ब जला दिया करो। उन्होंने हामी भरी जैसे वह भी मेरी बात से सहमत हो गई हो। मैंने इजाज़त ली और हम दोनों अपने घर की ओर चल दिए, रास्ते भर में एक ही बात सोचती रही यदि वह सबको खाती थी तो उसको किसने खाया । सोचते-सोचते मेरा सर चकराने लगा, इतने में मेरा घर भी आ गया और मैं अपनी माँ के पास बैठ गई और उनकी गोद में सर रख दिया। शायद मैं सब कुछ भूल जाना चाहती थी ,सब कुछ.....