अलीबाग की वह अकल्पनीय शाम !
अलीबाग की वह अकल्पनीय शाम !
प्रोफेसर के.के. दवे अपनी घर गृहस्थी समेट कर अब दिल्ली आ चुके थे। महीनों की थकान और अपनी पत्नी कुमकुम की बीमारी और मृत्यु से उपजे उलझन भरे अपने जीवन को नई स्फूर्ति देने के लिए आज उन्होंने अपने मित्र गोयनका जी से फोन पर एक आध्यात्मिक संगठन आनन्दमार्ग
के अलीबाग में लगने वाले साधना शिविर के बाबत बात की ।
के.के.दिल्ली से मुम्बई की फ्लाइट पर सवार होकर मुंबई हवाई अड्डा पहुंचे ।अब उन्हे वहां से लगभग 101 किमी स्थित अलीबाग पहुंचना है ।वैसे अलीबाग ट्रेन से भी जुड़ा है । पेन रेलवे स्टेशन निकटतम रेलवे है जो अलीबाग से 28 किमी की दूरी पर स्थित है। इसमें मुंबई, रत्नागिरी, सिंधुदुर्ग और दीवा जंक्शन से नियमित ट्रेनें हैं। मुंबई छत्रपति शिवाजी टर्मिनस अलीबाग से 102 किलोमीटर की दूरी पर स्थित प्रमुख रेलवे है। आकर्षक अलीबाग लोनावाला, पुणे, रत्नागिरी और कोल्हापुर के साथ भी बस से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। लेकिन के.के . कोई सबसे रोमांचक सफ़र का अनुभव हुआ, मुंबई में गेटवे ऑफ इंडिया से नौका से अलीबाग पहुंचने में ।नीले समुद्र, तेज भागती मोटर बोट,बड़े बड़े जहाज,उड़ते समुद्री पौछी, जल में सूर्य की चमचमाती किरणें..।
उनको रिसीव करने उनके दोस्त गोयनका जी ने अपने मैनेजर यादव जी को कार सहित भेजा था। साधना शिविर का आयोजन स्थल एक मशहूर रिसॉर्ट्स था जहां प्रतिभागियों को रहने और खाने पीने की भी आन पेमेंट व्यवस्था थी।
रास्ते में यादव जी ने बताया कि अलीबाग जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक है, जबकि नवंबर से फरवरी तक पीक सीजन रहता है।उन्होंने यह भी बताया कि अलीबाग कोंकण क्षेत्र में, महाराष्ट्र के पश्चिमी तट पर, अरब सागर के किनारे बसा हुआ एक छोटा-सा शहर है। 17वीं शताब्दी में बनी इस जगह की उन्नति छत्रपति शिवाजी ने की थी। 1852 में इसे एक तालुका घोषित किया गया।इसे 'महाराष्ट्र का गोआ' कहा जाता है क्योंकि यह तीन तरफ से पानी से घिरा बहुत सारे सुंदर तट वाली जगह है। सभी तटों के किनारे नारियल और सुपारी के पेड़ होने से सारा इलाका किसी उष्णकटिबंधीय समुद्र तट जैसा लगता है। यहाँ का मौसम बहुत सुहावना होता है और तट बिल्कुल अनछुए से लगते हैं। यहाँ की हवा प्रदूषण रहित व ताज़ी है और तटों का दृश्य किसी स्वर्ग जैसा लगता है। अलीबाग में बालूतट पर काली रेत आश्चर्यचकित करती है। अलीबाग एक तटीय शहर है, इसलिए यहाँ के स्थानीय व्यंजन मछली से बने होते हैं। मौसम सुहावना रहता है जहाँ तापमान न बहुत ज्यादा होता है और न बहुत कम। अधिकतम तापमान 36 डिग्री सेल्सियस होता है। यहाँ आने के लिए सर्दियाँ सबसे अच्छा व उपयुक्त समय होता है। अलीबाग पर्यटन के स्थल हैं, अलीबाग बीच, किहिम बीच, अक्षई बीच, मांडवा बीच, काशीद बीच, वर्सोली बीच, नागाओन बीच और मुरुद बीच, खांदेरी किला, कोलाबा किला, मुरुद -जंजीरा किला, विक्रम विनायक मंदिर या बिड़ला मंदिर, चुंबकीय वेधशाला और कोरलाई किला आदि ।
आयोजन स्थल पर पहुंचकर शिविर के लिए रजिस्ट्रेशन आदि की औपचारिकता पूरी करके के.के.अपने कमरे में शिफ्ट हो चुके।फ्रेश वगैरह होकर लंच लेकर आराम करने लगे।
शिविर का शुभारंभ हो चुका था।पीठ पर गुरुदेव श्री आनन्दमूर्ति जी विराजमान हो चुके थे। गुरुदेव रचित प्रभात संगीत की स्वर लहरी हवा में तैर रही थी.....
"तुमि आमार ध्यान, तुमि आमार ज्ञान,
तुमि आमार संसार।
तोमाय हारिये कांदि,तोमार फिरिये हांसि,
तुमि मोर जीवनेर सार।
तुमि आमार संसार.."
....तुम ही मेरा ध्यान हो,तुम ही मेरा ज्ञान हो और तुम ही मेरा सारा संसार हो।हे मेरे जीवन के सार तत्व तुम्हें खोकर मैं रोता हूं और तुम्हें वापस पाकर मैं हंसता हूं।बीच बीच में "बाबा" बाबा" की ध्वनियाँ आ रही थीं |कुछ साधकों की कुण्डलियाँ जाग उठी थीं और वे किसी अन्य अलौकिक दूनिया में डूब उतरा रहे थे |
देशी और ज्यादातर विदेशी साधक -साधिकाएँ , गेरुआ वस्त्र पहने पूर्णकालिक सन्यासी अब तक भाव विभोर हो चुके थे।अब सामूहिक साधना भी शुरु हो चुकी थी।
लगभग चालीस मिनट तक सामूहिक साधना ने वहां अद्वितीय आध्यात्मिक प्रभामंडल बना दिया था।गुरुदेव की उपस्थिति साधकों को मंत्रमुग्ध कर रही थी।के.के.अपने जीवन के बीते अध्यायों को भूलकर एक नई शुरुआत करने की कोशिश रहे थे।बार बार आवारा मन को नियंत्रण में लाने की लगातार कोशिश कर रहे थे।
गुरु देव का प्रवचन शुरु हो चला था।वे उस समय परमात्मा को पाने के तीन रास्तों ज्ञान,कर्म और भक्ति के बारे में बता रहे थे।उन्होंने भक्ति की बड़ी ही वैज्ञानिक परिभाषा दी-कर्म-भक्ति=भक्ति।आपमें जितना ज्ञान है उससे अधिक कर्म करना होगा।जो बाकी बचेगा वही भक्ति है। अभी गुरुदेव का प्रवचन चल ही रहा था कि हाल के एक किनारे कुछ हलचल सी हुई ।पता चला मनीला सेक्टर से आए एक वरिष्ठ सन्यासी आचार्य परमेश्वरानन्द बैठे - बैठे अचेतावस्था में चले गये थे ।आनन फानन में कार्यकर्ताओं ने एम्बुलेंस की व्यवस्था की लेकिन वे जब तक स्ट्रेचर पर उन्हें लादते उनकी सांसें थम गईं।हताश,निराश वे घबड़ाहट में थे कि गुरुदेव के पी.ए.ने उनको संदेश दिया कि उन्हें स्ट्रेचर सहित पीठासीन गुरुदेव के पास लाया जाय।.........वैसा ही हुआ।
गुरुदेव अपना ध्यान तोड़कर बोल उठे;
"मेडिकल साइंस से यह सम्भव नहीं लेकिन मैं अपनी आध्यात्मिक शक्तियों से उसे मौत के मुंह से खींच लाऊंगा।"
अब उन्होंने अपनी छड़ी से उनके अनाहत चक्र को स्पर्श किया तथा अपनी आंखें बंद करके अपनी छड़ी के माध्यम से आध्यात्मिक शक्ति का संपात करके उन मृत सन्यासी को हील अप करते रहे ।करीब चालीस पैंतालीस मिनट तक अपनी अपनी सांस रोके वहां उपस्थित लोग जीवन और मृत्यु के इस अद्वितीय और अद्भुत खेल को देखते रहे।गुरु देव का शरीर पसीने से लतपथ... चेहरे पर थकान के लक्षण...मंद स्वर लहरियों में मंत्रोच्चारण...।
.....और यह लो उन सन्यासी के मृत शरीर में अब कुछ हलचल दिखी ..और गुरुदेव की आवाज़ भी;
"मैनें अपनी आध्यात्मिक शक्ति से इनके रक्त से कैंसर के बीजाणुओं को हटा दिया है और इनके कैंसर रोग को ठीक कर दिया है।किन्तु शरीर में नई कोशिकाओं के आने तककरीब 21दिनों तक इनको प्रतीक्षा करनी होगी ।फिर धीरे धीरे शरीर में ताकत आने लगेगी।"
वह सत्र इस रहस्यमय घटना के साथ समाप्त हो गया। लोगों को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
गुरुदेव इस प्रकार का डिमान्स्ट्रेशन अक्सर दिया करते थे लेकिन उस दिन उस सजीव घटना और उसके परिणाम ने सभी उपस्थित भक्तों को पूर्ण रूप से यह एहसास करा दिया कि इस घनघोर कलियुग में भी उनके परमपिता बाबा (भक्त उनको इसी नाम से पुकारा करते थे ) साक्षात भगवान बन कर आये हैं |
आपसी चर्चा और विमर्श में गोयनका दादा ने के.के.को बताया कि उनके गुरुदेव ने एक बार कोलकता में आये अपने एक अंग्रेज़ भक्त जार्ज के अमेरिका में गम्भीर रूप से बीमार पड गए बेटे का कोलकता से ही इलाज करके स्वस्थ भी कर दिया था | के.के.ने किसी रिसर्च की किताब में पढ़ा था कि कुछ लोग हजारों मील दूर से रोगियों की चिकित्सा बोध संवहन पद्धति से कर दिया करते हैं जिसमें वे अपनी मस्तिष्कीय ऊर्जा से मीलों दूर के रोगियों की काया के तंतुओं को स्पन्दित कर उनमें नई ऊर्जा भर देते हैं |इस बारे में चीन के एक डाक्टर माक टिंग सुम का नाम आया था और उन्होंने बताया था कि तीव्र ध्यान केन्द्रण की अवस्था में उनकी मस्तिष्कीय विचार ऊर्जा मीलों दूर के रोगियों की काया के तन्तुओं को स्पन्दित करके उन्हें नई ऊर्जा से भर देती है |फलस्वरूप रोगी के मृत ऊतक ( सेल्स )पुनर्जीवन प्राप्त कर लेते हैं और कष्ट झेलता मरीज़ स्वास्थ्य लाभ कर लेता है |वे यह चिकित्सा रात में 12 बजे से 2-3 बजे तक किया करते थे क्योंकि उनके अनुसार उस समय उनका मन शांत रहता है और तब वे पहले 15 मिनट तक दूरानुभूति और उस रोगी पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करके शुरुआत करते हैं |जिस मरीज़ का केस वे अपने हाथ में लेते थे पहले उसके पास एक साइको रे बेंज (मानसिक किरण बिल्ला )भेजते थे और उसे पत्र से सूचित करते थे कि किस दिन और किस सम्स्य वे उसके इलाज के लिए प्रार्थना करने वाले हैं |उस निश्चित समय पर रोगी को साइको रे बैज अपने पास ही रखना होता था और अपने स्वास्थ्य लाभ की कामना भी ईश्वर से करनी होती थी |उसी समय डाक्टर सुम की विचार ऊर्जा उसे स्पन्दित किया करती थी और धीरे धीरे कुछ ही सिटिंग्स में रोगी रोग मुक्त हो जाया करते थे | बोध सम्वहन की इस क्रिया की उलझन - सुलझन में अभी इन्सान डूबा ही हुआ है कि गुरुदेव आनन्द मूर्ति जी के दिखाए मृत सन्यासी पर इस अद्भुत स्पन्दन क्रिया के प्रदर्शन
ने उनको हतप्रभ कर दिया है !