HRP STUDIO

Horror

4.6  

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आत्मा का इंतकाम :अनोखी दुल्हन

आत्मा का इंतकाम :अनोखी दुल्हन

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आजा रे तू दिल के सहारे तुझको पुकारें गीत हमारे मेरे ओ सजना.........

रात के सन्नाटे में जहां दुनिया सो जाती है। चारों तरफ सन्नाटा छाया होता है,,, ऐसे में उस अंधेरे को चीरती बड़ी दर्द भरी आवाज फिजा में तैरती हुई माहौल को गमगीन कर देती है,,, बहुत ही भरी आवाज में गाया यह गीत सोते हुए लोगों को जगा देता है, और जो अभी भी जाग रहे होते हैं उनके दिल को तड़पा देता है। आवाज बहुत दर्द भरी है इसमें कोई संदेह नहीं है,,,, लेकिन बहुत खौफनाक भी है यह भी सही है।

इस आवाज को सब पहचानते हैं। करुण स्वर गाने वाले के लिए है,, लेकिन सुनने वाले के लिए मौत का परवाना है। यह गीत गूंजता है तब गलियों में एक साया निकलता है जो एक औरत का है धीरे धीरे चलती हुई वह सुनसान गली में जाती है सफेद कपड़ो में होती है कमर तक खुले हुए उसके बाल झूल रहे होते हैं,,,, और धीरे-धीरे जाकर किसी खास दरवाजे पर रुक जाती है। बड़ी मधुर आवाज में बुलाती है और निकलने वाले को अपने साथ ले जाती है। फिर वह जाने वाला लौटकर नहीं आता है। आती है तो उसकी मौत की खबर।वो इंतकाम में सुलगती हुई एक आत्मा है,,, जो किसी खास मकसद से ही लोगों को मार रही है। वह एक खौफनाक चुड़ैल है।

लेकिन सोचने वाली बात है कि मैं कि वह लड़कियों या औरतों के साथ ऐसा नहीं करती,,,, उसका शिकार सिर्फ मर्द ही बनते हैं, वह केवल मर्दों के साथ ही ऐसा करती है।

तो उन्हीं के साथ ऐसा क्यों करती है ऐसा क्या हुआ उसके साथ ऐसा क्यों कर रही है? पूरे शहर में आतंक फैला हुआ है। लोग कहते हैं कि उसका एक मिशन है।

उसका क्या मिशन है यह किसी को नहीं पता!!

हर कोई डरा हुआ है हर जगह खौफ पसरा हुआ है।क्या पता कौन सी गली में दस्तक हो और उसकी मौत उसे खींच कर ले जाए??क्या पता आने वाले कल में किस्की बारी है?क्या वह सबको मारती है या कुछ चुनिंदा लोगों को ही ?वह चुड़ैल कैसे बनी? इन सब बातों का अब होगा पर्दाफ़ाश......

आइए चलते हैं इस खौफनाक कहानी का राज जानने के लिए बेंगलुरु के एक ऑफिस में.....

"चल यार ऑफिस में बैठे-बैठे बोर हो गए हैं,,,, चल आज कहीं घूमने चलते हैं!! कौशिक ने उकताये हुए स्वर में सौम्य से कहा।

कौशिक ने भी उसका अनुमोदन किया :- 'सच यार !! मैं भी बोर हो गया हूँ एक सी रूटीन में बंध कर ऐसा लगता है कि जैसे जिंदगी यहीं थम कर रह गई। हम बिल्कुल मशीन बनकर रह गए हैं। कोई एडवेंचर कोई,,, जरा सा भी थ्रिल नहीं !!! वही बोरियत भरी रूटीन!!

तो फिर चल कहीं दूर चलते हैं !! इस ऑफिस से दूर ..II सौम्य ने लंबी सांस छोड़ते हुए कहा। सौम्य हर समय पता नहीं किस दुनिया में गुम रहता था। उसको हंसते हुए तो कभी कभार ही देखा जाता था। कौशिक उसको इस बात के लिए कई बार टोक भी चुका था। लेकिन सौम्य हंस कर टाल देता। कह देता कि,,,,,,, आदत है सब की आदत एक सी नहीं होती। तू अलग तरह का है,,,, मैं अलग तरह का हूं।

दोनों कंप्यूटर इंजीनियर हैं और अकेले ही बैंगलोर में रहते हैं।कौशिक दिल्ली में रहता था उसके पेरेंट्स भाई बहन भी वहीं थे। बीटेक करने में के बाद उसका प्लेसमेंट बेंगलुरु में एक मल्टीनेशनल कंपनी में हुआ था। में पहले तो यहां भेजने के लिए उसके घर वालों ने आनाकानी की, लेकिन अच्छी जॉब होने के कारण कौशिक ने कह दिया कि वह जाएगा।पहले- पहले जब वह आया तो अकेला था। हिचकिचा रहा था।

उसे याद आया अब इसमें उसका पहला पहला दिन बहुत तनाव से भरा था। वह सोच रहा था कि कैसे एडजस्ट करेगा? कैसा लगेगा नया शहर ? नया परिवेश? नया माहौल? लेकिन पहले ही दिन उसकी जान पहचान उसके ही जैसे सौम्य से हो गई।

पर वह भी कंप्यूटर इंजीनियर था । वह भी दिल्ली से ही आया था। सौम्य के डैडी दिल्ली पुलिस में इंस्पेक्टर थे,,,, ये सभी राजेंद्रनगर के रहने वाले थे।उसकी ऑफिस में ही सौम्य से मुलाकात हुई थी।वह भी नया आया था।

पहले तो दोनों अलग-अलग रूम लेने को थे लेकिन फिर सोचा कि दोनों मिल कर लेते हैं। उन्होंने तुलसी धाम, सोसाइटी में चौथी फ्लोर पर फ्लैट ले लिया। वे बड़े आराम से रह रहे थे। इनकम खूब अच्छी थी,,, इसलिए घर भेज कर भी काफी मौज़ से कटती थी। अभी शादी दोनों लोगों की नहीं हुई थी। बागों के शहर" के नाम से मशहूर बेंगलुरु वैसे भी बहुत खूबसूरत जगह है।

जब उन्होंने मूड बना ही लिया,, तो फिर दूसरे दिन छुट्टी ले ली और वे निकल

पड़े शहर की भीड़भाड़ से दूर पहली बार दोनों साथ घूमने निकले थे इसीलिए दोनों ने आपस में बातें भी खूब की थीं। सौम्य वैसे तो कम बोलता था लेकिन आज बाहर निकल कर थोड़ा खुल गया था। और अब दोनों के बीच में उतना अजनबीपन भी नहीं रहा था।इस समय दोनों खूबसूरत पहाड़ी जगह पर थे।

आज कौशिक और सौम्य खूब घूमे थे। वे दोनों अभी सूर्यास्त का दृश्य देख रहे थे। सूर्य ढलता हुआ भी इतना खूबसूरत लगता है यह उन्होंने आज जाना था। कहाँ मौका मिलता है नेचर के पास जाने का !! इस समय वे जिस जगह पर बैठे थे उसका नाम था सावनदुर्ग |

छोटी-छोटी ढलान वाली पहाड़ियाँ, फूलों से और विभिन्न वनस्पतियों से ढकी हुई उन्हें जैसे चुंबकीय आकर्षण से बांधे थीं। शरद प्रकृति के उस खुले सौंदर्य को टकटकी लगाए देख रहा था।

ऐसे ही समय में अचानक कौशिक के मन में एक सवाल आया :- "यार एक बात पूछना चाहता हूं ! ""

क्या??" सौम्य ने प्रश्नवाचक नजर उठा कर कौशिक के चेहरे पर टिका दी।

यही कि तूने अपनी लाइफ के बारे में क्या सोचा है ?"कौशिक मजाक मजाक में उसके बारे में जानना चाहता था कि आखिर क्या बात है जो यह इतना उदास रहता है। कुछ तो बात है ही!!

" मैंने !!..... मैंने कुछ भी नहीं सोचा !! सौम्य ने उदास स्वर में कहा।

तो एक बात बता यार कुरेदा। .तू इतना उदास क्यों रहता है?" कौशिक ने उसको

"कुछ नहीं बस ऐसे ही!!" सौम्य अभी इतना खुलने को तैयार नहीं था ।

"अच्छा बता.... . मुझसे मत छिपा !!!... क्या तेरा कहीं कुछ चक्कर वक्कर तो नहीं था ??" अगर ऐसा हो.... तो भी मामला सब सेटल हो सकता है. तो तू जॉब कर रहा है .अब ...... तू तो खाली भी नहीं है ...... या तुझे कोई धोखा देकर चला गया ...जो तू ऐसे मुंह बिसूरता रहता है?" कौशिक भी जैसे आज उसके बारे में सब कुछ जान लेने की ठाने हुए था और वह सौम्य को छोड़ ही नहीं रहा था।

"कुछ भी नहीं यार!! .... कुछ नहीं !!... सौम्य छोटी-छोटी कंकड़ियों को दूर फेंकते हुए बोला:

तू अपने बारे में बता !!"

"मैं अपने बारे में क्या बताऊं ?? कौशिक बोला;- " मैं तो जरा शायराना अंदाज का हूं...... अभी तक मेरे मन की गर्लफ्रैंड भी तो नही मिली!!

आज के इस युग मे मजाक में भी कोई कहे .... कि मेरी कोई गर्लफ्रेंड अभी तक नहीं रही है... तो बोल!!!! कौन मानेगा ??तू तो जैसे विश्वामित्र है !! अब सौम्य को हंसी आ गई थी।

11 नहीं सच्ची यार !! अपने कान पकड़ते हुए कौशिक ने कहा "तोबा तोबा !!.. मैं कभी फ्लर्ट करने के मामलों में नहीं रहा.... मेरी तो इमेज अच्छी रही है!!

हां और क्या कुछ अंदर से ऐसी बात रहती है कि मैं लड़कियों को फ्लर्ट नहीं

कर पाता।

मैं सोचता हूं कि जिस से भी मेरा रिश्ता जुड़े, वह सच्चे दिल का हो ......वह मेरी बातों को समझें..... आई मीन बिन कहे मेरी बातों को समझ जाए ...... ऐसा हो कि उसके संबंधों में कोई स्वार्थ ना हो.......

अरे यह तू कौन से जमाने की बात कर रहा है? आजकल ऐसा है कहां ?? सौम्य उसकी बात को काट कर बोला। छोटी सी जिंदगी होती है उसे जी भर कर जीना चाहिए। हर पल बस बेफिक्री का हो.... है ही क्या जिंदगी में? आज है कल ऊपर चले जाना है!!... उसके लिए इतना दिमाग पर बोझ क्या लेना ? सौम्य ने अपनी फिलासफी झाड़ी।

"वह बिल्कुल ऐसा ही हो जैसा मैं सोचा करता हूं. खूबसूरत हो ..... बिल्कुल मेरी कविताओं की तरह...... मेरी शायरी की तरह.......

बस तब तो हो गया तेरा इश्क और मिल गया तुझे तेरा महबूब !! तू सारी जिंदगी हवाई किले बनाने में ही गुजारेगा!!

"कुछ भी हो यार !! चाहे तू हंसे ... लेकिन मैं सच बता रहा हूं कि मुझे अभी तक भी ऐसे ही साथी की तलाश है । मुझे समझ में नहीं आता...

मैं क्या चाहता हूं...... मैं किसे ढूंढता हूं ...... क्या वो इस वर्ल्ड में मिलेगी भी..जिसे मैं सपनों में देखता हूं... सोचता हूं.... वैसी ही इमेजिन वर्ल्ड की परी हो ।

वही रहेगी मेरे दिल में !! वही चलेगी मेरे साथ,

बस यार इसी वजह से आज तक मैं अकेला हूं !! मेरी फितरत ऐसी नहीं है कि लड़कियों से खेलो और फिर उन्हें छोड़कर दूसरे की तलाश में चल दो।

एकाएक कई रंग समय के चेहरे पर आए और गुजर गए जिन्हें कौशिक ने

नहीं देखा ।

"आओ अब चलें। अब तो बहुत देर हो गई है। " सौम्य ने अनमने ढंग से कहा।

"चलो!!कौशिक अनिच्छा से बोला। जैसे ही उसने उठने का उपक्रम किया उसे हल्की सी कराहने की आवाज सुनाई दी। उसने चौंककर सौम्य की ओर देखा:-" क्या तुम्हें यह आवाज सुनाई दी है?"

सौम्य भी इधर- उधर देख रहा था !!

हाँ कौशिक!! लगा तो ऐसा ही था कि जैसे कोई कराह रहा है।

अबकी बार स्पष्ट स्वर में सुनाई दिया:- " मुझे बचा लो!! मुझे बचाओ.... पानी .... पानी .....

दोनों बहुत जोर से चौंके:- यार कुछ चक्कर तो नहीं है? सौम्य डरते हुए बोला... यहां किसी इंसानी छाया तक का नाम नहीं है.... ऐसे में आवाज कहाँ से आ रही है?कहीं भूत-ऊत तो नहीं है ?... यार कौशिक निकल लो यहाँ से!!!"

" कैसी बात करते हो इंसान हो या जानवर !! कुछ दिमाग का इस्तेमाल भी कर लो!!! कोई भूत-प्रेत होता तो हम अब तक यहाँ आराम से नहीं बैठे होते!! अब तक वह हमें चबा चुका होता!! कौशिक के स्वर में झुंझलाहट थी

अरे हाँ!! इस बात पर तो मैंने ध्यान ही नहीं दिया पर नाराज क्यों होता है यार?? चल देखते हैं !! आगे आगे तू पीछे-पीछे मैं !! शाम का झुटपुटा उतर आया था।

Chapter - 1

दोनों ने सुना इस बार आवाज बहुत स्पष्ट थी... जो किसी लड़की की थी । "मुझे निकालो !!! मुझे बचा लो !!! पानी पानी!!!!

इतनी दर्द भरी आवाज थी कि दोनों अब उस करुण पुकार को नजरअंदाज नहीं कर सके.... लेकिन सौम्य उस आवाज से और भी डर गया। बोला:-" माना कोई जरुरतमंद है लेकिन मुझे तो वह कोई चुड़ैल लगती है!! वह नीचे नहीं गया .... वह वहीं रुक गया और कौशिक से बोला:-" जाओ !! तुम ही इस लड़की को बचाने का पुनीत कार्य करके आओ!!"

कौशिक सौम्य के डर को लक्ष्य कर मुस्कुराने लगा और उसे तैश दिलाने के लिए बोला :- 'यार! कायर डरते हैं जिनकी आत्मा कमजोर होती है.... जिन्होंने कोई पाप किया होता है। मैंने कोई पाप किया है क्या? यह देखो अभी गया अभी आया।" कहकर वह दूने जोश से पहाड़ी की ढलान उतरने लगा।, उस आवाज का अनुसरण करते हुए उस ओर बढ़ा।

उसे आश्चर्य हो रहा था कि लड़की यहाँ कैसे आ गई? इस शांत, बियाबान जगह में वो क्या कर रही थी?

नीचे जाकर उसने देखा कि एक उभरी हुई जगह,,,,पत्तों के ढेर से आवाज आ रही है।

मेरा दम घुट रहा है। मुझे निकालो ..... कौशिक ने उस जगह से सूखे पत्ते से हटाने शुरू किए। उन पत्थरों से उसे एक लड़की का हाथ दिखाई दिया। उसने जल्दी से मिट्टी, पत्थर और पत्तों को उठाया तो पहले लड़की का सिर दिखाई दिया फिर पूरी लड़की बरामद हुई।

लाल रँग की सितारों से झिलमिलाती साड़ी पहने हुई थी। जो मिट्टी में सनकर ., धूल गर्द में अँटकर बदरँग हो गई थी।

कौशिक को जैसे झटका लगा। उसकी कल्पना साकार हो गई थी। उसकी इमेजिन वर्ल्ड की परी,,, उसके सामने थी । ऐसी ही लड़की के बारे में तो वह

सोचता था।

वही शक्ल .. वही सूरत...लड़की बहुत खूबसूरत थी।कौशिक उसको देखता ही रह गया.... फिर उसे होश आया कि वह लड़की उसके बारे में क्या सोचेगी।

उस लड़की के चेहरे और पूरे शरीर पर चोट थी... जगह जगह से खून बह रहा था। कौशिक को उस पर बहुत तरस आ रहा था।

अपनी सी लग रही थी वह.... सच बात तो यह थी कि वह उसकी खूबसूरती के जादू की गिरफ्त में आ गया था। उसकी लाल साड़ी को देखकर लगता था कि वह शादीशुदा है ..पर और कोई चिन्ह जैसे:-"सिंदूर, बिछिया मंगलसूत्र उसके शरीर पर नहीं थे।

कौशिक ने उसे पानी मिलाया गट-गट करके वह पूरी बोतल का पानी पी गई। अब उसने अपनी आँखें ढंग से खोलीं। वह बड़ी कोशिश करके धीरे-धीरे खड़ी हुई और धूल झाड़ने लगी।

कौशिक ने उससे एक साथ कई सवाल दाग दिए:-"आप कौन हैं और यहाँ कैसे फँसीं? क्या आपको किसी ने चोट पहुँचाई है या कोई दुर्घटना हुई है?"

अरे रुकिये.... रुकिये.... वह हँसी ।

उसकी हँसी भी भुवन मोहिनी थी । दिल के तार झनक उठे। धूल, चोट के निशान, खून लगा होने पर भी जो चेहरा हँसता हुआ.. कीचड़ में कमल की तरह सुंदर लगता है ....वह स्वस्थ होने पर और शृंगार करने पर कितना सुंदर होगा? वह उसकी सुंदरता पर हैरान था या कोई और बात थी जो वह उसकी गिरफ्त में जकड़ रहा था!!! कुछ ऐसा था उस लड़की में !!

"कहाँ खो गए?

मैं यहाँ घूमने आई थी। अकेले ही घूमने निकल जाती हूँ। मुझे प्रकृति के नजारे देखना बहुत अच्छा लगता है। अब वह लड़की कौशिक को बता रही थी:- मैं वहाँ पहाड़ी पर खड़ी खड़ी अपनी सेल्फी ले रही थी.. तभी अचानक आँधी आई और उस आँधी में मैं अपना संतुलन कायम नहीं रख पाई और लुढ़कती हुई यहाँ आकर गिरी।

ऊपर से लुढ़कते हुए पत्थर आकर गिरे। उन पत्थरों ने और पत्तों ने मुझे ढक लिया। मैं तो तुरंत ही बेहोश हो गई थी। पता नहीं कब तक बेहोश रही... जब होश आया तो मैंने मदद के लिए पुकारा और आप चले आए। इतना कहकर उसने जो कृतज्ञ नजर कौशिक पर डाली तो कौशिक निहाल हो गया।

' चलिए आपको आपके घर पहुँचा दूँ। आप घायल हैं अकेले नहीं जापाएँगी।

" मेरा घर ? उसकी बड़ी बड़ी आँखों में उदासी तैर आई। मेरा घर कोई नहीं है? अनाथ हूँ। अनाथ आश्रम में पली बढ़ी हूँ.... और फिर मैं एक स्कूल में पढ़ाने लगी थी मैं एक बार बीमार हो गई इसकी वजह से कई दिन तक स्कूल नहीं जा पाई और तब स्कूल से मुझे निकाल

दिया गया।

मैं अलग कमरा लेकर रहती थी। किराया नहीं दे पाई... तो उसने भी मुझे निकाल दिया। मुझ अकेली लड़की पर उसकी नीयत ही खराब थीइसीलिए मैंने उसका घर छोड़ने में ही भलाई समझी। आप मुझे अपने यहाँ ले चलिए। आपका काम कर दिया करूँगी। खाना,झाड़ू पोछा सब करूँगी ।


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