वो लड़की
वो लड़की
उलझे हुए बाल, सफेद कॉटन की बड़े कॉलर वाली शर्ट, ब्लू फिटिंग वाली जींस के साथ होठों पर लगी रेड बोल्ड लिपिस्टक और आंखों में करीने से लगा लाइनर इतना सूट कर रहा था कि मोहल्ले की आंटियां भी पलट-पलट कर देख रही थीं। मंदाकिनी मां का रखा नाम था लेकिन सब प्यार से उसे बिट्टो बुलाते थे, पड़ोस की एक दीदी ने ये नाम रखा था। बचपन से ही गोल मटोल और हंसोड़ बच्ची थी मंदाकिनी।
वेस्टर्न कल्चर की बहुत बड़ी फैन थी मंदाकिनी, उसका कहना था कि वो लोग जीवन जीते हैं और हमारे यहां समाज जीवन को नर्क बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता है। पापा के सपोर्ट और प्यार की वजह से मंदाकिनी हर वो काम कर पाती थी जो दूसरी लड़कियां सोच भी नहीं पाती थीं।
जब इस नए घर में मंदाकिनी अपने परिवार के साथ आई थी तो वो टीनएज में थी और काफी मॉर्डन तरीके से रहने के कारण पूरे मोहल्ले की औरतों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई थी। बड़ी-बड़ी आंखों में सपनों को पूरा करने की चमक और उस पर सांवला रंग मंदाकिनी को सबसे अलग बनाता था। पढ़ने में एवरेज मंदाकिनी का तेज दिमाग खेल-कूद और दूसरी एक्टिविटीज में खूब लगता था।
पापा मम्मी ने भी कभी जोर नहीं दिया क्योंकि मंदाकिनी आजाद ख्यालों के साथ ही घर में मम्मी के साथ हाथ बटांना भी अच्छी से जानती थी। लंबी-चौड़ी मंदाकिनी को मॉडलिंग में जाने का चस्का था जो कानपुर में रहकर पूरा कर पाना थोड़ा मुश्किल था क्योंकि 90 के दशक में कहां इतने कॉन्टेस्ट हुआ करते थे। इसलिए इस पैशन को मंदाकिनी ने मन में ही दबा लिया और उसे अपने स्टाइल में ढाल लिया। स्कूल की पढ़ाई पूरी हुई और कॉलेज में एंट्री लेते ही मंदाकिनी के चर्चे फिर से शुरू हुए और अब कॉलेज में एक तेज-तर्रार लड़की सबकी बातों का हिस्सा बन गई।
अपने दोस्तों के साथ कैंटीन में सिगरेट पीना और बाइक चलाना उसे दूसरी लड़कियों की नजरों में हीरो तो बनाता था लेकिन कुछ को वो फूहड़ नजर आती थी। कॉलेज के तीन साल ऐसे बीत गए कि पता ही नहीं चला और दिल्ली जाने की फिराक में बैठी मंदाकिनी ने फटाफट से मास्टर्स करने के लिए दिल्ली के एक कॉलेज से जर्नलिज्म के कोर्स का फॉर्म भर दिया। पापा तो राजी हो गए क्योंकि इतने सालों में मंदाकिनी ने उनसे कभी कुछ नहीं मांगा था लेकिन हां वो अपनी सारी बातें पापा से डायरेक्ट करती थी। ये बात मां और बड़े भाई को बड़ी खटकती थी क्योंकि मम्मी भैया की डाकिया थीं जो पापा तक उनकी बातें पहुंचाती थी और मंदाकिनी के लिए पापा उसके दोस्त थे जिनसे वो सब कुछ बिना झिझक कह देती थी। फॉर्म भर चुका था और दिल्ली मंदाकिनी को अब दूर नहीं नजर आ रही थी कि तभी भैया ने घर पर हंगामा खड़ा कर दिया कि वो दिल्ली नहीं जा सकती और उसकी अब शादी करा देनी चाहिए।
आजाद ख्यालों वाली मंदाकिनी की लिस्ट में शादी सबसे बाद में आने वाले कामों में था और उसने तो सोचा था कि नहीं भी करेगी तो कौन सा भूचाल आ रहा है। लेकिन इस तरह के ड्रामे की उसे बिलकुल उम्मीद नहीं थी।
भैया के प्रस्ताव को पापा और मम्मी दोनों ने सिरे से खारिज कर दिया और इतना ही नहीं पापा ने ये भी साफ कर दिया कि मंदाकिनी की शादी उसकी पसंद और मर्जी से होगी। फिर क्या था मंदाकिनी अपने सपनों की उड़ान लेकर दिल्ली आ गई। कानपुर और दिल्ली में उसे कोई खास फर्क नजर नहीं आ रहा था क्योंकि यहां आकर उसे दूसरी लड़कियों की तरह मॉर्डन कपड़े पहनने की आजादी की खुशी नहीं थी, वो तो पहले ही से ऐसी भी कोई पाबंदी रही नहीं। हॉस्टल में भी मंदाकिनी का बेबाक अंदाज और मॉर्डन स्टाइल चर्चा में आ गया। और जब लड़कियों को पता चला कि वो जर्नलिस्ट बनने आई है तो उसके बारे में काफी बातें भी बनाई जाने लगीं लेकिन मंदाकिनी को ऐसी बातों से कभी कोई फर्क पड़ा। उसे अपने सपनों की आवाज के कभी कोई बातें सुनाई ही नहीं पड़ती थीं।
उसे तो अपने जीने के अंदाज से प्यार था और वो ऐसे ही रहना चाहती थी। दिल्ली में दो साल पढ़ाई करते कब बीत गए पता ही नहीं चला। इस बीच 21 साल की मंदाकिनी ने ट्रेन और बस में अकेले सफर करना काफी अच्छे से सीख लिया था। छोटे शहरों की लड़कियों के लिए सबसे बड़ी समस्या तो यही होती है कि वो अकेले सफर कैसे करेंगी लेकिन कानपुर से दिल्ली और दिल्ली से कानपुर के सफर में ट्रेन और बस स्टेशन मंदाकिनी की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुके थे।
कॉलेज तो पास आउट कर लिया लेकिन नौकरी पाने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ी और तीन साल छोटे-छोटे वेंचर्स में काम करने के बाद आखिरकार मंदाकिनी को आजतक जैसे मीडिया के बड़े संस्थान में काम करने का मौका मिला और फिर क्या था, कानपुर की लड़की नोएडा फिल्मसिटी पहुंच गई लेकिन उसके के लिए यहां तक पहुंचना आसान नहीं रहा। अपनों से लड़ी लोगों से लड़ी जो लड़कियों को कमजोर समझते थे, अपने बॉयफ्रेंड से झगड़ी जो उसे दिल्ली नहीं जाने देना चाहता था।
खुद से भी लड़ी जब मन किया कि सब छोड़कर वापस अपने घर, अपने शहर और अपने पापा के पास चली जाऊं लेकिन वो डटी रही। बस यहीं जिद्द और हर हालात में डटे रहना ही मंदाकिनी को आगे बढ़ने का हौसला देता रहा। आज मंदाकिनी की लाल लिपस्टिक लोगों मोहल्ले की आंटियों को स्टाइल स्टेटमेंट लगने लगा है। चौराहे पर काम जमा होने वाले लड़के आज भी मंदाकिनी को हिटलर ही बुलाते हैं। वो लड़की जो कभी लोगों समाज बिगाड़ने वाली औरत नजर आती थी, आज जब वो अपनी रिपोर्टिंग से घर-घर का हिस्सा बन गई तो वो लड़की आज लोगों को आइडल नजर आने लगी है। वो लड़की नहीं बनने से लेकर उस लड़की जैसा बनो तक का सफर मंदाकिनी ने अपने हौसलों से तय किया जिसमें उसके पापा उसके हमसफर बने।
