आत्म विश्वास
आत्म विश्वास
कमला के मन में विचारों का सैलाब उमड़ रहा था। वह आज सुबह गिरिजा और पार्वती की बातें सुनी थी और उसी के बारे में चिंता कर रही थी। बेटी सीता को यह पता चल गया। वह सुबह से देख रही थी कि उसकी मॉं प्रति दिन की जैसी नहीं है। वह मॉं से कारण पूछी, लेकिन वह बात टालते हुए चली गयी। आखिर शाम को सीता से नहीं रहा गया तो मॉं से बोली ‘मॉं, मैं जानती हूँ, तुम क्या सोच रही हो। आज सुबह जब गिरिजा मौसी और पार्वती मौसी बात कर रहीं थीं तो मैंने भी सुना। मॉं, तुम चिंता मत करो, कृपया मुझ पर भरोसा रखो, मैं वैसी लड़की नहीं हूँ जो पढ़ाई को छोड़कर अन्य विषयों में मन लगाऊँ। मॉं मैं लीला की तरह शहर जाकर किसी के साथ भाग नहीं जाऊँगी, मॉं कृपया ऐसे बेकार की बातों में मत पड़ो, मुझे पढ़ने के लिए शहर भेजो मॉं, अच्छी तरह से पढ़कर आई ए एस बनना मेरा मकसद है, मैं वचन देती हूँ कभी भी इसके अलावा मैं और कुछ नहीं सोचूँगी, मैं आपके पॉंव पड़ती हूँ ।‘ वह बिलखते हुए रो पड़ी। ये सब देखकर कमला का मन द्रवित हुआ। उसने बेटी सीता को बॉंहों में लिया और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘सीता, मैं जानती हूँ, मेरी बेटी ऐसी नहीं है, उसको पढ़ाई के अलावा और किसी में भी मन नहीं लगता है, पर जब ऐसी बातें सुनती हूँ तो मन में कुछ डर पैदा होता है, क्योंकि आज तक मैं शहर नहीं देखी हूँ, न ही वहॉं के लोगों को जानती हूँ । लेकिन लोगों के मुँह से इतना ही सुना है कि शहर में गॉंवों के लोगों का मज़ाक उड़ाया जाता है। उन्हें छेड़ा जाता है और उनका जीना मुश्किल कर देते हैं। इसलिए मुझे तुम्हें शहर भेजने में चिंता हो रही है। फिर भी ठीक है, जब तुम इतना ठान लिया है तो मैं तुम्हें शहर के कॉलेज में प्रवेश दिला दूंगी, देखें आगे भगवान के मन में क्या है। तुम चिंता मत करो और शहर जाने की तैयारी करो। ‘ कमला और सीता दोनों शहर जाने के लिए बस स्टैंड आयीं तो वहॉं गिरिजा और पार्वती भी थीं और इन दोनों को देखकर ताना कसने लगे। लेकिन कमला और सीता इन बातों पर ध्यान दिये बिना बस में चढ़ते हुए शहर निकल गयीं ।
कमला और सीता शहर में कॉलेज पहुंचीं। कमला ने देखा कॉलेज के परिसर में लड़के और लड़कियॉं एक दूसरे के साथ जोर जोर से हँसते हुए बातें कर रहे थें। इन्हें मालूम नहीं हुआ कि कॉलेज में दाखिला करवाने के लिए कहॉं जाना है। अत: कमला ने एक लड़के से इस बारे में पूछा तो उसने बोला, ‘व्हॉट ? बेटा ? आय एम नॉट बॉय, आय डोंट नो हिन्दी, टॉक इन इंग्लिश।‘ यह सुनकर कमला एकदम घबरा गयी, उसे मालूम नहीं हुआ कि वह क्या बोल रहा (रही) है। उसने बेटी सीता से पूछा तो बोली कि ‘मॉं वह लड़का नहीं, लड़की है, उसे हिन्दी नहीं आती। ‘ कमला को हँसी आयी और बोली कि ‘शहर में तो कौन लड़का, कौन लड़की पता ही नहीं चलता, लेकिन जब उसे हिन्दी मालूम नहीं, तो मैंने क्या पूछा यह उसे कैसे मालूम हुआ और उसने कैसे उत्तर दिया ?’ इस पर सीता उसे चुप कराते हुए खुद प्रिंसिपल के रूम ले गयी। वहॉं उसका कॉलेज में दाखिला हुआ और जब दोनों बाहर आयें तो लड़के और लड़कियॉं सीता को छेड़ने लगे, उसके कपड़े के बारे में, उसके कंगन, बिंदी आदि पर कमेंट करते हुए उसकी चोली को खींचने लगे। सीता और कमला वहाँ से थोड़ी दूर भाग गये। ये सब देखकर कमला को आतंक हुआ, फिर भी बेटी को धीरज बांधते हुए कहा ‘बेटी, तुम धीरज रखो, इन सबसे विचलित मत होना, जब तक हम इनके सामने धैर्य से खड़े रहते हैं, हमें कोई कुछ नहीं कर सकता, यदि हम इनके सामने डरकर रोने लगेंगे तो ये लोग और ज्यादा हमें तंग करने लगते हैं, हमें देखकर हँसने वालों के सामने हमें भी हँसते हुए खड़े रहना है, तभी हम अपनी जिंदगी खड़ा कर सकते हैं। मुझे ही देखो, जब तेरे पिता मर गये, तब यदि मैं डरकर कुऍं में कूद जाती तो क्या आज तुम जिंदा रहती, नहीं न, इसलिए केवल तुम्हारे लक्ष्य पर अपना ध्यान केन्द्रित करो और खूब पढ़कर आई ए एस करने का तुम्हारा मकसद जो है, उसे पूरा कर लेना। मुझे अपनी बेटी पर पूरा विश्वास है। तुम खूब पढ़कर मेरा और अपने गॉंव का नाम रोशन करेगी। अब मैं चलती हूँ ‘ कहते हुए उसे हॉस्टल छोड़कर चली गयी।
कुछ दिन सीता को कॉलेज और हॉस्टल दोनों जगह लड़के और लड़कियॉं बहुत तंग कर रहे थे। लेकिन सीता इन बातों पर ध्यान दिये बिना हर समय अपनी पढ़ाई में लगी रहती थी। इतने में कॉलेज में पहला टेस्ट समाप्त हुआ। उनके लेक्चरर एक दिन सभी का मार्क्स लेकर आये और एक एक करके सभी का मार्क्स बोलने लगे। क्लास के कोई भी विद्यार्थी उत्तीर्ण नहीं हुआ था। इतने में लड़के और लड़कियों में धीरे धीरे आपस में बातें होनी लगी, इसका सारांश यह था कि जब हम ही उत्तीर्ण नहीं हुए तो सीता, बेचारी ज़ीरो ही पायी होगी। इसे सुनकर लेक्चरर गुस्सा हो गये ओर बोले कि ‘शटप, तुम लोगों को शर्म होना चाहिए, तुम लोगों के पास मोबाइल, कैलकुलेटर, कम्प्यूटर जेसे आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक गैडजेट्स होने पर भी तुम में से कोई पास नहीं हो पायें, लेकिन सीता के पास कुछ नहीं होने पर भी वह सभी विषयों में शत प्रतिशत अंक पायी है। उसे देखकर तुम सबको सीखना है, पढ़ाई कैसे करें। सीता, हमें तुम पर गर्व है, आज भारत को तुम्हारी जैसी युवा लोगों की ज़रूरत है। यह सुनकर सबके सब अचंभित रह गये।
अब लड़के और लड़कियॉं यह जानना चाहती थीं कि सीता ऐसे कमाल कैसे की, तो उन्होंने इसके बारे में पूछा। सीता बोलने लगीं कि ‘दोस्तों, आधुनिक पैंट, शर्ट, बर्मुडा आदि पहनकर लड़के और लड़कियॉं एक साथ पार्टी करना, डेटिंग करने से कोई नेम व फेम नहीं मिलता है। लड़कियॉं पैंट, शर्ट पहनकर जोर जोर से हँसते हुए बातें करने से, लड़कों के साथ डेटिंग करने से यह समझते हैं कि हम लड़कों के बराबर हो गये हैं, लेकिन यह गलत है। औरत तो प्राकृतिक रूप से ही मर्दों से ऊपर है, हमारी संस्कृति में नारी को इतना सम्मान दिया गया है कि जहॉं नारी की पूजा होती है, वहॉं देवता निवास करते हैं, ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, तत्र रमंते देवता:’, वेदों में इसका उल्लेख है। लेकिन हम इसे समझे बिना मर्दों के बराबर स्थान के लिए चिल्लाते हैं, जब हम उनसे ऊपर है, तो इसकी ज़रूरत ही क्या है, हमें खुद अपना स्थान, सम्मान जानकर उचित व्यवहार करना है।
आगे जाकर वह बोली, ‘रही बात आधुनिक कपड़ों की, पारंपरिक कपड़े पहनकर भी हम बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं। आप तो स्कूल में हमारी वीर नारियों के बारे में पढ़ा ही होगा। कित्तूर रानी चेन्नम्मा, झांसी रानी लक्ष्मी बाई, रानी अब्बक्का आदि वीर नारियॉं साड़ी पहनकर युद्ध किये, घुड़ सवारी भी कीं। इतिहास के पन्नों को छोड़ो, आधुनिक युग में भी जैसे मदर टेरेसा, जो विदेशी महिला होते हुए भी भारत का पहनावा साड़ी पहनकर भारतीयों की सेवा कीं, हमारे भारत की पहली महिला प्रधान मंत्री, श्रीमती इंदिरा गांधी को ही लेना, वो भी साड़ी पहनकर पूरे देश पर राज किया और पूरे विश्व में फेमस बनीं। क्या आप इन महिलाओं को अपनी हीरोइन नहीं मानतीं हैं ? आज भी बहुत सारी प्रसिद्ध विमेन एन्टरप्रीनियर और सेलिब्रिटीस हमारे पारंपरिक पहनावा पहनती हैं। ऐसा नहीं कि लड़कियों को पैंट, शर्ट नहीं पहनना है, लेकिन ऐसे कपड़े केवल अनिवार्य होने पर ही पहना जाएं तो अच्छा है, क्योंकि लड़कियॉं यद्यपि इन कपडों में भी अच्छी लगती हैं, हमारी पारंपरिक कपड़ों में तो और सुंदर और अच्छी लगती हैं और देखनेवालों के मन में गौरव की भावना भी उत्पन्न होती है। ‘ सीता की सहेलियॉं मंत्र मुग्ध होकर सुन रही थीं।
इतने में एक सहेली पूछी, ‘सीता तुम रोज अपने माथे पर बिंदी लगाती हो, हाथों में कंगन पहनती हो, क्या ये सब तुम्हें इरिटेट नहीं करते हैं ? सीता बोली ‘अच्छा, चलो, जब तुमने पूछ लिया तो आज मैं इन सबके महत्व के बारे में बताती हूँ । माथे पर बिंदी हमारे ध्यान का केन्द्र है, इसे लगाने से हमारी मेमोरी पॉंवर को हम बढ़ा सकते हैं। यह हमारे दोनों ऑंखों के बीच जो प्रेशर डालती है, इससे हमारे भ्रू मध्य स्थित आज्ञा चक्र एक्टिव होता है। इसी तरह कंगन जो है, इसकी राउंड शेप से हमारे शरीर में उत्पन्न ऊर्जा बाहर न जाते हुए वापस हमारे शरीर में पहुँचने में मदद मिलती है। हमारे शरीर के एक एक अंग आक्युप्रेशर के प्वाइंट्स होते हैं। इन आक्युप्रेशर के प्वाइंट्स पर जब प्रेशर पड़ता है हमारे शरीर में रक्त संचार सुललित रूप से होता है और हमारा शरीर निरोगी होने में सहायता मिलती है। इसलिए हमारी संस्कृति में बिंदी, कंगन, पायल, एंक्लेट्स, इयर रिंग्स, अंगूठी, कमर बंध आदि गहनों का अपना अपना महत्व है। ‘ इस तरह सीता आसानी से अंग्रेजी में अच्छा विवरण देती गयी।
सीता की सहेलियॉं ये सब सुनकर आश्चर्य से उसका मुँह ताक रहे थे। एक सहेली ने पूछा ‘सीता, तुम आज तक हमारे साथ कभी इंग्लिश में नहीं बोली है, आज अचानक इतनी आसानी से तुम कैसे इंग्लिश में बात कर रही हो ? सीता हॅंसते हुए बोली ‘फ्रेंड्स, मैं इंग्लिश में बात नहीं करती थी तो इसका मतलब यह नहीं कि मैं इंग्लिश नहीं जानती हूँ। मुझे अच्छी तरह से इंग्लिश आती है। लेकिन हमें इंग्लिश में बात करने की ज़रूरत क्या है ? यह मत समझो कि मैं इंग्लिश के विरुद्ध हूँ। मैं किसी भी भाषा के विरुद्ध नहीं हूँ। सभी भाषाऍं हमारे ज्ञान को बढ़ाने में सहायता देतीं हैं, इंग्लिश भी इसी तरह है। लेकिन जब हमारे पास अपनी मातृभाषा है, तो हमें इंग्लिश में बात करने की क्या ज़रूरत है जब हमें कुछ चोट लगता है तो हम अम्मा करके पुकारते हैं, न कि मम्मी या मॉम, तो जो भाषा हमें अपनी मॉं ने पहले पहल सिखाया उसे छोड़कर, लगभग 200 सालों तक हमें अपने गुलाम बनाकर हम पर राज किये, उनकी भाषा को इतना बढ़ावा देने की क्या ज़रूरत है ? यह हमारी बौद्धिक दिवालीपन दर्शाता है। जब हम ऐसे झूठे ठाट बाट को छोड़कर सीधा सादा रहते हुए हम अपने बुद्धि को अच्छे कामों में लगाते हैं, उच्च विचार सोचते हैं, तो ऊँचे लक्ष्य हासिल कर सकते हैं। मेरा विचार तो यही है।
एक सहेली ने पूछा ‘सीता सच कहे तो आज तुम हमारी ऑंखें खोल दी। लेकिन ये सब तुम्हें कैसे पता, इतना ज्ञान, इतना धैर्य तुम कहॉं से प्राप्त की ?‘ सीता बोली ‘ये सब मेरी मॉं का देन है। वह मुझे बचपन से अपनी संस्कृति के बारे में शिक्षा देती थी। यद्यपि वह पढ़ी लिखी नहीं है, अपनी संस्कृति और अपनी परंपरा के बारे में उसे अच्छा ज्ञान है। जब कभी मैं आप लोगों के छेड़ने से दुखी होती थी, उसकी बातें मेरे अंदर धैर्य भरता था। वह मुझमें आत्म विश्वास भरती थी और मुझे अपने लक्ष्य की ओर ध्यान लगाने के लिए प्रेरित करती थी। यदि सबको ऐसी मॉं मिले, जो लड़कियों में आत्म विश्वास भरें और लड़कों को लड़कियों के साथ अच्छा व्यवहार करना सिखाएं, तो हमारे देश में जो इतने अत्याचार और भ्रष्टाचार हो रहे हैं, सब अंत हो जाएगा और हमारा देश उन्नति की ओर बढ़ेगा। ‘
इन सबसे प्रभावित होकर सब लड़के और लड़कियॉं आगे अपना समय व्यर्थ किये बिना अच्छी तरह पढ़ाई करने और ऊँचा लक्ष्य हासिल करने का शपथ लिये और सीता को धन्यवाद दिये।