आकृति
आकृति
आज भी उसको ज्यादा पैसे नहीं बने थे। शंकर बाजारों और गलियों में प्लास्टिक आदि बीनता था।जब वह घर आया तो उसकी पत्नी ने पूछा," क्या लेकर आए हो"?
दबे से सुर में वह बोला," कुछ खास नहीं "।
इतने में छः वर्षीय राघव दौड़ा हुआ आया और बोला," मां,भूख लगी है।खाना दो।"
मां का दिल कचोट सा गया।शंकर बोला कि आज हम भोजन नहीं करेंगे। चाय बना लो, बिस्कुट के साथ। तीनों जन चाय पीकर छत पर सोने के लिए चले गये। चारपाई पर लेटे शंकर ने माहौल को दिशा देते हुए कहा," राघव! वो चांद कितना प्यारा है। अच्छा लगता है ना!"
राघव ने कड़कती आवाज़ में कहा," हूं,गोल-गोल है। बिल्कुल रोटी की तरह"।
मां चुप रही।इतने में आसमान में बादल की एक टुकड़ी ने चांद को ढक लिया।