Alka Srivastava

Drama Romance Tragedy

4.3  

Alka Srivastava

Drama Romance Tragedy

आकाश

आकाश

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खनाक की एक आवाज के साथ मुझे अपने अंदर कुछ टूटता हुआ महसूस हुआ। बुरी तरह चौंककर उठ बैठी मैं। तभी मुझे अपने चेहरे पर जलन का एहसास हुआ। ऐसा लगा जैसे मेरे चेहरे पर किसी ने तेजाब डाल दिया हो। घबराहट से मेरी चीख निकल गयी।

मैं सीधे वाॅशरूम की तरफ भागी और जाकर शाॅवर के नीचे खड़ी हो गयी। मैं दोनों हाथों से अपना चेहरा रगड़ रही थी, लेकिन चेहरे की जलन नहीं मिट रही थी। हालाँकि चेहरे पर ऐसा कुछ महसूस नहीं हो रहा था कि तेजाब से वह जला है, लेकिन जलन का एहसास बहुत पीड़ा दे रहा था। शाॅवर से परे हटकर मैंने शीशे में अपना चेहरा देखा। आश्चर्य ! चेहरे पर कुछ भी नहीं था। फिर मुझे जलन का एहसास क्यों हुआ था ? और मेरे अंदर क्या टूटा था जिसकी चुभन भी मुझे अपने सीने में साफ महसूस हुई थी।

घबराहट में मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था। ऊपर से तो कुछ नहीं था लेकिन मेरे अंदर एक तूफान सा मचा हुआ था। कहीं कुछ तो था जो मेरे साथ गलत होने वाला था। मैं कमरे में आकर एक बार फिर बिस्तर पर लेट गयी। थोड़ी देर मैं आँखें बंद किए लेटी रही, लेकिन दिमागी उलझन मेरा पीछा नहीं छोड़ रही थी। थोड़ी देर में मैं उठी और उठकर खिड़की खोल दी।

बाहर बारिश हो रही थी। खिड़की खोलते ही ठंडी हवा का झोंका मेरे चेहरे से टकराया। अच्छा लगा मुझे। कुछ तो चेहरे की जलन का एहसास कम हुआ। तभी कुछ बूंदे मेरे चेहरे पर पड़ीं। मैंने दोनों हाथ खिड़की की ग्रिल से बाहर कर दिए। बारिश की बूंदें मेरी हथेली पर पड़तीं और हथेली से टकराकर नीचे सड़क पर गिरकर अपना दम तोड़ देतीं। मेरी हथेली पर कितनी खूबसूरत लग रही थीं वो बूंदें, एकदम गोल छोटी मोतियों जैसी। लेकिन जब वो नीचे सड़क से टकरातीं तो सड़क पर पानी बनकर बह जातीं अपना अस्तित्व खो देतीं।

तभी मेरी नज़र नीचे सड़क पर जा रहे एक युगल जोड़े पर पड़ी। एक ही छतरी में दोनों खुद को बारिश से बचाने का असफल प्रयास कर रहे थे। हाँ असफल प्रयास..असफल इसलिए क्योंकि वो छोटी सी छतरी उन दोनों को अपने भीतर समाहित कर लेने के लिए नाकाफ़ी थी। वैसे उनको देखकर कोई भी आसानी से अंदाजा लगा सकता था कि वो बारिश में भीग जाना चाहते हैं। एक दूसरे का हाथ थामें दुनियाँ से बेखबर वो अभी कुछ कदम ही आगे बढ़े होंगे कि बादल गरजने की तेज आवाज़ सुनकर लड़की, लड़के से तेजी से लिपट गयी। उसके हाथ से छतरी छूट गयी। दोनों एक-दूसरे के चेहरे को देख रहे थे उनकी पलकों पर पानी की बूंदें टकरातीं तो वे अपनी पलकें झपका लेते। मेरे चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट थी। मैं मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि कुछ देर के लिए ये पल यहीं रुक जाए और इस पल में वो दोनों अपनी ज़िंदगी जी लें।

मेरे चेहरे की जलन और भीतर चुभती किरचें अब काफी हद तक शान्त थीं। या महसूस नहीं हो रही थीं।

शायद दिमाग भी वो सब सोचना नहीं चाह रहा था जो कुछ देर पहले मैंने महसूस किया था लेकिन क्यों हुआ ऐसा ? ये मेरी समझ से परे था। या इस "क्यों" के बारे में मैं सोच नहीं रही थी।

बारिश बंद हो गयी। मेरे भीतर भी सब कुछ पूरी तरह शान्त था। शायद सपना था वह..लेकिन बहुत डरावना।

मौसम सुहावना हो गया था। भीगी हवा मेरे बालों के साथ अठखेलियां कर रही थीं। मेरे गालों से जब हवा टकराती तो मेरे गाल खिल उठते और मैं मन ही मन मुस्कुरा देती।

ऊपर नीला आसमान पूरी तरह साफ था। इक्का-दुक्का बादल आसमान पर कुछ कुछ आकृति बना रहे थे। मेरे लिए नीले रंग के आसमान पर सफेद बादलों को देखना हमेशा से सुखद रहा है जैसे आकाश का नीले रंग की डैनिम की जीन्स पर सफेद पूरी आस्तीन की टीशर्ट पहनना। वह जब अपनी टीशर्ट की आस्तीन को लापरवाही से कोहनी के कुछ पास तक चढ़ा लेता तो काॅलेज की सभी लड़कियाँ आहें भरकर रह जाती। अच्छा तो वह मुझे भी लगता था लेकिन मैं चुपके-चुपके कनखियों से उसको देखा करती थी।

मैंने आकाश को पहली बार जब काॅलेज में देखा तो देखती रह गयी। गोरा रंग, गोल चेहरा, पतले होठों पर पतली सी मूँछें, घुंघराले बाल, टीशर्ट की आस्तीन के ऊपर से महसूस होतीं उभरी हुई उसकी बाँहों की माँसपेशियाँ..

काॅलेज की हर लड़की उस पर फिदा थी। वह सबसे हँस-हँस कर बातें करता था। कितनी ही लड़कियाँ उसे प्रपोज़ कर चुकी थीं लेकिन, आकाश सबकी बातों को हवा में उड़ा देता। वह अक्सर कहता,

"मुझे किसी बंधन में न बाँधों। मैं तुम सब से दोस्ती तो कर सकता हूँ लेकिन प्यार मोहब्बत ! न बाबा न ! यह मेरे बस का नहीं है।"

काॅलेज की लड़कियाँ तो उससे दोस्ती करके भी खुश थीं।

मैं आकाश को कनखियों से ही देखा करती, उसके पास तक जाने में मुझे घबराहट होती थी। शायद ये मेरी हीन भावना थी जो मुझे उसके पास तक जाने से रोकती थी।

मैं न तो उसके जैसी सुन्दर थी और न हीं उसके जितनी अमीर..बस एक ही दौलत थी मेरे पास, और वो थी मेरी पढ़ाई...

मैं पढ़ने में हमेशा से ही तेज रही थी। बस यही एक कारण था जो मेरी क्लास में लोगों से दोस्ती थी। वरना मुझ जैसी साधारण लड़की के पास भी कोई नहीं आता। धीरे धीरे आकाश की भी मुझसे दोस्ती हो गयी। टेस्ट हो या पेपर वह मेरे नोट्स से ही पढ़ता था। कभी कभी नोट्स समझ न आने पर मुझसे पूछने आ जाता। उसे अपनी तरफ आता देखकर खुशी और घबराहट से मैं काँप जाती। वह क्या पूछता.. मैं क्या बताती.. और वो क्या समझता ? ये मुझे पता ही नहीं होता। उसकी खुशबू से मेरा खुद पर नियंत्रण ही न रहता। कभी-कभी वह मेरे इतना करीब होता कि मुझे अपने अंदर कुछ पिघलता हुआ सा महसूस होता और मैं पिघली हुई बर्फ की तरह बहने लगती।

धीरे-धीरे हमारी दोस्ती को एक साल हो गया। आकाश क्लास में सबसे ज्यादा मुझसे ही बात करता था। इस बात पर मैं मन ही मन इतराती थी लेकिन दूसरी लड़कियों को मुझसे जलन होने लगी थी। सोने पर सुहागा तो तब हुआ जब प्रैक्टिकल में हम दोनों को पार्टनर बना दिया गया।

उस दिन प्रैक्टिकल करते समय आकाश मेरे बहुत करीब आ गया था। उसकी खुशबू से मेरी साँसें तेज हो गयीं और घड़कन बेकाबू। तभी आकाश ने सबकी नजर बचाकर मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया। मेरे पूरे शरीर में अचानक चींटियाँ सी रेंगने लगीं। मैं अपना हाथ उसके हाथ के नीचे से हटाना ही भूल गयी। आकाश धीरे से मुस्कुरा दिया। उस दिन रात भर मैं सो नहीं पाई। पूरी रात मैं आकाश के साथ आसमान में उड़ती रही।

अब अक्सर ही ऐसा होने लगा। आकाश मौका पाते ही जब तब मुझे छू लेता। मुझे उसका छूना बहुत सुखद लगता। उसके छूने से मैं घबरा जाती थी लेकिन मन ही मन वो सब चाहती जो आकाश करना चाहता।

उस दिन हल्की बूँदा-बाँदी हो रही थी। मैं अपनी बाल्कनी में खड़ी थी और आकाश की बातें सोच-सोच कर रोमांचित हो रही थी, तभी घर के सामने से आकाश बाइक से आता दिखा। मैंने कई बार अपनी पलकें झपकाईं.. मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि सामने आकाश है। उसे अपने घर की तरफ आता देखकर मुझे अपनी धड़कन रुकती हुई महसूस हुई। गनीमत ये थी कि उस वक्त घर पर कोई नहीं था। तो क्या आकाश को ये बात पता थी कि मैं घर पर अकेली हूँ ? लेकिन तभी आकाश घर के सामने से निकला और एक कागज की छोटी सी गोली ऊपर बाल्कनी की ओर उछाल दी।

मैं घबराई सी ये सब देख रही थी। हालाँकि ये सब एक मिनट में हो गया लेकिन मैं न जाने कहाँ खोई हुई थी।

आकाश की बाइक दूर जा चुकी थी। मैं जैसे सपने से जागी। मैंने काँपते हाथों से उस कागज की गोली को उठाया और भागकर अपने कमरे में आ गयी। बिस्तर पर बैठकर सबसे पहले मैंने अनियंत्रित हो चली अपनी साँसों को ठीक किया। फिर धड़कते दिल से कागज खोला। कागज पर कुछ लिखा था। मैंने जैसे ही उसे पढ़ा, कागज हाथ से छूट गया। एक बार फिर मेरी सांसें बेकाबू हो गयीं और मेरी धड़कने, वो ऐसी लग रही थीं कि वो मेरे कान में बज रही हों। मैं पलकें झपकाना भूल गयी। तभी मेरी नजर उठी..सामने आकाश खड़ा था मुस्कुराता हुआ। उसे अपने सामने देखकर मैं चौंक गयी। आकाश ने अपनी बाँहें फैला दीं। मैं उसकी बाँहों में समाने को बेताब हो गयी। मैं आगे बढ़ी ही थी कि आकाश गायब हो गया।

"ओह ! तो ये मेरा एक सपना था ? एक खूबसूरत सपना...

मैंने अपना चेहरा दोनों हथेलियों में छिपा लिया। हथेलियों के भीतर मेरे होठ मुस्कुरा रहे थे। मैं कूद कर बिस्तर पर चढ़ गयी और खूब जोर-जोर से उस पर उछलने लगी। ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरे पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहे हैं। "आकाश मुझसे प्यार करता है।" ये सोचकर मैं रोमांचित हो रही थी।

अब तो काॅलेज मे मैं और आकाश साथ-साथ दिखते। लोगों को हमारे प्यार के बारे में पता चल चुका था। लेकिन हमें कहाँ किसी की परवाह थी।

समय धीरे-धीरे खिसक रहा था। मुझे आगे की पढ़ाई के लिए पैसों की जरूरत थी और इसके लिए मुझे नौकरी करनी पड़ी। उधर आकाश भी नौकरी करने लगा था। हालाँकि उसके पापा के पास पैसों की कमी नहीं थी। लेकिन उसने बताया कि वह अपने पैरों पर खड़े होना चाहता है। मैं ये सुनकर बहुत खुश हुई। उसकी सोच पर गर्व भी हुआ। हम ऑफिस के बाद एक-दूसरे से नानाराव पार्क में मिलते थे। मैं दिन भर की सारी बातें चहकते हुए बताती थी। हालाँकि आकाश भी अपने ऑफिस की बातें मुझे बताता था, लेकिन बहुत कम और सधे शब्दों में। काॅलेज के दिनों की अपेक्षा वह कुछ शान्त सा रहने लगा था, शायद नौकरी की जिम्मेदारियों की वजह से।

धीरे-धीरे एक साल बीत गया। एक दिन मेरी फ्रेंड सीलम मेरे घर आई। वह मेरी बेस्ट फ्रेंड थी। मेरे और आकाश के बीच जो कुछ भी था, उसे सब पता था। उस दिन वह कुछ सीरियस थी। आते ही बोली,

"अनवी ! एक बात बताएगी ?"

"कौन सी बात ? सीधे-सीधे पूछो न ? मैं तुझे अपनी हर बात बताती हूँ। कभी कुछ छिपाया हो तो बताओ..

"हम्म..लेकिन जो मैं कहने जा रही हूँ उस पर तेरा भविष्य टिका है ?"

"साफ-साफ बताओ, बात क्या है ?"

"देखो अनवी ! तुम और आकाश जिस सफर को एक साथ तय करने निकल पड़े हो, जानती हो उसकी मंजिल कहाँ है ?"

"मतलब ?"

सीलम टहलती हुई खिड़की के पास आ गयी। उसके बोलने के अंदाज से लग रहा था कि वो कुछ गंभीर है कुछ ऐसा है जो वो मुझसे कहना चाह रही है लेकिन कह नहीं पा रही है। वो एकटक बाहर देखती हुई बोली,

"अनवी ! आकाश और तुम एक-दूसरे को बहुत प्यार करते हो। तो क्या कभी सोचा है कि तुम दोनों की शादी हो जानी चाहिए ? कभी इस विषय में तुमने उससे बात की है ?"

"सीलम ! चाहती तो हूँ मैं भी आकाश से शादी करना, लेकिन अभी तक पूछा नहीं उससे। वैसे मुझे पूरी उम्मीद है वो मुझसे शादी करने के लिए 'ना' नहीं कहेगा।"

"ये लो फोन और पूछो उससे..

"अरे इतनी जल्दी..एकदम से..

"जल्दी ?

एक साल हो गया है आकाश को नौकरी करते हुए। अब वह खुद अपनी जिंदगी का फैसला कर सकता है।"

मैं सोच में डूब गयी। फिर कुछ सोचते हुए मैंने अपना मोबाइल निकाला और आकाश को फोन मिला दिया।

"हेलो अनवी ! इस समय फोन ? सब ठीक तो है न ?"

"आकाश ! तुम मुझसे शादी कब करोगे ?"

"शादी ?"

आकाश मेरे अचानक पूछे इस सवाल से हड़बड़ा गया। इसी हड़बड़ाहट में वह बोला,

"अरे इतनी जल्दी क्या है ? मैंने अभी इस विषय पर अपने घर वालों से बात नहीं की है। जल्दी ही मौका देखकर पापा से बात करता हूँ।"

ये कहकर आकाश ने फोन काट दिया। उसके बाद से आकाश मुझसे बात करने में कतराने लगा। कोई इंसान किसी से बात करने में तभी कतराता है जब वह गलत होता है। ये बात मैं समझ रही थी लेकिन समझते हुए भी नासमझ बन रही थी। मुझे आकाश पर पूरा भरोसा था। एक बार मैंने आकाश से कहा था कि,

"आकाश ! तुम खुद इतने खूबसूरत हो, हैंडसम हो और बहुत अमीर भी हो। फिर भी तुम मुझ जैसी साधारण सी लड़की से प्यार कैसे कर सकते हो ?"

आकाश ने मेरा हाथ अपने हाथों में लिया और मेरे माथे पर अपने प्यार की मोहर लगाते हुए बोला,

"अनवी ! तुम खुद को साधारण न समझो। मैंने तुम्हारी सूरत से नहीं बल्कि तुमसे प्यार किया है।"

ऐसी बातें सुनकर मैं निहाल हो जाती। मुझे खुद पर प्यार आने लगता।

लेकिन मैंने जबसे आकाश से शादी के बारे में कहा था, आकाश मेरे सामने नहीं पड़ता था। मैं फोन करती तो वह किसी न किसी बहाने से फोन काट देता।

मैं बहुत कुछ समझ रही थी लेकिन जब मैं टूटने लगती मुझे बस एक बात याद रहती कि आकाश मुझसे प्यार करता है और सबसे बड़ी बात कि मैं भी आकाश को प्यार करती थी। बेइंतहां प्यार..

आकाश के प्यार की ताकत हमेशा मेरा सहारा बनती और मुझे टूटने से बचाती।

धीरे-धीरे दो-तीन महीने निकल गये। आकाश के व्यवहार से अब मुझे भी घबराहट होने लगी थी। वह मुझसे बहुत कम बात करने लगा था।

उस दिन सुबह से मुझे दो तीन बार अपने चेहरे पर तेजाब की जलन का एहसास हुआ था। मेरी घबराहट बढ़ती जा रही थी। बार-बार लगता था किसी ने मेरे दिल को चूर-चूर कर दिया है। मेरा दिल बैठता जा रहा था। तभी सीलम हड़बड़ाते हुए मेरे कमरे में दाखिल हुई। वह कुछ गम्भीर सी लगी मुझे। सीलम कुछ बोलने जा रही थी लेकिन बोलते बोलते रुक गयी। मैंने आशंकित नजरों से उसकी ओर देखा। वह बोली तो कुछ नहीं बस एक शादी का कार्ड मेरी तरफ बढ़ा दिया। मैंने कार्ड उसके हाथों से लेकर जैसे ही देखा, कार्ड मेरे हाथों से छूटते-छूटते बचा। उस पर लिखा था.."

आकाश_संग_निहारिका

"सीलम ! ये क्या है ?"

मैं पसीने से पूरी तरह भीग गयी थी। मेरा पूरा शरीर काँप रहा था। मैं जो देख रही थी उसे मानने को मेरा दिल कदापि तैयार नहीं था।

"यह आकाश की शादी का कार्ड है। वही आकाश..जिससे तू प्यार करती है। जिसे तू अपना कहा करती है। जो तुझे आज तक भुलावे में रखे था। तू दिल की भोली है तभी आकाश की बातों में आ गयी। उसे तू नहीं, बल्कि एक खूबसूरत और बहुत पैसे वाली लड़की चाहिए थी। हमेशा से मुझे इसी बात का अंदेशा था। लेकिन तू कभी ये सब समझने को तैयार ही नहीं थी।"

सीलम की आँखों से चिंगारी बरस रही थी। उसके चेहरे पर आकाश के लिए नफरत साफ-साफ दिख रही थी। मैं सीलम से लिपट कर रो पड़ी। सीलम भी मुझे गले लगाकर रो रही थी। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। ऐसा लग रहा था कि मेरी सारी दुनियाँ ही उजड़ गयी है।

"सीलम ! अगर मैं भी निहारिका के जैसी सुन्दर और उसके जैसी पैसे वाली होती तो आज इस कार्ड पर निहारिका की जगह शायद मेरा नाम लिखा होता।"

मेरा चेहरा आँसुओं से तर हो गया था। मेरी आवाज ऐसी लग रही थी जैसे किसी गहरे कुएँ से आ रही हो। तभी सीलम ने मुझे खुद से अलग किया और लगभग चीखते हुए बोली,

"अनवी ! तू अभी भी उस धोखेबाज के बारे में सोच रही है ?"

मैं सिर झुकाए थी। सच तो यही था कि मैं आकाश के बारे में ही सोच रही थी और अपनी किस्मत को कोस रही थी।

"सीलम ! हमेशा से अपने रंग रूप को लेकर मेरे अंदर एक हीनभावना थी। मैं भी सुन्दर दिखाना चाहती थी। जब मैं पार्लर से बाहर निकली सजी संवरी लड़कियों को देखती थी तो मेरा मन भी होता था उनके जैसी दिखूँ। लेकिन हर बार मेरी आर्थिक स्थिति आड़े आ जाती थी। मैं अपनी पढ़ाई के लिए पैसे बचाती थी। लेकिन आकाश से मिलने के बाद मेरी हीन भावना धीरे-धीरे खत्म होती गई। आकाश हमेशा मुझसे कहा करता था कि,

"अनवी ! मैंने तुमसे प्यार किया है, तुम्हारे चेहरे से नहीं।"

और ये बातें सुनकर मैं खुद पर गर्व करने लगती थी। काश ! मैं सच में खूबसूरत होती..

"देख अनवी ! खूबसूरती के कई मायने हो सकते हैं और सुन्दरता बाहर से नहीं बल्कि अंदर से होती है। ईश्वर ने तुमको चेहरे की सुन्दरता नहीं दी तो क्या हुआ ? तुम्हारा दिल तो उसने खूबसूरत बनाया है। और रही बात अमीरी-गरीबी की तो तेरे पास पढ़ाई की वो दौलत है जिसका मुकाबला कोई भी नहीं कर सकता। आकाश भी नहीं।"

आकाश का नाम सुनते ही मुझे एक बार फिर रोना आ गया। सीलम की कही एक एक बात सही थी, लेकिन आकाश को लेकर मेरे दिल में जो भावनाएँ थीं, वह अभी भी आकाश को गलत मानने से इंकार कर रहीं थीं।सीलम इस वक्त मेरे टूटे दिल का सहारा थी, लेकिन वह कब तक मेरे साथ रह सकती थी। रात होने वाली थी। वह अगले दिन आने का वादा करके चली गई। उसके जाते ही मैंने दरवाजा बंद कर लिया और फूट फूट कर रो पड़ी। मैं आकाश के साथ बिताए हर खूबसूरत पल को याद करके रो रही थी लेकिन आखिर कब तक रोती ? ये रोना कोई एक दिन का तो था नहीं। जब जब आकाश की याद आएगी मुझे रोना ही था। और याद कैसे न आएगी आकाश मेरा पहला प्यार था और शायद आखिरी भी। लगभग दो घंटे बाद मेरा रोना सिसकियों में बदल चुका था। जब रोना कम हुआ तो मैंने आकाश की तरफ से ध्यान हटा कर खुद पर ध्यान दिया। चेहरे की जलन का अब कोई एहसास नहीं था। क्योंकि जो एहसास मुझे हुआ था वह आने वाले समय की दस्तक मात्र था।

एक बार फिर मैं शीशे के सामने थी। रो-रो कर मेरी आँखें सूज गयी थीं लेकिन चेहरा आँसुओं से पूरी तरह धुल चुका था। मैंने गौर से खुद को देखा..मैं दिखने में इतनी बुरी भी नहीं थी जितना 'आकाश की शादी एक खूबसूरत लड़की से हो रही है' यह सुनकर खुद को समझ रही थी।

मैं शीशे के सामने से हट गयी। मैंने अल्मारी से एक लिफाफा निकाला। जो चार दिन पहले मेरे पास आया था। जिसे लापरवाही से मैंने अलमारी में डाल दिया था।

दरअसल एक साल पहले मैंने और आकाश ने मिलकर जर्मनी में रिसर्च करने के लिए एक इंस्टीट्यूट में एप्लीकेशन भेजी थी। आकाश के नम्बर कम होने की वजह से उसकी एप्लीकेशन रिजेक्ट कर दी गयी थी लेकिन मेरे पास 'हाँ' या 'ना' की कोई सूचना नहीं आई थी। आकाश ने यहीं भारत में रहकर रिसर्च करने की सोची, लेकिन फिर पता नहीं क्या हुआ कि उसने रिसर्च करने का फैसला छोड़कर नौकरी कर ली। नौकरी मैं भी करती थी क्योंकि मुझे रिसर्च करने कहीं बाहर जाने के लिए पैसे चाहिए थे।

चार दिन पहले जर्मनी में रिसर्च करने के लिए वहाँ के एक अच्छे इंस्टीट्यूट से पत्र आया था। जिसमें मेरी एप्लीकेशन स्वीकृति के साथ मुझे फैलोशिप देने की भी बात लिखी थी लेकिन मैं आकाश को छोड़कर कहीं जाना नहीं चाहती थी। मुझे क्या पता था कि जिस आकाश की वजह से मैं अपने उज्ज्वल भविष्य को ठुकरा रही हूँ, वही आकाश आज मुझे ठुकरा देगा..

अगले दिन मैं जर्मनी जाने की तैयारी में जुट गयी। सीलम ने बहुत चाहा कि मैं उसके साथ पार्लर चलकर कम से कम अपने चेहरे को थोड़ा ठीक करा लूँ..लेकिन मैं अपने इसी रूप में दुनिया के सामने आना चाहती थी और वैसे भी अभी तो मुझे खुद को साबित करना था, आकाश को अपनी यादों से परे करके। हालाँकि आकाश को भूलना मेरे बस में नहीं था क्योंकि आकाश मेरा पहला प्यार था और पहले प्यार को भुला पाना आसान कहाँ होता है ?

लेकिन मैं अपने प्यार को अपनी कमजोरी नहीं बल्कि ताकत बना लेना चाहती थी। जो धोखा मैंने खाया था उससे सबक लेना और कुछ सीखना भी तो जरूरी था..

आज मैं जर्मनी जाने के लिए नीले रंग के आसमान में सफेद बादलों के बीच उड़ रही थी। एक आकाश को मैं नीचे धरती पर छोड़ आई थी और दूसरे अंतहीन आकाश के साथ आज मैं अपनी एक नई ज़िंदगी की शुरुआत करने जा रहा थी।


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