संदीप तोमर

Romance

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संदीप तोमर

Romance

अहसासों के दरमियान

अहसासों के दरमियान

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कुछ जरुरी कागज ढूँढ रहा हूँ अचानक एक फाइल मेरे हाथ में आती है, बहुत धूल जमी है, मेरी यादों पर जमी धूल की ही तरह, फाइल खोलकर देखता हूँ तो पाता हूँ – ये एक स्क्रिप्ट है। स्क्रिप्ट देख मैं यादों के भंवर में खो जाता हूँ।

२००४ की बात रही होगी प्रेरणा का फोन आया –“आशु, रेडियो पर गानों के कार्यक्रम में बुलाया है, एंकरिंग करनी है, मुझे नहीं मालूम किस तरह से प्रस्तुत करना होता है, और स्क्रिप्ट तो एकदम नहीं लिख सकती, मैं चाहती हूँ कि शब्द आपके हों और आवाज मैं दूँ।”

‘दो जिस्म मगर एक जान है हम’ की तर्ज पर मैंने एक पल सोचे बिना ही हामी भर दी।

“प्रेरणा स्क्रिप्ट तो मैं लिख दूँगा, लेकिन कुछ विषय भी तो बताओ?”

“माय स्वीट हार्ट दोस्त, अब आपको भी विषय बताने की जरुरत पड़ेगी? बस ये सोच लो कि गानों का मेरा ये पहला अनुभव है, बस स्क्रिप्ट ऐसी हो कि प्रोग्राम कोर्डिनेटर मुझे बार-बार बुलाये, वैसे तो वह बहुत खडूस लगती है लेकिन ये प्रोग्राम आगे मेरा रेडियो एंकर के रूप में भविष्य तय करेगा।”

“ठीक है, ठीक है बाबा, लिखता हूँ, तुम भी क्या याद करोगी, क्या स्क्रिप्ट लिखी है।”-कहकर मैं स्क्रिप्ट लिखने बैठ गया।

जो स्क्रिप्ट लिखी उसमें पुराने पसंदीदा गानों को व्यवस्थित करने के लिए डाक व्यवस्था, चिट्ठी को केंद्र में रखा। स्क्रिप्ट लिखकर प्रेरणा को दे दी। तय समय पर रेडियों पर उसका प्रसारण हुआ, पहले से ही मैंने रेडियों को ट्यून कर लिया था।

दोस्तों समय है आपके मनपसन्द गाने सुनने का, और मैं हूँ आपकी दोस्त और होस्ट प्रेरणा, आप सुन रहे हैं युववाणी और मैं लेकर आई हूँ आपके लिए कुछ मनभावन गीतों का गुलदस्ता, तो कुछ गुफ्तगू होगी और होंगे आपके पसन्द के कुछ गीत जो आपके दिल को कुछ बेचैन कर देंगे तो कुछ को गुनगुनाने के लिए आप अपने लब खोले बिना न रहेंगे। यकीन मानिये जितनी देर हम संग रहेंगे, आप खुद को तरोताजा महसूस करेंगे और दिल खोल के गा उठेंगे, आपका मन झूम उठेगा।

प्रेरणा की आवाज रेडियों से फ़िल्टर होकर मेरे कानों को तिरोहित कर रही है, उसके उच्चारण, उसके अंदाज का मैं और अधिक कायल हो गया हूँ, मन किया कि उसे चूम लूँ, सामने होती तो उसके गालों को चूम ही लेता, मुझे अहसास हुआ कि प्रेरणा मेरे समाने है।

रेडियों पर प्रेरणा बोल रही है और मैं उसे सुन रहा हूँ और मेरे साथ सुन रही है हजारों लाखों जवां धड़कन- पुराने ज़माने में जब डाक व्यवस्था नहीं थी तो सन्देश भेजने का काम पंछियों से लिया जाता था, लेकिन आधुनिक तकनीकी युग में ख़त किताबत की रस्म कुछ कम हुई है, भई जमाना इन्टरनेट का है, बस बैठिये कंप्यूटर के पास और भेजिए सन्देश ईमेल के जरिये लेकिन दोस्तों ख़त भेजने, उन्हें पढने का आनंद ही अलग है, क्या-क्या सपने नहीं सजाये जाते ख़त के जरिये, ख़त पढो तो लगता है लिखने वाला सामने बैठा आपसे बातें कर रहा है, ख़त लिखने का अपना अलग ही मजा है। प्रेम का मामला हो तो ख़त उमंगों का असीम सागर लाता है, जब प्रेमी ख़त लिखते हैं तो सिलसिला लम्बा चलता है फिल्म कन्यादान का ये गीत कुछ ऐसी हा अहसास देता है, शशि कपूर और आशा पारेख पर फिल्माया गया खूबसूरत सा गीत।

अगले ही पल गीत के बोल मेरे कानों में गूँजने लगते हैं-

लिखे जो ख़त तुझे वो तेरी याद में

हजारों रंगों के नज़ारे बन गए

मुझे लगा सच ही तो है, कितने ही ख़त तो लिखे मैंने प्रेरणा को लेकिन उसने कभी उनका जवाब लिखने की जहमत ही नहीं समझी, डरती है कहीं आशु इनका भविष्य में गलत इस्तेमाल न कर ले। मैं कुछ सोच मायूस हो जाता हूँ, गाने के अंतिम बोल खत्म होने के साथ ही प्रेरणा की आवाज फिर से रेडियो पर गूँजती है-

प्रेमी अपनी प्रेमिका को ख़त तो भेज देता है लेकिन उसे नाराज होने की आशंका भी सताती है, दोस्तों जब लिख ही दिया है तो डरना किस बात का, बस इंतज़ार कीजिये जबाब का और सुनिए ये गाना फिल्म संगम से, खो जाइये जुबली कुमार और वैजयंती माला के अभिनय में -

ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर

तुमयूँ ही नाराज न होना ।

हाँ प्रेरणा, यही तो मुश्किल है कि तुमसे नाराज भी तो नहीं हो पाता हूँ मैं, अब देखो न वैजयंती माला ने तो जुबली कुमार को ख़त लिख दिया लेकिन तुमने तो कभी जवाब तक नहीं लिखा। एक बार फिर प्रेरणा की आवाज मेरे कानों को सचेत कर गयी।

प्रेरणा रेडियो पर बोल रही है लेकिन मुझे लगा कि वह मुझे ही कह रही है- अब देखिये न प्रेमिका तो नाराज नहीं हुई, जबाब भी आ गया और जबाब में ख़त के साथ आपना दिल भी भेज दिया अब ये दिल भी अनोखी चीज है- किसी भी रूप आकार में, आपके सामने आ जाता है, अब देखो न सरस्वती चन्द्र के इस गीत में फूल बनकर दिल आपके हाथ में है—

फूल तुम्हे भेजा है ख़त में

फूल नहीं मेरा दिल है।

मैं सोचने लगता हूँ कि काश तुम भी इसी तरह अपना दिल हमें भेज देती डाक से, और मैं उसे बड़ी हिफाजत से रखता, लेकिन। अभी ‘लेकिन’ से आगे का जवाब खोज ही रहा हूँ कि वह आगे रेडियो पर तमाम लोगो से बतियाती है- अगर आपके पास अपने सनम का पता ठिकाना है तो आप आसानी से अपना सन्देश भेज सकते हैं, लेकिन अगर आप लापता सनम के लिए ख़त भेज रहे हैं? तो बात कुछ यूँ होती है-

क्या खूब हालत है प्रेम के दीवानों की ?

मुझे बस इतना पता है

कि वो बहुत खुबसूरत है

लिफाफे के लिए लेकिन

पते की भी जरुरत है

सुनिए ये गीत फिल्म शक्ति से --- हमने सनम को ख़त लिखा, ख़त में लिखा।

प्रेरणा बस खत ही तो तुमने नहीं लिखा, यहाँ तो पता ठिकाना सब कुछ है तुम्हारे पास, फिर मैंने आर्चिज गैलरी से खरीदकर लैटरपैड भी तो तुम्हें गिफ्ट किया था ये सोचकर कि कभी तो कोई एक पन्ना मेरे लिए भी लिखोगी।मैं सोच ही रहा हूँ कि प्रेरणा आगे कहती है- हद तो तब हो जाती है दोस्तों जब आधुनिक ज़माने का अभिनेता करिश्मा कपूर से कहता है, क्या कहता है? खुद ही सुन लीजिये फिल्म जिगर का ये गीत—

मैंने ख़त महबूब के नाम लिखा

हाले दिल तमाम लिखा

गीत खत्म होता है तो प्रेरणा ने बोलना शुरू किया- आशा पारेख जी तो एक बात ये तक कह गयी, क्या कह गयी—

के

ख़त लिख दे सवारियां के नाम।

मेरे मुँह से अनायास ही निकलता है- प्रेरणा यही तो मैं चाहता हूँ कि बस एक बार तो लिख दो- सावरियां। तभी प्रेरणा के बोल मेरे कानों में पड़े- अब उस सवारियां का नाम तक नहीं मालूम फिर कैसा इन्तजार, किसका इन्तजार और कब तक कोई किसी का इंतज़ार करता, कब तक वफाओं की बात करता, नाम तक नहीं मालूम, पता तक नहीं मालूम,, बस एक अहसास है एक लापता सनम का अहसास

कितना अजीब है न ये अहसास-

ये नजरो में ही कुछ भी देखने लगता है। जो गीत अगले पल रेडियो पर बजने लगा वह मेरे दिल के बहुत करीब है

तुम्हारी नजरों में हमने देखा

वफ़ा की खुशबु महक रही है।

मन अहसास से भर उठा, लगा मानो सभी गिले-शिकवे भुला प्रेरणा खुद ये गीत मेरे सामने गुनगुना रही है। गीत खत्म हुआ। प्रेरणा ने आगे स्क्रिप्ट पढ़ी-

ये उनका अंदाज है कि वो हमारी हर बात को अफसाना समझते हैं

हम क्या हमारी दुनिया क्या हम सारी दुनिया मयखाना समझते है।

मगर मयखाने में भी एक तन्हाई है, कमबख्त पीछा ही नहीं छोडती बड़ा मुश्किल है कारवां लेकर चलना, ऐसे में कहाँ जाएँ, किसको अहसास है इसका, ऐसा ही कुछ टैक्सी ड्राईवर भी तो कह रहा है---

जाएँ तो जाएँ कहाँ

जाना कहाँ है ये जिन्दगी है ।

मैं खुद सोचता हूँ कि वाकई ये जिन्दगी ही तो है इससे परे कोई कहाँ और कैसे जा सकता है, प्रेरणा मेरी जिन्दगी है, कैसे जिन्दगी से किनारा किया जाए अभी इन्हीं विचारों का गोता लगाता हूँ कि अगले ही पल प्रेरणा कहती है-

जिन्दगी मौसम की तरह अपने रंग बदलती रही, कुछ साए परछाई बन घूमते रहे, अहसासों के गिर्द कुछ तारे टिमटिमाते रहे चाँद ने आसमान की खिड़की से झांकना नहीं छोड़ा कोई एक आग सीने में सुलगती दिखाई दी अगले ही पल मेरी ही पसन्द का एक और गीत रेडियों पर बजने लगा, जिसका हर शब्द मेरे दिल को भिगो गया।

रिमझिम गिरे सावन सुलग सुलग जाए मन

बदले आज इस मौसम में लगी ये किसकी अगन।

प्रेरणा मेरी ही लिखी स्क्रिप्ट को पढ़ रही है लेकिन मुझे लगता है मानो वह यह सब खुद ही मुझसे कह रही है प्रेरणा की ही आवाज है उसके ही लब्ज हैं- लाख कसमें खिलाई थी उसने, लाख लालच भी दिए थे, इंतजार करते रहे ताउम्र, पलकों की छाव पाने की तमन्ना सीने में जज्ब किये थे, मरने मिटने की परवाह से बेखबर---

जी हाँ ऐसा ही कुछ कहता है जंगली फिल्म का ये गीत—

अहसान तेरा होगा मुझ पर

कुछ कहना है तो कह देना

मुझे तुझ से मोहब्बत हो गयी है

मुझे, मुझे याद आया- जब कभी मैं ये गीत सुनता, मेरी पलके भीग जाती, मन रो उठता, आज फिर वही हुआ, मैं अपनी आँखों के कोर पोंछने लगा। अगले पल प्रेरणा बोली- हुस्न की रिवायत से रूबरू होने की तमन्ना में जिन्दगी लम्हा-लम्हा घिसटती रही, दिल में मोहब्बत का अहसास अजीब सी तड़फ पैदा करता, बड़ी संजीदगी से धडकनों को बढाता जाता, अजीब चीज है ये अहसास, हर अहसास साया बन पीछा करता रहा। फिल्म सितारा ये ये गीत सुनिए क्या कहता है—

ये साये हैं ये परछाइयां।

गीत खत्म हुआ तो प्रेरणा ने स्क्रिप्ट को आगे बढाया- बिना साथी के जीने का अहसास दिल में एक अजीब सी कसक पैदा कर देता है, अकेलापन आवाज देता है, महबूब को बुलाता है महबूब के मन में ख्वाहिश होती है कोई आये, कोई आवाज दे, सुनिए फिल्म राज से ये गीत-

अकेले है चले आओ।

सच प्रेरणा, साथ रहते हुए भी कितने अकेले हैं हम दोनों। साथ रहना तो मानो एक ख्वाहिश ही रही, मुझे याद आया वो शेर जो शायद मेरी ही जिन्दगी की कहानी कहता है-

मैं देता हूँ जिन्दगी को खूने दिल, खुद मेरी जिन्दगी ने क्या दिया मुझे

मेरे ही ख्वाब मेरे लिए जहर बन गए, मेरी कल्पनाओं ने डस लिया मुझे।

प्रेरणा की रेडियो पर गूँजती आवाज ने मुझे अपनी ओर खींचा, वह कहती है- ख्वाहिश ख्वाहिश बनकर रह गयी, वो आवाज देते रहे, महबूब न आया। वो कसमें - वो वादे, वो प्यार, सब झूठा था। विश्वास उठ जाने के अहसास से रूहें काँप उठी, तमाम नाते झुठला दिए गए जी हाँ, यही सब तो बयां करता है उपकार फिल्म का ये गीत—

कसमे वादे प्यार वफ़ा सब।

कितना सही लिखा है लिखने वाले ने- कसमें वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातो का क्या? मैं खुद को सम्भालने का जतन कर ही रहा हूँ कि प्रेरणा कहती है- दोस्तों! हमारा आज का सफ़र यही पर ख़त्म होता है न, न ये हमारी आखिरी मुलाकात नहीं इंशाल्लाह फिर मुलाकात होगी इसी जज्बे के साथ नमस्कार सब्बाखैर तो दीजिये इजाजत अपनी इस साथी को।

मैं सोचने लगता हूँ क्या वाकई ये सफ़र यहीं समाप्त होता है, अभी तो सफ़र की शुरुआत भी नहीं हुई, प्रेरणा क्या इतना आसान है किसी से जाने की इजाजत लेना। यूँ कोई चला भी गया तो क्या यादों से जा सकता है? मैं रेडियो को बन्द करता हूँ, लेकिन प्रेरणा की आवाज अभी भी मेरे कानों में गूँज रही है।


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