आत्महत्या
आत्महत्या


सीतापुर गांव का, आज माहौल, बड़ा चहल-पहल का था। क्योंकि ठाकुर धनीराम की इकलौती बेटी की शादी थी। सारा गांव उसमें आमंत्रित था। सब वहां जाने के लिए उत्सुक भी थे । आखिर हो भी ना क्यूं? गांव के ठाकुर के यहां शादी जो थी, कुछ राजसी ठाठ- बाट देखने को जो मिलती।
गर्मी धीरे - धीरे सर पर चढ़ने लगी थी। आखिर हो भी ना क्यूँ। अप्रैल का महीना भी जो बीत रहा था। गांव के सभी किसानों ने अपनी गेहूं की कटाई- मड़ाई करके अनाज को अपने घर में भंडारित कर लिया था, पर हरीराम आज ही अपनी कटाई पूरी करके उसे मडाना चाहता था, लेकिन ठाकुर के यहां शादी में भी जाना था। उनके यहां की व्यवस्था को संचालित जो करना था। इसलिए वह कटाई का काम पूरा करके गट्ठर को खेत में एकत्रित कर रहा था। अब सोचा कि चलो कल से मडवाया जाएगा, नहीं तो भूसा-कूना पूरे गांव में फैलेगा, जो कि उचित भी नहीं है।
धीरे-धीरे शाम हो आयी। ठाकुर के घर पर सभी गांव वाले भी धीरे-धीरे पहुंचने लगे। सब अपने अनुसार, एक - एक कार्य को पकड़ लिये, और उसका संचालन ठीक तरीके से करने लगे, और उधर बारात भी घर तक पहुंचने लगी। खूब धूम धड़ाके हो रहे थे। बम के गोले दगाए जा रहे थे। सभी नाच रहे थे।
" कब खुशी की महफिल में, गम का मातम छा जाये ये कौन जान सकता है?" यहां पर कुछ ऐसा ही हुआ।
पटाखों की लड़ी से एक पटाखा उड़कर खेत में जा गिरा, जहां पर अनाज का गट्ठर धरा था। इस सूखे हुए गेहूं के गट्ठर में धीरे-धीरे करके आग पकड़ ली। जो कि हरीराम का था।
जब उसे इस बात की खबर लगी, तो वह सब कुछ छोड़कर भागा, तब तक आग ने अपना प्रचंड रूप धारण कर लिया था। (गर्मी की आग वैसे भी कहां बुझने वाली होती है) सारा अनाज जलकर राख हो गया।
सुबह ठाकुर के बेटी की विदाई की डोली निकल रही थी, तो दूसरी तरफ हरीराम की अर्थी।
"कुदरत की यह कैसी माया थी, एक ही गांव में जहां शहनाई की धुन बज रही थी वहीं दूसरी तरफ, गम के चीत्कार उठ रहे थे।"
हरीराम ने इतना बड़ा कदम क्यों उठाया? क्या उसकी मेहनत का फल नष्ट हो गया? इसीलिए, या उसे अपना परोपकार अपनी मूर्खता दिखने लगी थी, पर जो भी था। हरीराम के अंतर्मन ने इस जमाने को त्यागने का निश्चय कर ही लिया था।
सब कुछ नष्ट हो जाने के बाद भी वह पुनः ठाकुर के घर, उसके सम्मान के लिए पहुंचा था, और उसकी व्यवस्था का संचालन भी बखूबी से किया। ("कौन सा व्यक्ति अपने दुख को भुलाकर किसी की खुशी में शरीक होने जायेगा" )।
रात्रि के चौथे पहर की शुरुआत हो चुकी थी। शादी का शुभारंभ भी हो चुका था। इसी बीच ठाकुर ने हरिराम को बुलाया और कहा! देखो हरीराम! तुम्हारी फसल तो पूरी तरह से नष्ट हो गई है, और तुम्हारे पास खाने को भी कुछ नहीं बचा, तो तुम मेरा कर्जा कैसे चुकाओगे ? और अगली बुवाई के लिए भी तो तुम्हें पैसों की आवश्यकता तो होगी। इसीलिए मैं कहता हूं कि, तुम अपना 5 बीघा खेत मेरे नाम कर दो, और इसके बदले मैं तुम्हारा सारा कर्ज माफ कर दूंगा, और अगली बुवाई का भी पैसा दे दूंगा।
हरीराम यह सुनकर आवाक रह गया। बेचारा बोलता भी क्या? जिसने कर्ज को भी मेहरबानी का रुप देकर पूरे सालों - साल ठाकुर के आदेशों का पालन करता रहा। जिनके प्रोग्राम के खातिर अपनी खेती को भी प्राथमिकता ना दी। क्या इन सब की कीमत ठाकुर की नजर में कुछ भी ना थी ?
वह कुछ ना कहकर घर के लिए निकल आया था।
अब उसके मन में एक नकारात्मक भाव उत्पन्न होने लगा, कि अगर वह जीवित रहा तो ठाकुर उसकी जमीन को अपने नाम करवा ही लेगा, और अगर ऐसा हुआ तो, वह अपने परिवार के साथ अन्याय करेगा। बेचारे आज कुछ महीनों के लिए ही कष्ट, दुख को गले लगाएंगे, पर ऐसा कुछ हुआ तो, सारी उम्र यह उनके गले में फांसी के फंदे सा- फंस जाएगा।
उसकी यह भावना उसके अंतर्मन को कचोटने लगी, और उसने परिवार के गले में लगने वाले फंदे को निकाल कर अपने गले में लगा लिया।