अलविदा
अलविदा
नए सत्र की शुरुआत थी – इंजीनीयरिंग कॉलेज में सेकंड इयर के विद्यार्थी कुछ ज्यादा ही उत्साहित थे , पिछले वर्ष रैगिंग में उन्हें बकरा बनाया गया था और इस वर्ष वे नए मुर्गों की तलाश में थे, गर्ल्स रैगिंग के मामले में लकी थी। यूँ भी इंजीनीयरिंग कॉलेज में गिनी चुनी छात्राएँ ही होती थी , हॉस्टल में सीनियर छात्राएँ थोड़ी बहुत रैगिंग करतीं थी पर शालीनता के साथ और कॉलेज में भी अधिकतर उनकी रैगिंग ट्रिकी प्रश्न पूछने तक ही सीमित होती थी। वहीं लड़के हॉस्टल में हुई रैगिंग के विषय में बताने से भी झिझकते थे।
प्रथम वर्ष के छात्र अलग ही पहचान में आते है तेल से चुपड़े बाल - डरे घबराए कहीं पकड़ न लिए जाएँ। सीनियर छात्र कॉलेज कैम्पस के बाहर की पुलिया पर बैठे फ्रेशर्स के इंतज़ार में थे तभी दो विपरीत दिशाओं से लड़के और लड़कियों के झुंड आते दिखे और उनकी बांछें खिल उठी, लड़कों में दुबला पतला सवा छह फुट का इमरान अलग ही नज़र आ रहा था और लड़कियों में शिखा, जो महज पाँच फुट रही होगी। दोनों को आपस में एक दूसरे को अपना परिचय देने का निर्देश हुआ – बिना आँखें झुकाए या उठाए। एकदम सीधे सामने देखते हुए बोलना था – अत: इमरान ने हवा में देखते हुए अपना परिचय दिया और शिखा की निगाहें इमरान की शर्ट के तीसरे बटन तक पर टिकी थी , अदब तहज़ीब से लबरेज इमरान से शिखा की दोस्ती होने में ज्यादा समय नहीं लगा, दोनों अक्सर ही साथ दिखाई देते कभी लाइब्रेरी में तो कभी यत्र तत्र कैम्पस में। हालांकि दोनों जानते थे कि उनका मिलन असंभव सा है पर दिल के हाथों मज़बूर थे, कहते हैं इश्क़ और मुश्क छिपाए नहीं छिपते तो एक मुस्लिम और ब्राह्मण की दोस्ती की खबर को तो आग की तरह फैलना ही था। ब्राह्मण परिवार की शिखा के दो छोटी बहनें थीं उसके माता पिता को चिंता हुई –
अगर बड़ी बेटी ने एक मुस्लिम से निकाह कर लिया तो दोनों छोटी बहनों का भविष्य अंधकरमय है । शायद उन्हें उनकी जाति से ही निष्कासित कर दिया जाए, उधर इमरान के माता पिता की मृत्यु हो चुकी थी और उसकी बड़ी बहन अध्यापन करके अपने भाई को पढ़ा रही थी, उसका सपना था कि भाई इंजीनियर हो जाएगा तो उसकी तपस्या सार्थक होगी, भाई की जिम्मेदारी उठाने की लिए उसने विवाह भी नहीं किया था। पर होनी को तो कुछ और ही मंज़ूर था।
दिसंबर की कड़कती सर्दी में जब छात्र परीक्षाओं की तैयारी में जुटे थे, अचानक खबर मिली कि शिखा ने आत्महत्या कर ली। हिंदु लड़के इमरान के खून के प्यासे हो उठे पर उसे जमीन निगल गई या आसमान पता ही नहीं चला। जितने मुँह उतनी बातें – किसी ने कहा दोनों ने एक साथ पोटेशियम साइनाइड खाने का निर्णय किया था, शिखा ने खाया पर इमरान ने नहीं। किसी ने कहा शिखा के माता पिता ने उसे मरवा दिया। सच तो सिर्फ ईश्वर जानता होगा पर धर्म के रखवालों ने दो ज़िंदगियाँ असमय ख़त्म कर दीं। एक दुनिया को अलविदा कह गई दूसरा इस दुनिया में रह कर भी गुमनामी के अंधेरे में खोने को विवश हो गया। अर्थी में भी शिखा की आँखें प्रश्न पूछती प्रतीत हो रहीं थीं एक यह कैसा धर्म है जो मनुष्य को प्राण लेने पर विबश कर देता है।