Alka Srivastava

Drama

5.0  

Alka Srivastava

Drama

चिड़िया और मैं

चिड़िया और मैं

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सुबह सुबह घर के पीछे दालान से चिड़िया की चीं चीं की आवाज सुनाई पड़ रही थी। मैंने किचन की खिड़की से कई बार झांक कर देखा, लेकिन मुझे एक चिड़िया और चिड़ा के अलावा और कुछ नजर नहीं आया। चिड़ा को मैंने आसानी से पहचान लिया, क्योंकि वह चुपचाप अपनी जगह बैठा था और उधर चिड़िया लगातार चीं चीं करते जा रही थी। एक बार चिड़ा चीं चीं करके कुछ बोला लेकिन.. बाप रे! चिड़िया ने तो और तेज चिल्लाना शुरू कर दिया। चिड़ा ने शायद कहा था,

"ये औरतें कितना चिकचिकम करती हैं"

हाँ शायद यही बात थी, जो चिड़िया को बुरी लग गयी, तभी तो वह चिड़ा के ऊपर नाराज होते जा रही थी। आखिर चिड़ा ने सम्पूर्ण औरत जाति को कैसे कुछ कह दिया? वैसे हो सकता है चिड़ा ने कुछ और ही कहा हो, लेकिन चोर की दाढ़ी में तिनका होता है तभी तो मैंने अपनी सोच को चिड़ा की चीं ची से जोड़ दिया था।

खैर मैं जल्दी जल्दी काम निपटाकर पीछे दालान में यह देखना चाहती थी कि आखिर चिड़िया क्यों इतना चीं चीं कर रही है?

मैं जैसे ही दालान में पंहुची, वैसे ही चिड़ा उड़कर चिड़िया के पास बैठ गया बिल्कुल चिपक कर, शायद अपनी चिड़िया की रक्षा के लिए। मुझे यह देखना बेहद सुकून देने वाला लगा। मैं मुस्कुरा उठी। अब चिड़िया का चीं चीं करना रुक चुका था। तभी चिड़िया को न जाने क्या सूझा, वो चिड़ा से थोड़ा दूर हटकर बैठ गयी। एक पल को मैं कुछ समझी नहीं। लेकिन फिर लगा चिड़िया शायद मेरे सामने इस तरह चिड़ा के साथ चिपककर बैठने में शर्म महसूस कर रही होगी। मैं भी थोड़ा सा शर्माते हुए मुस्कुरा दी। मुझे मन ही मन हंसी आ रही थी। मैं भी न जाने क्या क्या सोच ले रही थी?

चिड़िया ने फिर चीं चीं करना शुरू कर दिया। उसकी आवाज में मुझे दर्द सा लगा। वो शायद मुझसे कुछ कह रही थी। शायद चिड़ा की कोई शिकायत? चिड़ा भी कुछ बोला था।

तभी मेरी नजर चिड़िया पर पड़ी। मैं समझ गयी चिड़िया के अंडे देने का समय आने वाला है। मैंने चारों ओर देखा, मुझे चिड़िया का घोसला कहीं नजर नहीं आया।

अब मुझे सारा माजरा समझ आ गया। चिड़िया को अंडे देना है और अभी तक उनका घोसला नहीं बना। इसीलिए चिड़िया चिड़े पर चिल्ला रही है और चिड़ा उसको आश्वासन दे रहा है कि, "चिंता न करो सब हो जाएगा।"

मुझे काॅलेज जाना था। इसलिए मैं वहाँ ज्यादा देर नहीं रुक सकती थी। फिर भी मैंने अपनी समझ से घोसला बनाने का काफी सारा सामान वहाँ एक कोने में इकट्ठा कर दिया। कुछ चावल के दाने, रोटी के टुकड़े और एक मिट्टी के बर्तन में पानी भी।

काॅलेज में दिनभर मैं चिड़िया और चिड़े की मीठी मीठी नोंक झोंक के बारे में सोचती रही। कभी कभी मेरे मन में एक टीस सी उठती, कुछ मीठी यादें ज़हन में उभरने लगतीं लेकिन मैं उन यादों से जल्दी ही बाहर निकलने की कोशिश करने लगती। आज काॅलेज में मेरा जरा भी मन नहीं लगा।

शाम को घर वापस आते ही, सबसे पहले मैं दालान में आई। चिड़िया की चीं चीं की आवाज अब नहीं आ रही थी। चिड़ा भी कहीं आसपास नहीं था। मैं कुछ निराश होकर घर के भीतर जाने ही वाली थी कि, मैंने देखा दालान के आगे आंगन में नीम के एक छोटे से पेड़ पर चिड़िया और चिड़ा अपना घोसला बनाने में मस्त थे। उनके नीड़ की नींव रखी जा चुकी थी। नए मेहमानों के आने की तैयारी जोरों पर थी।

उसी समय चिड़िया उड़कर दालान में घोसले के लिए तिनका लेने आई, लेकिन चिड़ा तुरंत घोसला बनाने का काम छोड़कर चिड़िया के पास आया और तब तक चीं चीं करता रहा जबतक चिड़िया वापस घोसले के पास नहीं चली गयी। चिड़ा शायद उसको बार बार नीचे तिनका लेने आने को मना कर रहा था। चिड़िया इस समय प्रेगनेन्ट थी और चिड़ा को उसका ख्याल रखना था। एक औरत को हमेशा एक मर्द की जरूरत होती है, जो उसकी देखभाल करे। चिड़ा ऐसा ही लगा मुझे। चिड़िया चिड़े को बड़े प्यार से निहार रही थी।

अब चिड़ा दालान से तिनका उठाकर लाता और चिड़िया को घोसला बनाने के लिए दे देता। दोनों मिलकर प्यार से काम कर रहे थे। एक भारतीय पति पत्नी लग रहे थे वे मुझे।

अगले दिन सुबह घोसला बन कर तैयार हो गया। शाम को चिड़िया ने दो छोटे छोटे अंडे दिए और उनके ऊपर बैठ गयी, पेट से उनको गर्मी देने। तीन चार दिन बाद चिड़िया अपने होने वाले बच्चों से जो अंडे के भीतर थे, बातें भी करने लगी। हाँ जैसे इंसानों की माँ अपने होने वाले बच्चों से पेट में उनसे बातें करती हैं वैसे ये चिड़ियाँ भी अंडे के अंदर अपने बच्चों से बातें करती हैं। इसीलिए चिड़िया अंडे पर बैठी रहती और चिड़ा खाने के लिए दालान तक आता। यहाँ किसी भी समय खाना पानी की कोई कमी मैं न होने देती।

कुछ दिनों में अंडो से दो छोटे बच्चे बाहर आ गये। चिड़ा चिड़िया बहुत खुश थे। झूम झूम कर वो एक डाल से दूसरी डाल पर फुदक रहे थे।

अब बच्चे कुछ बड़े हो गये, लेकिन चिड़िया उन्हें बच्चा ही समझती थी। पूरे समय वह बच्चों को कुछ न कुछ सिखाती रहती। शाकाहारी खाने का इंतजाम तो मैंने कर दिया था लेकिन बच्चों के लिए छोटे छोटे कीड़े मकोड़ों का इंतजाम चिड़ा कर रहा था। यानि पिता घर के बाहर की जिम्मेदारी निभा रहा था और माँ घर के भीतर की। बिल्कुल भारतीय माता पिता की तरह..

एक दिन सुबह मुझे चिड़ा नहीं दिखा। मैंने सोचा वह आसपास कीड़े मकोड़ों को ढूँढने गया होगा, थोड़ी देर में आ जाएगा। उस दिन छुट्टी थी, इसलिए मैंने दिन में कई बार पीछे दालान के चक्कर लगाए, लेकिन चिड़ा एक बार भी नहीं दिखा। शाम तक चिड़िया भी चिंतित हो गयी। वह लगातार चीं चीं करते जा रही थी। मुझे उसके और उसके बच्चों के लिए बहुत दुःख हो रहा था। लेकिन हम कर भी क्या सकते थे? सिवाय चिड़ा के इंतजार के।

हमने कई दिनों तक इंतजार किया लेकिन चिड़ा फिर कभी वापस नहीं आया। पति पत्नी का एक जोड़ा हमेशा के लिए बिछड़ गया। कुछ दिन तक चिड़िया उदास लगी मुझे।

आखिर चिड़ा ही उसका एकमात्र सहारा था, लेकिन फिर वह धीरे धीरे अपने बच्चों में खुद का सहारा खोजने लगी।

बच्चे बड़े हुए और आज के युवाओं की तरह एक दिन उन्होंने दूसरे पेड़ पर अपना आशियाना बना लिया अपनी नई और स्वतंत्र ज़िंदगी जीने के लिए। माँ तो फिर भी माँ थी, जब भी बच्चों को कोई तकलीफ होती, वह उनके घर पंहुच जाती उनकी देखभाल करने। लेकिन बच्चे..उन्हें अपनी माँ के लिए कभी फुर्सत न होती। चिड़िया कितना भी बीमार होती, अपने घोसले में अकेले ही पड़ी रहती। घोसला भी अब उसकी तरह जर्जर अवस्था में पंहुच गया था। उसके बच्चे अपनी दुनिया में मस्त थे। चिड़िया अक्सर किचन की खिड़की से अंदर आ जाती, खासकर तब, जब मैं वहाँ काम कर रही होती। मैं उसको सांत्वना देती और वह अपनी भाषा में मुझे। मुझे नहीं पता चिड़िया ने कैसे मुझ अकेली की स्थिति भांप ली थी? लेकिन हाँ मैं उसमें खुद को देख रही थी। मेरी कहानी और उसकी कहानी एक ही थी।

अब हम दोनों सहेली बन गये। वह ज्यादातर मेरे पास ही रहती। मैं उससे अपने दिल के हाल कहती और वह चीं चीं करके यह समझाती कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा। और मैं उसकी बात सुनकर फीकी हंसी हंस देती।

एक दिन चिड़िया को अपने बच्चों की याद आई वह उनके घोसले तक जाना चाहती थी लेकिन उसके बूढ़े शरीर ने उसका साथ नहीं दिया। उसने उड़ान भरी लेकिन वह बच्चों के आशियाने तक पंहुच न सकी। उड़ान भरने में वह ऊपर उठकर एक बार नीचे गिरी तो फिर कभी नहीं उठ पाई। मैंने उसको बचाने की अपनी पूरी कोशिश की, लेकिन उसकी जीने की इच्छा मर चुकी थी। उसने मेरी हथेलियों पर अपना दम तोड़ दिया। मैंने नीम के उसी पेड़ के नीचे उसको दफना दिया, जिस पर उसने और उसके चिड़े ने प्यार से अपना आशियाना बनाया था। आज वह जर्जर हो चुका आशियाना अभी भी वहाँ मौजूद था, चिड़िया और चिड़े की प्रेम गाथा से लेकर उसके अकेलेपन और फिर, उसके अंत की दास्तान कहने के लिए।

मेरी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे। पति के न रहने और बच्चों के विदेश में बस जाने के बाद, मेरी अकेली ज़िंदगी चिड़िया की तरह ही तो थी।

बस एक अंतर था, उसको तो मैंने दफना दिया था, लेकिन मेरे न रहने के बाद...?


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