आवश्यकता
आवश्यकता
वर्मा जी गंभीर चिंता जताते हुए मिश्रा जी से कह रहे थे कि "आज वक्त बहुत बदल चुका है बेटियाँ जब घर से बाहर निकलती है तो इक डर रहता है मन में।"कहीं कोई पापी घर की इज्ज़त को शर्मसार न कर दे। मन बहुत चिंतित रहता है, आजकल मिश्रा जी।
बिटिया घर से बाहर जाती है तो मन व्याकुल रहता है।
मिश्रा जी ने कहना प्रारंभ किया "वर्मा जी मैं आपकी चिंता समझ सकता हूँ।"पर हमें आवश्यकता है कि केवल हम अपनी बेटियों के लिए ही चिंतित न रहे। हमें आवश्यकता है कि हम दूसरों की बेटी को भी अपनी बेटी की तरह मान-सम्मान दे व अपने बेटों को समझाएं कि नारी को उचित मान सम्मान दे तो कहीं न कहीं हम समाज में परिवर्तन ला सकते हैं।
वर्मा जी इस बात पर गंभीरता से चिंतन करने लगे। वहीं एक कोने में बैठे वर्मा जी के बेटे को अब इस बात अफसोस होने लगा कि कल ही उसने एक लड़की पर गलत टिप्पणी की थी। उसने आज के बाद हर लड़की को उचित मान सम्मान देने की प्रतीज्ञा ली।
