Rohan Kumar

Tragedy

4.3  

Rohan Kumar

Tragedy

अंधेरा, गिल्लू और मैं

अंधेरा, गिल्लू और मैं

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रात के अंधेरे और रात की ख़ामोशी से बेहतर कुछ नहीं हो सकता।

रात के अंधेरे में मेरे पास ना तो कुछ छुपाने को होता और ना ही कुछ दिखाने या जताने को मैं वो हो पाता हूँ जो हूँ या होना चाहता हूँ

ख़ामोशी का आलम भी कुछ यु ही है। आप कुछ भी बोल सकते हैं क्यूंकि सुनके judge करने वाला कोई नहीं होता आपके इर्द गिर्द सिवाय दीवारो और छतों के जीवन में कुछ पल ऐसे भी आते हैं जब वक़्त बीतता नहीं बिताना पड़ता हैं, वैसे ख़ामोशी मुझे पसंद हैं बहुत पर जाने क्यों चुभ सी रही हैं ये ख़ामोशी शायद ख़ामोशी भी आपको तभी अच्छी लगती हैं जब आपके आसपास कुछ शोर हो कुछ शरारते होरात बीतते जा रही हैं इस इंतज़ार में की कब सुबह होंगी और वो मैं देख रहा होऊंगा और बतिया रहा होऊंगा अपनी खिड़की पर बैठी उस गिलहरी से फिर मैं मुस्कुरा उठूंगा और शायद गिलहरी भी मुस्कुरायेगी लेकिन इस इंतेज़ार के दौरान कम्बल से chair table और chair table से कम्बल का छोटा सा सफर भी इतना लम्बा हो गया की मैने उस छोटे से लम्हे में ही अपने सारे पास्ट प्रेजेंट और फ्यूचर observe कर बैठा।वैसे मैं कोई अच्छा observer नहीं हूँ फिर भी कर लेता हूँ खुद के मामलो में। आज ठण्ड बहुत हैं पर इतनी भी नहीं की मुझे कम्बल में जाने को मजबूर करें क्यूंकि मेरी कल्पनायें उसपे भारी पड़ रही हैं। शायद कम्बल को भी पता हैं कलाम की लाइन ख्वाब वो होते हैं जो आपको रातो को भी जगाये रखते, सुलाके सपने में नहीं आते।

खैर समय काट रहा था फिर अचानक से मेरे चेहरे पे मुस्कुराहट आयी सामने मेरे आइना था सो मुझे लगा मैं मुस्कुराया हुआ मिला। आज मेरी गिलहरी रात में आयी थी खिड़की पर , मैं उत्साहित था की गिलहरी कितनी प्यारी हैं रात में भी हैं मेरे साथ मेरा साथ देने को। लेकिन मेरा भ्रम टूटा, आज वो हालचाल नहीं कर रही थी। मेरे बुद्धू से मन में लेट से आया की शायद मेरी कल्पनायें ठण्ड पे भारी पड़ी थी लेकिन ठण्ड गिलहरी पे भारी पड़ गयी। चुकी सामने आइना था मेरे सो मैंने खुद के आँखों में 4थी बार आंसू देखा। मैं बड़ा बेचैन था।मुझे दुख था गिलहरी के चले जाने का साथ ही मेरी खिड़की के अकेले हो जाने का भी। फिर भी मैंने गिलहरी को गोद में लिया और उसकी अंतिम यात्रा करायी। ऐसे में रात ख़त्म हो चुकी थी लगभग।सूर्य की किरणे नहीं थी लेकिन ओन्स की कुछ बुँदे मेरे माथे पे टकरा रही थी जिसने मेरे आँखों को भी गिला कर दिया था।सुबह होते ही लोगो ने पूछा तुम्हारे आँखों में आंसू कैसे हैं मैंने ओन्स की बुँदे कहके उन्हें चुप करा दिया बल्कि वो सच में आंसू थे। क्यूंकि मुझे कतई पसंद नहीं की कोई मुझे रोता हुआ देखे। कुछेक लोग ही हैं खास लोग मेरे जीवन में जिनसे मैंने दुखी स्वर में या आंसू लिए बात की हो 

फिर मैंने आंसू या ओन्स की बुँदे पोछी और इस आस में बैठ गया खिड़की पे की गिलहरी फिर से आएगी मुझसे रूबरू होने मेरी खिड़की पे। मुझे इस बात का बड़ा मलाल हैं की काश मैं गिलहरी को बता पाता की मेरे मन में उसके प्रति कितना स्नेह और प्रेम है।


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