आवारा बादल (भाग 14) पहला किस
आवारा बादल (भाग 14) पहला किस
रवि के उत्साह का कोई ठिकाना नहीं था। गुड़ ना भी मिले मगर गुड़ मिलने कि आस ही सपने रंगीन करने के लिए काफी है। रवि की उम्मीदों को पंख लग गये। उसका दिमाग षडयंत्रों के कुचक्र बुनने में ही लगा रहा। वह मामाजी द्वारा बताया गया काम कर तो रहा था मगर एक निगाह रीना की गतिविधियों पर भी रख रहा था। रीना थोड़ी अपसेट सी लग रही थी। शायद उसकी डिमांड के कारण ऐसा हो ?
दोपहर को लंच के समय रीना ने उसे चुपके से एक कागज की पर्ची पकड़ाई और चलती बनी। रवि ने उस पर्ची को सबकी नजर बचाकर जेब में रख लिया और भोजन करता रहा। भोजन खत्म करके बाथरूम में जाकर उसने पर्ची को जेब से निकाला और पढ़ने लगा। उस पर केवल दो ही शब्द लिखे हुये थे।
"शिव मंदिर 5 बजे"
रवि को सूचना मिल गयी थी। वह समझ गया कि रीना इस बार घर पर नहीं मिलना चाहती है। वह बेसब्री से पांच बजे का इंतजार करने लगा। चार बजे ही वह तैयार हो गया था। एक एक मिनट एक एक साल की तरह लग रहा था उसे। कब बजेंगे पांच ? बार बार उसकी निगाहें घड़ी पर जाती। मगर समय तो अपनी गति से चलता है। समय काटे कट नहीं रहा था रवि का। उसने सोचा कि क्यों नहीं शिव मंदिर ही चला जाये। तब तक मंदिर भी देख लेंगे।
वह शिव मंदिर पहुंच गया। गांव के बाहर बना था शिव मंदिर। बहुत मान्यता थी इस मंदिर की। सबसे प्राचीन मंदिरों में एक। स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना। रवि मंदिर की दीवारों पर बनी देवी देवताओं की मूर्तियों को देखने लगा। उनके शिल्प के सौंदर्य में वह खो गया। समय का उसे भान ही नहीं रहा।
"हैलो रवि"
यह आवाज सुनकर रवि चौंका। पीछे मुड़कर देखा तो वहां पर रीना खड़ी थी।
"हैलो रीना जी।" रवि रीना की ओर मुखातिब होते हुये बोला "आप कब आईं?"
"बस, अभी अभी। जब आपने देखा।"
"ओह।" इतना ही कह पाया था वह। बाकी की बातें उसकी आंखें कह रही थी।
"कितना प्यारा मंदिर है ये। है ना।"
रवि ने रीना की आंखों में देखकर कहा "हां बहुत प्यारा मंदिर है यह , पर आपसे ज्यादा खूबसूरत नहीं है।"
उसकी बात पर रीना खिलखिलाकर हंस पड़ी। "ऐसा नहीं लगता है कि तुम अपनी उम्र से ज्यादा मैच्योर हो ? तन बचपन का और मन जवानी का।" रीना के मुख पर मुस्कान तैर रही थी।
"हमारा तो तन बदन मन सब कुछ जवान है। कहो तो प्रदर्शनी लगा दें?"
"हाय राम, कैसी बातें करते हो मंदिर में। शर्म नहीं आती है क्या?"
"मंदिर की दीवारों पर भी तो देखो कैसी कैसी मूर्तियां लगी हुईं हैं। जब मूर्तियां इस हालत में हो सकती हैं तो बाकी क्यों नहीं?"
"बड़े बेशर्म और बेहया हो। अपनी उम्र के लड़कों से बहुत आगे। अच्छा अब मेरा दुपट्टा दे दो जल्दी से वरना कोई आ जायेगा।"
"हमने कब मना किया है ? हम तो उसे अपने साथ ही लेकर आये हैं। मगर आप कुछ भूल रही हैं मैडम जी।"
"अब दे दीजिए ना। देखो मैं इस दुपट्टे के लिए यहां तक आ गयी हूँ।"
"तो थोड़ा और कष्ट उठाइये न। वो सामने एक कोठरी बनी हुई है, उसी में आ जाओ।"
रीना ने प्रश्नवाचक निगाहों से रवि को देखा। रवि ने कहा "वहां कोई नहीं है। खाली है। मैंने चैक कर ली है।" रीना अब कोई रिस्क लेना नहीं चाहती थी। उस रात की गलती का खामियाजा उठाने के लिए ही तो उसे यहां आना पड़ा था।
"सिर्फ एक किस , और कुछ नहीं।" रीना ने धीरे से कहा।
"पर कल रात तो और भी बहुत कुछ हुआ था"
"और कुछ नहीं हुआ था बस यही हुआ था। करना है तो ठीक वरना मैं जा रही हूँ।" रवि को लगा कभी डोर पूरी खींची जा चुकी है। अब और खींचने की गुंजाइश नहीं बची है शायद। इसलिए बेहतर यही है कि जो भी मिल जाये उसे स्वीकार कर लिया जाये।" वह चुपचाप कोठरी में चला गया और रीना भी उसके पीछे पीछे चली गई।
रवि ने रीना को दोनों बांहों में थामा तो रीना कसमसा उठी। "मैंने कहा न, केवल किस और कुछ नहीं"
"मैं भी तो वही कर रहा हूं। किस लेने के लिए बांहों में तो भरना पड़ेगा ना तुम्हें। अब तुम अपनी मरजी से आ जाओ या मैं जबरदस्ती करूं?"
रीना ने अबकी बार प्रतिवाद नहीं किया। रवि ने उसे आलिंगनबद्ध किया और एक लंबा किस लिया। पहला किस। जिंदगी भर याद रहता है यह किस। जैसे किसी ने अमृत पिला दिया हो। आदमी स्वर्ग की सैर पर चला जाता है इसमें। उसे ऐसा महसूस होता है कि वह आनंद के सागर में गोते लगा रहा है। उसे उस समय कुछ याद नहीं रहता। किसी अनजाने लोक में विचरण करता है वह। इस लोक से बाहर आने को मन ही नहीं करता उसका। रवि की बांहों का घेरा कसने लगा।
इसी बीच रीना ने उसकी पैंट की जेब में हाथ डालकर दुपट्टा निकाल लिया और खुद को रवि की गिरफ्त से छुड़ाकर बाहर भाग आई। रवि इस अप्रत्याशित घटना से हतप्रभ रह गया। रीना तो बड़ी कलाकार निकली। मगर अब क्या हो सकता था। शिकार दूर जा चुका था। शिकारी के पास हाथ मलने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था।
रवि घर पर वापस आ गया। उसकी तृप्ति नहीं हुई थी। आग और भड़क उठी थी। लेकिन कुछ हो नहीं सकता था। रीना ने ठेंगा दिखा दिया था। इस कुंठा में उसका मन शादी में भी नहीं लगा।
शादी होने के बाद वह अपने गांव चला आया।

