आत्मनिर्भर
आत्मनिर्भर
दिल्ली से गोवा की उड़ान में एक सज्जन मिले सज्जन की उम्र करीब ८० साल रही होगी और उनकी पत्नी भी ७५ पार ही रही होगी। उम्र के हिसाब से दोनों काफी फिट थे।
उड़ान भरने के साथ ही जब भोजन सर्व होना शुरू हुआ तो उन लोगों ने राजमा-चावल का आर्डर किया। खाना खाने के बाद जब उन्होंने जूस की बोतल के ढक्कन को खोलना शुरू किया तो ढक्कन खुले ही नहीं। मैंने शिष्टाचार हेतु कहा कि लाइए...मैं खोल देता हूं। सज्जन ने मेरी और देखा, फिर बोले ढक्कन तो मुझे ही खोलना है। उन्होंने कहा-आज तो आप खोल देंगे, लेकिन अगली बार....? कौन खोलेगा...?
इसलिए मुझे खुद ही खोलना होगा। और बार बार कोशिश के बाद उन्होंने ढक्कन खोल दिया। मुझे इस उड़ान में जिन्दगी का एक सबक मिला। सज्जन ने मुझे बताया कि उन्होंने ...ये नियम बना रखा है कि अपना काम खुद करेंगे, भरा-पूरा परिवार, सब साथ रहते है पर अपनी रोज की जरूरत के लिए सिर्फ पत्नी की मदद लेते हैं।
एक बार अगर काम करना छोड़ दूंगा, दूसरों पर निर्भर हुआ तो समझो बेटा कि बिस्तर पर ही पड़ गया।
हाँ... कभी- कभी जूस की बोतल नहीं खुलती। पर थोड़ा दम लगाओ, तो वो भी खुल जाती है। मेरी तो आँखें ही खुली की खुली रह गई।
मैंने तय किया था कि इस बार भी उड़ान में लेपटॉप पर एक पूरी फिल्म देख लूंगा। पर यहां तो मैंने जीवन की फिल्म ही देख ली।
एक वो फिल्म जिसमें जीवन जीने का संदेश छिपा था।
"जब तक हो सके आत्मनिर्भर रहो।
जहाँ तक संभव हो स्वयं ही करो।"
