आवारा बादल (भाग 19)
आवारा बादल (भाग 19)
रवि और मीना प्यार के सागर के तट पर पहुंच गये थे। अभी वे पानी को निहार ही रहे थे। पानी को देख देखकर ही खुश हो रहे थे। पानी के छींटे एक दूसरे पर छिड़क कर आनंदित हो रहे थे। वह प्यार का सागर जो उनके अंदर उमड़ घुमड़ रहा था, उन्हें अपने आगोश में समेटने के लिये लालायित हो रहा था। हिलोरें मार रहा था। अपनी ओर रह रह कर खींच रहा था। सागर की अनंत गहराई उन्हें बुला रही थी। मीना अभी इतनी जल्दी इस पानी में उतरना नहीं चाहती थी। चूंकि वह एक कुशल खिलाड़ी थी इसलिए वह पहले रवि को एक कुशल तैराक बनाना चाहती थी जिससे उसके डूबने का खतरा नहीं रहे और वह देर तक इस सागर में ये खेल खेलता रहे। उसने रवि की कोचिंग शुरू कर दी थी।
वो दोनों अभी इस प्यार के समंदर में आगे बढ़ते कि दरवाजे पर कुछ आहट हुई। शांति और मुन्ना आ गये थे घूमकर। इस प्यार के खेल में वक्त कब निकल जाता है, पता ही नहीं चलता है।
मीना घबराकर अलग हो गई और रवि को भी बाहर जाने को कह दिया। रवि तुरंत आंगन में आ गया और मीना अपने कपड़े संभालने लगी।
शांति और मुन्ना तब तक आंगन में आ गये थे।
"पांय लागी, ताई।"
"कौन, रवि ?"
"जी ताई"
"खुश रह बेटा। लंबी उमर हो तेरी। संसार की सब खुशियां तुझे मिल जायें।" शांति ने आशीर्वाद की झड़ी लगा दी।
"आपका आशीर्वाद रहा तो जरूर आयेंगी खुशियां।" रवि ने मीना भाभी को देखकर बांयी आंख मारकर कहा। मीना भी उसकी बात को समझ कर मुस्कुरा दी।
"आज कैसे आया बेटा" ?
इससे पहले कि रवि कुछ बोलता मीना बोल पड़ी "लाल जी की मां बता रही थीं कि लाल जी को रामायण बांचनी आती है। तो मैंने सोचा कि आज 'सुंदर कांड" का पाठ करवा लिया जाये लाल जी से। क्यों सही है ना मां जी" ?
शांति बड़ी प्रसन्नता से बोलीं "लो और सुनो ! नेकी और पूछ पूछ। अरे इसमें भी कोई पूछने की बात है क्या ? क्यों बेटा, कब सीखा तू ने यह सुंदरकाण्ड का पाठ करना " ?
रवि एकदम से खामोश हो गया। उससे कुछ कहते नहीं बना तो मीना ने कहा "चाची कह रही थी कि अभी थोड़े दिन से ही पढने लगे हैं रामायण" ।
"ये तो बहुत बढिया है। कब से चालू कर रहा है रे , ये सुंदर कांड का पाठ" ? शांति की जिज्ञासा बढ़ रही थीं इसलिए वह चाहती थी कि यह नेक काम आज ही से शुरू हो जाये तो इससे बेहतर और क्या हो सकता है" ?
"ताई , आज तो मुझे कुछ काम है घर पर। इसलिए आज तो नहीं सुना पाऊंगा सुंदरकांड। फिर कभी देखेंगे ।" रवि ने टालने की कोशिश की।
"आज कोई काम आ गया है तो कोई बात नहीं। लेकिन कल से इसका पाठ जरूर शुरू करना है। नहीं तो देख ले" ? शांति ने पुचकार कर और फटकार कर कहा।
"ठीक है ताई , कल सुना दूंगा" । रवि वापस अपने घर आ गया।
वापस आने के बाद रवि ने महसूस किया कि उसे सुंदरकांड का पाठ कल से शुरू करना है लेकिन उसने अभी तक एक बार भी नहीं बांचा है सुंदरकांड। मां ने भी पूछा था तो उसने कह दिया था मगर वो झूठ था जो मीना भाभी के कहने से बोला था। वह मीना भाभी की बुद्धि का लोहा मान गया। कितनी सफाई से उन्होंने इस काम को चुना। मिलन भी हो जाये और पुण्य भी कमा लिया जाये। कमाल का दिमाग पाया है मीना भाभी ने।
उसने सोचा कि अब उसे वास्तव में "सुंदरकांड" का पाठ करना ही है, नहीं तो भांडा फूटने का डर बना रहेगा हरदम। इसलिए आज से ही सुंदरकांड का अभ्यास करना शुरू कर देते हैं। उसने पूजा के कमरे से रामचरितमानस जिसे आम बोलचाल की भाषा में रामायण ही कहते हैं , ले ली और आंगन में ले जाकर पढने लगा। पहले पहल तो उसने धीरे धीरे से पढ़ना शुरू किया फिर लय ताल आने से थोड़ा ऊंची आवाज में पढ़ना शुरू कर दिया।
सुंदरकांड की आवाज सुनकर मां को बहुत सकून महसूस हुआ। उसने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि रवि इतनी अच्छी तरह से सुंदरकांड का पाठ कर सकता है। वह वहां पर आ गयी और रवि के ठीक सामने बैठ गई। रवि बिना उन पर ध्यान दिये सुंदरकांड का पाठ करता चला गया। पाठ खत्म करके रामायण पूजा के कमरे में रख दी। मां बहुत प्रभावित हुई इससे। बोलीं "तू तो बढ़िया पाठ करता है रामायण का। कहाँ से सीखा तू ने ये सब" ?
"आपसे"
"मुझसे ? मगर मुझे तो याद नहीं है कि मैंने कभी सुंदरकांड का पाठ किया हो " मां ने चौंकते हुये कहा।
"आप शायद भूल रही हैं कि अभिमन्यु ने पैदा होने से पहले ही चक्रव्यूह भेदना सीख लिया था।" रवि ने मुस्कुराते हुए कहा
"बदमाश कहीं का ! तू समझता है कि तूने मेरे पेट में ही सीख लिया था सुंदरकाण्ड का पाठ करना। पर इस बात पर कौन विश्वास करेगा।" मां ने भी उसी अंदाज में कहा।
"कोई करे या नहीं, इससे क्या फर्क पड़ता है मां ? फर्क तो इससे पड़ता है कि आपको यह स्टाइल पसंद आई कि नहीं।" रवि ने गंभीरता से कहा
"ये तूने बहुत अच्छा किया जो सुंदरकांड का पाठ सीख लिया। अब मुझे भी सुना देना रोज।"
"ठीक है मां। अब मुझे जल्दी से खाना दे दो , बड़ी तेज भूख लगी है" रवि ने पेट पर हाथ फिराकर कहा।
"क्यों , आज तुझे मीना ने कुछ नहीं खिलाया था क्या" ? रवि को छेड़ते हुये मां ने बोल दिया
रवि मन ही मन उन पलों को याद करते हुए सोचने लगा "भाभी ने आज तो कुछ भी नहीं खिलाया। मगर पिलाया जी भरकर। आंखों से, होंठों से और ..। मगर प्यास मिटी नहीं उसकी। ताई ने बीच में आकर सब चौपट कर दिया। अब ये प्रेम पियाला न जाने कब पीने को मिलेगा।"
रवि के चेहरे पर उदासी के भाव आ गये। पर अगले ही पल उसे याद आया कि मीना भाभी सौ तालों की एक ही चाबी है। उनके पास हर ताले की चाबी है। वे सब ठीक कर देंगी । और रवि निश्चिंत हो गया।

