आशिकी के राजा हम और समाज
आशिकी के राजा हम और समाज
बात तब की जब में 9 क्लास में नाम लिखवाने गया था नाम तो लिख गया। मैं क्लास भी करने लगा हमारे एक सर थे जो बात करने पर मारते थे, मुझे तो पता नहीं था मैं ही आगे की बेंच पर बैठा था। उन्होंने पूछा की बात कौन - कौन कर रहा है, मैने बोला की सर मैं कर रहा हूँ वो कूट दिए। मेरे साथ पीछे बैठे सभी लड़कों को पेल दिए। क्लास ख़तम हो गया दूसरे दिन फिर क्लास गया। सर पढ़ा रहे थे तभी एक लड़की आई और उसने अपने बेंच पर बैठी लड़की को हटा दिया। सर बोले की तुम्हारा नाम लिखा है क्या? उसने बोला हाँ हाँ मेरा नाम लिखा है, मैं तो उसे देखने लगा मुझे गुस्सा आ रहा था की कैसी लड़की है आते ही झगड़ा करने लगी। वो मरे सामने वाली बेंच पर बैठ गयी। वो थोड़ा मुस्कराई मुझे लगा की मुझे देखकर मुस्कराई मैं भी खुश। मैं उसे रोज देखने लगा वो मुझे अच्छी लगने लगी। मेरे दोस्तों को भी पता चल गया था की मैं उसी को देखता हूँ । तो मैने अपने दोस्त को बोल दिया की में देखता हूँ। मैं सुबह ही चला जाता था स्कूल और उसके आने का इंतजार करता था। वो आती मैं खुश हो जाता था फिर पूरी घंटी देखता था उसे भी पता था की मैं उसे देख रहा हूँ पर कुछ बोलती नहीं थी। उसकी हँसी मुझे बहुत अच्छी लगती थी, सही कहूँ तो मैं उसकी हँसी पर फ़िदा था। कभी सूट सलवार में आती तो जहर लगती थी। क्योंकि मुझे सूट बहुत पसंद है और मैं उस दिन कुछ ज्यादा ही प्यार से देखता था उसे। अब उसकी सहेलियों को पता चल गया था की मैं उसे देखता हूँ बात बढ़ने लगी धीरे धीरे मैं उसकी सहेलियों से भी बात करने लगा, लेकिन उससे बात करने में दर लगता था क्या करें मैं ऐसा ही था। उससे बात करने में फटती थी इसी तरह पूरा साल बीत गया और उससे बात भी नहीं कर पाया। १० का बोर्ड एग्जाम की तैयारी चल रही थी मैंने भी सोचा था की अब १० में तीर मारनी है 90% लाना है।
मैं कुछ किताब ख़रीदा था पढ़ने के लिए क्योंकि पूरे साल आशिकी ही किया था तो मैं किताब पर नाम और नम्बर लिख दिया। मुझे पता था की उसकी दोस्त ज़रुर मांगेगी किताब। मैं स्कूल गया मैं जानबूझ कर किताब को उसके दोस्त को दिखा रहा था। वैसा ही हुआ जैसा मैने सोचा था, उसकी दोस्त ने किताब मांग ही लिया, लेकिन मुझे पता नहीं था की अब क्या होने वाला है। उसने मेरी बुक मुझे वापस दे दिया। कुछ दिन बीते अब स्कूल में विदाई समारोह आ गया। अब हम स्कूल से निकल गए थे। तीन दिन बाद फ़ोन आया मेरे नंबर पर मुझे पता था की ये नंबर किसका है क्योंकि मैने उसके दोस्त से पहले से उसका नंबर ले रखा था।
फोन आया तो ठीक लेकिन किया किसने अब तो डर और फट भी रहा था कौन होगा। ऐसे तैसे मैने कॉल रिसीव की, उधर से लड़की की आवाज़ आई तो जान में जान आई। उसने बोला कौन, मैने पूछा की तुम कौन मुझे पता था की वही है उसकी आवाज़ से लगा, पर मैने भी देखा बोलती क्या है। पहले तो उसने मुझे कहा की तुम मुझे क्यों देखते हो? मैने कहा मुझे पता नहीं, उसने कहा मत देखा करो मुझे, मैने कहा ठीक नहीं देखूंगा। पर ये बताओ नंबर कहाँ से मिला मेरा। उसने बोला तुम्हारी बुक से, मैने बोला पहले ही मना कर दिया होता। उसने बोला की मैं ये नहीं कह रही की मुझे मत देखा करो, जब मेरे दोस्त मेरे साथ न हो तब देख लिया करो। मैने कहा की अब देखने से काम नहीं चलेगा। मैं भी फोन कर सकता हूँ, तो उसने बोला नहीं दिल ही टूटने वाला था की उसने कहा की मिस कॉल दूंगी तब फ़ोन करना। मैने पूछा क्यों? तो वो बोली ये मेरा नंबर नहीं है घर का है। मैने कहा ठीक है अब वो फोन करती तो उसे फ़ोन करता था, हम दोनों रात को बहुत बात करने लगे। इस तरह से रात दिन बातें होने लगी, अब मेरी जिन्दगी झंड हो गयी आशिकी के चक्कर में।