Sushma Tiwari

Drama

5.0  

Sushma Tiwari

Drama

अग्निपरीक्षा

अग्निपरीक्षा

3 mins
490


रोड़ पर यू पी रोड वे की बस दौड़ते हुए चली आ रही थी, धूल उड़ाते हिलते हुए। बैकग्राउंड में धीमी गति में देशभक्ति गीत बज रहा है।

26 साल का नौजवान हीरो खिड़की पर सिर टिकाये बाहर देख रहा है। शरीर पर वर्दी पहनी हुई है।

सवारी बाजू की सीट से - जवान! बुरा ना मानो तो पूछूं.. अच्छा ये बताओ क्या कपड़े नहीं होते नॉर्मल तुम लोगों के पास, हमेशा वर्दी में ?

जवान - (मुस्कराते हुए) - मिलते हैं ना पर वर्दी हमेशा पहने पहने अब लगता है जैसे की शरीर की चमड़ी ही है, अब इसके बिना नंगा सा लगता है।

सवारी - बढ़िया है हाँ "ऑन ड्यूटी" हमेशा!

जवान - हाँ कह सकते हैं, पर हमारी जगह बॉर्डर पर है सिविलियन एरिया में हम फर्ज के लिए जागे रहते हैं पर कानूनन कुछ खास नहीं कर सकते।

जवान फिर बाहर देखने लगता है, भागते हुए खेत उसे बचपन की याद दिलाते हैं। वो और उसका दोस्त खेतों में दौड़ रहे हैं। 

सवारी(ध्यान बंटाते हुए) - यहां किस गाँव से हो ?

जवान - बीसा पुर ! 

सवारी - अच्छा! बड़ा नाम है वहाँ का, आए दिन ख़बरें छापी जाती है.. चैन से कोई ना जीता था पहले.. अब ठीक है शांति है। 

जवान - हम्म

(फिर वो पुराने दिनों की यादो में चला जाता है जहां दोनों दोस्त 14 साल की उम्र, खेतों से निकलते हुए घर पर आते हैं। दोनों दोस्त अनीस और प्रभात, प्रभात के घर पर है) 

प्रभात - माँ! अनीस आया है.. भूख भी लगी है! क्या है खाने को? 

माँ - मैं रामायण पाठ कर रही हूं, किचन से निकाल कर खा लो तुम दोनों 

(अनीस भी प्रभात की मां को मां ही पुकारता था) 

अनीस - माँ! मुझे भूख नहीं, मुझे रामायण की कहानी सुननी है 

प्रभात - क्या यार, चल ना खा कर खेलने चलते हैं, ये कहानी वहानी छोड़ 

माँ - सीख कुछ अनीस से.. चलो बैठो दोनों 

अनीस - कौन सा प्रसंग है 

माँ - सीता की अग्निपरीक्षा 

अनीस - तो क्या भगवान को भी परीक्षा देनी होती थी? 

माँ - हाँ बेटा! भगवान हो या इंसान, हर युग में सब को कभी ना कभी अपनी भक्ति अपना सत्य साबित करने के लिए परीक्षा देनी होती है 

प्रभात - फालतू बात, हूं ss.. जिसे मानना है माने जिसे ना मानना है ना माने, मैं तो परिक्षा ना दूं। 

(प्रभात के पिता जो गाँव के सरपंच है, अंदर आते हैं) 

माँ - प्रभात! बाबू जी को पानी दे 

अनीस - मैं देता हूं 

(अनीस पानी लाकर देता है) 

पानी पी कर, गमछे से मुँह पोछते हुए सरपंच सूर्यकांत प्रभात और अनीस को बाहर जाने का इशारा करते हैं और प्रभात की मां से 

सूर्यकांत - रमा! कुछ ठीक नहीं है, दंगों का असर शहर से यहां तक आ गया है, कुछ लोग विरोध तेज कर रहे है कासिम के परिवार को गाँव से बाहर करने की 

रमा - पर इनकी क्या गलती, सब कितना मिलजुलकर कर रहते हैं आखिर 

सूर्यकांत - हाँ पर उनका धर्म उनके व्यव्हार पर भारी पड़ रहा है.. मैं शायद कुछ ना कर पाऊँ

अनीस सब दरवाजे पर सुनता है और आँखों में पानी आ जाता है 

वर्तमान में - 

सवारी - नाम क्या है जवान ? 

जवान - अनीस खान! 

सवारी - तुम सेना में हों ? वाह सीखना चाहिए तुम्हारे लोगों को तुमसे, जो भटक गए हैं.. जिस देश में है उसकी सेवा करे। 

अनीस सोच में (धर्म के नाम पर आज भी क्यूँ अग्निपरीक्षा देनी पड़ेगी अपनी देशभक्ति की? यही पैदा हुए, यह देश उतना ही हमारा है.. प्रभात को कभी साबित करने की जरूरत ना पड़ी, वो तो विदेश चला गया रहने पर मुझे आज भी पल पल सबूत देना पड़ रहा है.. इसी लिए बीसा पुर छोड़ छोड़ कर दिल्ली आ बसे पर आज इतने सालों बाद माँ की याद आई तो जा रहा हूं) 

बस रुकती है और अनीस बीसा पुर बस स्टॉप पर उतर जाता है 

दूर जाती हुई धूल उड़ाते हुए बस और दूर धीमे संगीत चलता है - "ऐसा देश है मेरा ओ ऐसा देश है मेरा" (या कोई देशभक्ति गीत की धुन)। 


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