आठ महीने

आठ महीने

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सुनो मैं अब तुम्हारे साथ नहीं रह सकता... रोहित के शब्द मेरे लिए कोई नए नहीं थे लेकिन उस दिन वो मुझे अकेला छोड़कर चले गए । मंडप की वेदी बैठे दिए गए वो सात वचन नासमझी और अहंकार के आगे धरे रह गए । आंखों में आंसू और दिल में दर्द लिए में दरवाजे के आगे पसरे सूनेपन को सिर्फ देखती रह गई ।

रोहित के दिल में मेरे लिए प्यार कभी था भी या फिर सब सिर्फ छलावा था मैं समझ ही नहीं पा रही थी कि तभी फोन की घंटी बजी और रोहित की मम्मी आवाज सुनकर मेरा रोना निकल गया ।

मिल गई तुम्हारे दिल को ठंडक, मेरे बेटे की जिंदगी बर्बाद करके, अच्छा हुआ जो वो तुम्हें छोड़कर चला गया और वैसे भी तुमने पत्नी की कौन सी जिम्मेदारी निभाई है । आजतक... वो मुझे हर शब्द में कोस रही थीं और मैंने फोन काट दिया ।

पूरा घर गंदा पड़ा था, रोहित का कमरा खाली पड़ा था क्योंकि वो कुछ दिन पहले से ही अलग कमरे में रहने लगे थे । अलमारी खुली पड़ी थी और सारा समान बिखरा पड़ा था । हिम्मत नहीं हो रही थी कि उस कमरे में जाने की । मैं किसी को जाते हुए नहीं देख सकती... बहुत ज्यादा तकलीफ होती है जब कोई चल जाता है ।

शादी के बाद जब इस घर में आए थे तो कितनी खुश थी मैं सब नया था. नया रिश्ता, नया घर, नई खुशियां और नई सुबह के साथ नई शामें । मीडिया के प्रोफेशन में होने के कारण ऐसी शायराना बातें करना मेरी आदत थी । रोहित के साथ अरेंज मैरिज हुई थी तो उनके बारे में ज्यादा जानती नहीं थी, सिवाए इसके की कम बोलना पसंद करते हैं । ठीक ही था मैं हंसी-मजाक और चकर पकर करने वाली और पति महाराज गुमसुम । मैं तो रोहित को नाम भी दे दिया था खडूस ।

मैं जितना ईजी रहती रोहित उतना ही उलझे हुए थे । अपनी बातें शेयर नहीं करना, मुझे अपनी चीजें से दूर रखना यहां तक की अपनी अलमारी भी न छूने देना मुझे अजीब लगता था । मेरी हर ख्वाहिश पर मुझे फिल्मी बुलाना तब बुरा लगने लगा जब पहली बार रोहित का असली चेहरा देखा ।

प्यार तो कभी था नहीं लेकिन सम्मान के डोर में बंधा पति-पत्नी की रिश्ता अपनी सांसे गिनने लगा था । तुम नौकरी छोड़ दो और मेरे मां-पापा की सेवा करो । मैं जवाब हंसकर दिया था कि उन्हें हम यहीं बुला लेंगे, उसमें क्या दिक्कत है. दिक्कत है और वो तुम हो, तुम्हारे पापा ने तुम्हें ज्यादा ही सिर चढ़ाया था अब मैं तुम्हें बताऊंगा कि लड़की को कैसे रखा जाता है । बहुत घमंड है न कि मीडिया में जॉब करती हो. तुम्हारी सारी हेकड़ी खत्म कर दूंगा मैं ।

कानों को विश्वास नहीं हो रहा था कि ये वही लड़का है जिसने अपने पापा को बड़े शान से मेरे बारे में बताया था कि लड़की मीडिया फील्ड में काम करती है तो मुझे पसंद है । अब मेरी वही जॉब इतना अखरने लगी थी रोहित और उसकी फैमिली को । बड़ी कोशिश की रिश्ता न खराब हो सब ठीक हो जाए लेकिन जब बात मेरे मां-पापा तक पहुंची तो दिल में दरार आ गई ।

दिल जुड़े भी नहीं पाए थे और हम दोनों के बिस्तर अलग हो गए, कमरे अलग हो गए और धीरे-धीरे के ही मकान के नीचे हम अजनबी हो गए । 28 साल की मेरी हंसती-खेलती जिंदगी में शादी के ये आठ महीने नासूर की तरह हो गए. नासूर एक ऐसा घाव जो धीरे-धीरे रिसता रहता है और शरीर पर दाग के साथ ही आजीवन दर्द दे जाता है ।

दिमाग सुन्न है लेकिन दिल की धड़कन को सुन पा रहा है । जिंदगी में आगे क्या होगा कैसे होगा नहीं कुछ नहीं पता । बस आठ महीने में मिले नए नाम गूंज रहे थे, बिगड़ी हुई लड़की, पापा की सिरचढ़ी, फिल्मी औरत, बदतमीज, कुछ ज्यादा ही मॉर्डन हो, बंजारन न बना करो, ब्राइट कलर की लिपस्टिक मत लगाया करो... और लड़की हो लिमिट में रहा करो ।


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