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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Fantasy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Fantasy

आवारा बादल (भाग 13) डील

आवारा बादल (भाग 13) डील

7 mins
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रवि की आंखों से नींद गायब हो गई। वह सोच में पड़ गया कि वह लड़की कौन हो सकती है ? पिंक कलर का सूट किसने पहना था आज ? दिमाग पर काफी जोर देने के बावजूद उसे कुछ याद नहीं आया। तब उसे महसूस हुआ कि लड़के लोग कपड़ों पर कहाँ ध्यान देते हैं ? ये तो लड़कियां ही होती हैं जो न केवल कपड़े बल्कि चूड़ी, कंगन, बिंदी, गहने सब पर ध्यान देती हैं। आज उसे अहसास हुआ कि लड़कियां इतनी खास क्यों होती हैं। 

उसके दिमाग में षड़यंत्र चलने लगा। क्यों न उस लड़की को ब्लैकमेल किया जाये ? जब ऐसा मौका कुदरत ने दिया है तो फिर इसका लाभ उठाना ही बुद्धिमानी है। ऐसे अवसर रोज रोज थोड़े ना आते हैं ? और वह चाहता क्या है ? थोड़ी सी मौज मस्ती ही ना। इसमें उसे कोई हर्ज नहीं होना चाहिए। इतनी सी तो इच्छा है उसकी। वैसे , इच्छाओं का क्या है ? अथाह समुद्र है। जितना मिल जाये उतना कम है। खेल खेल में अगर कुछ मिल रहा हो तो उसे लेने में क्या बुराई है ?  


उसके दिमाग में एक सरगोशी सी उठी "अगर कहीं कुछ गलत हो गया तो ? अगर उसने मामीजी को बता दिया तो ? अगर खेल उल्टा पड़ गया तो " ? 

"इसमें उल्टा क्या होगा ? आज तक तो ऐसा हुआ नहीं। और अगर होगा तो देखा जायेगा।" मन ने कहा। रवि ने खेल खेलने का मन बना लिया तब जाकर उसे नींद आई। 


सुबह मामीजी चाय का कप लेकर उसके पास आई तब वह जागा। उसने मामीजी के चरण स्पर्श किये और मामीजी की नजरों में अपने नंबर बढवा लिये। मामीजी प्रसन्न हो गयीं। 


चाय पीकर फ्रेश होकर वह आंगन में आ गया। तब तक सब लोग चाय वगैरह लेकर आंगन में आ गये थे और अपना अपना काम कर रहे थे। मेहमान गप्प लगाने और अखबार पढ़ने में मशगूल थे। 


रवि की खोजी निगाहें पिंक कलर के सूट को ढूंढ रही थी। वहां पर कई लड़कियां थीं मगर पिंक कलर वाली कोई नहीं थी। वह निराश हो गया। लगता है कि वह अंधेरे के कारण ढंग से देख नहीं पाया था। उसे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था। एक छोटा सा काम भी सही ढंग से नहीं कर पाया था वह। उसे अपने आप पर बहुत अफसोस हुआ। उसकी सारी योजना पर पानी फिर रहा था। वह थोड़ा अपसेट हो गया था। 


काफी देर तक आंगन में बैठे बैठे वह बोर हो गया था। कब तक इंतजार करे वो ? जागती आंखों से देखा जो ख्वाब देखा था वह टूटता सा लगा। चल बेटा , यहां क्या कर रहा है। नहा ले। नहा धोकर तैयार होने के लिए जैसे ही वह खड़ा हुआ तो उसने देखा कि पिंक कलर के सूट में एक लड़की चली आ रही है। रवि की बाछें खिल गई। उसने पहचान लिया कि यह वही सूट था जो रात में उसने देखा था। यह तो मामीजी की कोई रिश्तेदार लगती है। उसने बातों बातों में पता कर लिया कि वह मामीजी की दूर की बहन लगती है। नाम है रीना। बी ए कर रही है अभी। रवि के चेहरे पर मुस्कान खेलने लगी। आंखों में चमक आ गई। 


रवि नहा धोकर नाश्ता करने आ गया था। अब सब लोग तैयार होकर नाश्ता ले रहे थे। रीना मामीजी का हाथ बंटा रही थी। और भी लड़कियां और औरतें थीं जो घर का काम निपटा रही थीं। रवि ने वह दुपट्टा अपने पैंट की जेब में रख लिया था। 


धीरे धीरे लोग नाश्ता करके काम पर जाने लगे। आंगन में कम लोग रह गये थे। मामाजी ने रवि को दो चार काम बता दिये। रवि उन कामों को करने से पहले रीना तक संदेश पहुंचाना चाहता था। उसने अपने पैंट की जेब से दुपट्टा थोड़ा सा बाहर निकाला और किचन में पानी पीने के लिए गया। वहां रीना ने उस दुपट्टे को देख लिया और आश्चर्य से उसने रवि को देखा। रवि बिना उसे देखे किचन से बाहर आकर ऊपर छत पर चला आया। 


उसने महसूस किया कि रीना भी उसके पीछे पीछे आ रही थी। छत पर आकर वह धूप में बैठकर आसमान में खेलते बादल देखने लगा। इतने में रीना वहां आ गयी। 


"ये गुलाबी दुपट्टा मेरा है, मुझे दीजिए।" रीना ने कोमल शब्दों में आग्रह पूर्वक कहा। 

रवि को आज किसी लड़की से इस तरह पहली बार बात करने को मिल रहा था। उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा। उसे रीना की आवाज बहुत मधुर लगी थी। दिल को भा गयी उसकी आवाज। रवि ने बिना उसकी तरफ देखे ही कहा

"आपके पास क्या सबूत है कि यह आपका ही दुपट्टा है।" 

"मैं कह रही हूं न। बस यही सबूत है" 

"अच्छा जी। आप कहें और हम मान लें ? इतने भी भोले भंडारी नहीं हैं हम।" रवि पूरी ढिठाई से बोला "अच्छा यह बताइये कि आपने इसे कहाँ रखा था" ? 

इस पर वह थोड़ी घबराई फिर कहने लगी "मुझे याद नहीं है" 

"अगर आप हुक्म करें तो हम बता सकते हैं" 

"जी, आप ही बता दीजिए फिर।" रीना भी अब मजाक के मूड में आ गई थी। 

"तो सुनिए मेमसाहब। आप रात को एक कमरे में घुसीं थी। आपके साथ एक लड़का भी था। फिर चूमा चाटी का खेल चला। थोड़ी छीना झपटी भी हुई तब आप बाहर भाग गई और इस छीनाझपटी में ये दुपट्टे महाराज वहीं विराजे रह गए।" रवि ने एक ही झटके में सब सस्पेंस खत्म कर दिया। 


रीना यह सुनकर अवाक रह गई। उसे तो सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि उसकी चोरी पकड़ी जायेगी। इसका मतलब है कि रवि ने वह सब कुछ देखा है जो कल रात हुआ था। यह कहाँ था ? वहां तो घुप्प अंधेरा था, रीना सोचने लगी। कहीं यह तुक्का तो नहीं मार रहा है ? यह सुनिश्चित करने के लिए उसने कहा 

"ऐ मिस्टर ! ये क्या बदतमीजी है ? क्या क्या अनाप शनाप बोले जा रहे हो , कुछ पता भी है" ? 

"हां, पता है। पर यह अनाप शनाप नहीं है , सत्य है। आप जब कमरे में घुसी थीं तब मैं सो रहा था। आपके आने से मेरी नींद खुल गई थी और मैंने सब कुछ देख लिया और सुन भी लिया।" रवि अब अपनी योजना के अनुसार काम कर रहा था 

यह जानकर कि रवि ने वह सब देखा और सुना है, रीना थर थर कांपने लगी। बड़ी मुश्किल से कह पायी

"मेरा दुपट्टा मुझे वापस दे दीजिए न।" बड़े ही कातर शब्दों में कहा था रीना ने। 

"दे देंगे , दे देंगे। हम क्या करेंगे इसे अपने पास रखकर। लेकिन ऐसे कैसे दे देंगे, आखिर इतना कीमती जो है ।" पूरी सौदेबाजी के मूड में था रवि 

"क्या चाहिए आपको" ? 

"बहुत कुछ" 

"फिर भी" 

"खुद ही समझ जाइये। जितना 'उसे' दिया उससे कहीं ज्यादा चाहिए।" 

"शैतान लड़के ! अभी उम्र नहीं है इन सबकी। पढ़ने की उम्र है अभी आपकी ।"

"और आपकी" ? 

इस पर रीना संकोच से सिमट सी गई। फिर साहस जुटाकर बोली। "मैं तो कॉलेज में पढ़ती हूं मगर तुम तो अभी बच्चे हो। ज्यादा चीं चपड़ करोगे तो मैं दीदी को कह दूंगी ।"


"तुम क्या कहोगी मामीजी से , मैं खुद ही जाकर मामीजी को कह देता हूँ। रात की सारी घटना बता देता हूँ और यह दुपट्टा भी उन्हें दे देता हूँ।" रवि ने पूरी दृढ़ता से कहा और रीना की आंखों में सीधे देखा। "और हां, इतना छोटा भी नहीं हूँ मैं।" 


कहते हैं कि चोर के पैर कमजोर होते हैं। रीना के साथ भी ऐसा ही था। वह एकदम से घबड़ा गयी और जल्दी से बोली "दीदी से मत कहना नहीं तो मेरा कबाड़ा हो जायेगा। प्लीज।"

"ठीक है। तो मेरा इनाम" ? 

"ऐसे कैसे दे दूं यहां ? सबके सामने।" 

"तो फिर जगह और समय बताओ।" रवि को खुद पर विश्वास नहीं हो रहा था कि वह इस सफाई के साथ यह "डील" पूरी कर लेगा। जीत की चमक आ गयी थी उसके चेहरे पर। 

"मैं फिर सोचकर बताऊंगी। लाओ, अब तो मेरा दुपट्टा मुझे वापस कर दो।" 

"पागल समझा है क्या मुझे ? पहले इनाम फिर दुपट्टा।" रवि ने साफ कर दिया कि ब्लैकमेल के धंधे में उधारी नहीं चलती है। 

रीना पशोपेश में पड़ गई। थोड़ी देर सोचने के बाद वह बोली

"क्या मेरा विश्वास नहीं है आपको" ? 

"बात विश्वास की नहीं , इनाम की है। पहले इनाम फिर विश्वास।"

"अच्छा ठीक है। मैं दोपहर तक बताती हूँ।" और वह चली गई। 


रवि को विश्वास ही नहीं हुआ कि ऐसा भी हो जाएगा। उसे तो लगा था कि कहीं ऐसा ना हो कि वह मामीजी को कुछ इधर उधर की लगाकर उस पर ही कोई इल्जाम ना मढ़ दे। पर होनी को तो कुछ और ही मंजूर है शायद। 



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